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Showing posts from September, 2018

नोटबंदी सफल थी! सफल है और सफल रहेगी!

(स्वीकरण: यह लेख एक सरकारी विभाग के एक सीक्रेट नोट पर आधारित है जो पता नहीं किन कारणों से आम जनता में सर्कुलेट नहीं किया गया। मैं 'अनऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट' में पकड़े जाने का जोखिम लेकर इसे "बैठे-ठाले" ब्लॉग के पाठकों के लिए साझा कर रहा हूँ।) नोटबंदी सफल थी। सफल है। और सफल रहेगी। इसके उस समय घोषित, बाद में घोषित हुए और भविष्य में घोषित किये जाने वाले सभी उद्देश्य सौ फ़ीसदी पूरे हुए। ऐसा हम दावे के साथ कह सकते हैं। सबसे पहले उस समय घोषित उद्देश्यों की बात करें। काला धन निकालना और भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देना, आतंकवाद की कमर तोड़ देना तथा  जाली करेंसी से निजात पाना। 99 फ़ीसदी से ज्यादा नोट वापस आने का मतलब ही यही है कि न सिर्फ काला धन वापस आया उसके साथ नीला, पीला, लाल और सफ़ेद धन भी वापस आ गया। है न? इतनी छोटी सी बात किसीके भेजे में नहीं घुस रही तो हम क्या करें? जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है तो उसका तो काम तमाम हो ही चुका है। आज पुलिस हवलदार से लेकर बड़े-बड़े नेता तक कोई एक पैसे की रिश्वत नहीं लेता। सारे सरकारी काम बिना एक पैसे की रिश्वत लिए-दिए हो रहे हैं। लोगों को सरका

कौन देशद्रोही नहीं है?

छात्र देशद्रोही है! शिक्षक देशद्रोही है! कवि-लेखक-पत्रकार तो खैर है ही! वकील देशद्रोही है! ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता देशद्रोही है! पर्यावरणविद् तो खैर है ही! आदिवासी देशद्रोही है! दलित देशद्रोही है! मुस्लिम तो खैर है ही! आपिये देशद्रोही हैं! कांग्रेसी देशद्रोही हैं! कम्युनिस्ट तो खैर हैं ही! जो असहमत है, देशद्रोही है! जो सवाल करे, देशद्रोही है! आलोचक तो खैर है ही! अब भी नहीं समझे? या तो आप हमारे साथ हैं, या फिर देशद्रोही! महेश राजपूत (29 अगस्त 2018)