सबसे पहले स्पष्ट कर दूं कि यह पुस्तक समीक्षा नहीं है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद रिया चक्रवर्ती के चल रहे मीडिया ट्रायल के मौजूदा समय में जिग्ना वोरा की पिछले साल नवंबर में आई किताब 'बिहाईंड बार्स इन भायखला: माय डेज़ इन प्रिज़न' एक पत्रकार के अपनी बिरादरी के हाथों मीडिया ट्रायल झेलने की आपबीती है । वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे (जे. डे) की हत्या के आरोप में 2011 में गिरफ्तार हुईं और 2018 में बरी हुईं जिग्ना ने कुछ महीने जेल में बताये थे और यह पुस्तक उन महीनों, मुकदमे, करियर और ज़िंदगी के बारे में है। इसका एक पहलू मीडिया ट्रायल है, जिसने उन्हें इसलिए भी ज़्यादा आहत किया कि वह खुद एक पत्रकार थीं। फ्री प्रेस जर्नल, मुंबई मिरर, मिड-डे और एशियन एज जैसे अखबारों में काम कर चुकी थीं। गिरफ्तार होने और अदालत के पुलिस कस्टडी में भेजे जाने के बाद जिग्ना लिखती हैं, “मीडिया के व्यवहार ने मुझे सबसे ज़्यादा ठेस पहुंचाई, शायद मेरे कर्मों ने ही सुनिश्चित किया था कि मैंने दूसरों के साथ जो व्यवहार किया था, मेरे साथ किया जा रहा था। मैंने यह भी महसूस किया कि मीडिया इतना बेरहम था कि प्राइम ट...