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Showing posts from February, 2018

वो लम्हे...

कुछ दिन पहले की बात है, इंडियन बैंक की किंग्स सर्कल शाखा में पैसे निकालने गया था वहां धीमी आवाज़ में एफएम चल रहा था जिस पर गाना बज रहा था, "हमें और जीने की चाहत न होती, अगर तुम न होते...2" गीत, जो फिल्म "अगर तुम न होते" का शीर्षक गीत था, ने इस फिल्म और श्रीदेवी की फिल्म "लम्हे" के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया और इस पोस्ट ने जन्म लिया। दोनों फिल्मों में एक पहलू कॉमन था, कहानी तो स्त्री की थी पर उसे पुरुष के नज़रिए से पेश किया गया था। श्रीदेवी के शनिवार रात को आकस्मिक निधन के कारण पहले "लम्हे" की ही बात करूंगा। यश चोपड़ा की 'समय से आगे' की फिल्म मानी जाने वाली "लम्हे" अनिल कपूर के किरदार के नज़रिए से बनायी गयी है। "लम्हे" की कहानी कुछ ऐसी है कि अनिल कपूर अपने से उम्र में बड़ी श्रीदेवी से एकतरफा प्यार करता है। श्रीदेवी की शादी किसी और से हो जाती है और एक बच्ची को जन्म देकर वह और उसका पति मर जाते हैं। बरसों बाद अनिल कपूर श्रीदेवी की बेटी जो उनकी हमशक्ल है, से मिलता है। श्रीदेवी (बेटी) अनिल कपूर से प्यार करने लगती है

मुझको राजाजी माफ़ करना, गलती म्हारे से हो गयी!

( डिस्क्लेमर: यह किस्सा पूरी तरह कपोल कल्पित नहीं है यानी इसमें छटांग भर सच्चाई भी है और यह लेखक ऐसा कोई दावा नहीं करता कि इससे किसीकी भावनाएं आहत नहीं होंगी इसलिए आगे अपने रिस्क पर पढ़ें. बाद में मत कहना पहले वार्न नहीं किया था, धन्यवाद!) मामला संगीन था, हाल में चोरी की एक बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले एक चोर के साथ राजा की फोटू छापे में छप गयी थी! तरह-तरह की चर्चाएँ राज्य में हो रही थीं. जनता का एक वर्ग चोर से लगभग रश्क करते हुए इस तरह की बातें कर रहा था, "कितना बड़ा चोर है, दम है बंदे में! सीधे राजा तक पहुँच!", "अब काहे का डर जब सैयां भये राजाजी!" दूसरा वर्ग आपस में इस तरह की बात कर रहा था. "भला राजा को एक चोर के साथ फोटू खिंचवाने की क्या ज़रुरत थी? क्या सारे साधु-संत जेल में डाल दिए गए हैं क्या?" गनीमत थी छापे में फोटू छपने की बात अभी राजा तक नहीं पहुंची थी. राजा के सलाहकारों की तो हालत खराब थी. सो, उन्होंने एक सीक्रेट मीटिंग बुलाई. मीटिंग का एजेंडा था कि राजा तक यह खबर कैसे पहुंचाई जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इतना तो तय था कि आज

हंसो!

हंसने की बात पर हंसा ही जाता है लेकिन  न हंसने की बात पर हंसना भी कोई गुनाह तो नहीं हंसी किसी की भी हो मौके-बेमौके हो किसीको क्यों चुभनी चाहिए और अगर चुभती है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि हंसना बंद कर दिया जाए प्रतिवाद करने के ले-देकर दो ही तो तरीके हैं हमारे पास चीखना और हंसना इतना जोर से हंसना कि सामने वाले के कान के परदे फट जाएँ तो हंसो जोर-जोर से हंसो इतना जोर से हंसो कि तानाशाह तुम्हारी हंसी को नज़रंदाज़ न कर पाए उठे तो उसे तुम्हारी हंसी सुनाई दे बैठे तो उसे तुम्हारी हंसी सुनाई दे ख्वाब में भी तुम्हारी हंसी से पीछा न छुड़ा पाए तभी उसे अहसास होगा कि डरना उसे तुमसे है तुम्हें उससे नहीं! -महेश राजपूत   (सूचनार्थ: यह मेरी पहली कविता है और कल यानी शनिवार, १० फरवरी २०१८ को जिस समय मैंने लिखी और फेसबुक पर मित्रों से साझा की तो मुझे मालूम नहीं था कि बीसवीं सदी के महान कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक ब्रेतोल्त ब्रेख्त का जन्म दिन था ।  ब्रेख्त का एक नाटक 'लाइफ ऑफ़ गैलीलियो' का मंचन करने की एक समय हम दोस्तों ने असफल कोशिश की थी यानी मंचन कर नहीं पाए थे  ।मे री यह रचना  ब्रेख्त

प्रकाश राज को क्या एक सैल्यूट हमारी तरफ से नहीं बनता है #justasking

इस गणतंत्र दिवस पर... हमारी चुनी हुई सरकार ने विश्व नेताओं को बुलाया है और राजपथ पर हमारी सेना की ताकत दर्शा रही है... जबकि वह स्कूल से लौट रहे हमारे बच्चों को आतंकित करते हुए गुंडों को नहीं रोक सकते...क्या हम नागरिकों को ठहरकर सोचना... सवाल नहीं पूछना चाहिये... #justasking मेरे देश के बच्चे मारे भय के कांप रहे हैं और रो रहे हैं... करणी सेना स्कूल बस पर जब हमला कर रही होती है... चुनी हुई सरकार आँखें मूंदे हुए है... विपक्षी दल कूटनीतिक तरीके से प्रतिक्रिया देता है...क्या आप सबको अपनी वोट बैंक राजनीत का सौदा हमारे बच्चों की सुरक्षा से करते हुए शर्म नहीं आती... #justasking दक्षिण कर्नाटक में... एक कांगेसी मंत्री तुष्टिकरण के लिए कहता है मैं अल्लाह के आशीर्वाद से जीता... एक बीजेपी नेता और गिरता है और कहता है अगला चुनाव अल्लाह और राम के बीच है. क्या आप दोनों भगवान् की नीलामी बंद करेंगे और विकास तथा वास्तविक मुद्दों की बात करेंगे... #justasking हमारे पूर्वजों ने बंदरों को इंसान में बदलते नहीं देखा, हमारे एक मंत्री कहते हैं. पर सर... क्या आप इससे इनकार कर सकते हैं कि आज हम उल्टा