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Showing posts from January, 2019

विश्वासों को बल देता है महेश राजपूत का व्यंग्य लेखन

प्रस्तावना लेखन हर-हमेशा से ही आग से खेलना रहा है। आप अभिव्यक्ति के लिए जिस भी विधा का चुनाव करें- वस्तुतः खतरों को ही आमंत्रित करते रहते हैं। अगर आपकी कलम व्यवस्था को समर्पित है , तो आप चिकनी-चुपड़ी रोटी का आनंद लेते हुए भी खतरे को आमंत्रण दे चुके होते हैं , क्योंकि एक दौर के खत्म हो जाने के बाद ऐसा बखत जरूर आता है , चाहे आपके रहते में आए या बाद में , जब कभी आप समीक्षण की जद में आते हैं , आप खुद का नाम मिट्टी में मिला हुआ पाते हैं। दूसरा रास्ता है जनपक्ष का। व्यवस्था के खिलाफ कलमगीरी का। यह तरीका सृजन के शुरूआती हर्फ से ही आपको एक दहकते फर्नेस में धकेल देता है। ज्यादातर विधाओं में शब्दजाल इस कदर सुनहरे होते हैं कि पाठक उसकी कुंदनी चमक में उलझकर रह जाते हैं और सृजनहार सीधी दुश्मनी पाले बिगर साफ बचकर साफ निकल जाता है। व्यंग्य में ऐसा नहीं चलता। यह नंगी हथेली पर अंगार रखने का पराक्रम है। आप को किसी को राखड़ करने के पहले स्वयं को भस्मीभूत करना होता है। एक समर्थ व्यंग्यकार दुश्मनों के बीच ही पलता है , विरोध में पनपता है। अभिमन्यु की तरह वह खुद को चक्रव्यूह के बीच सायास ले जाता है। वह

Now, the murderer won't ever be able to sleep

That night nobody slept Neither we, sitting at home Nor mother, standing outside the ICU We could not sleep after that night Waiting for Papa to return And, one day Papa returned Wrapped in the same shroud Which he had always kept with him passionately And flowers on that shroud never allowed us to sleep During those nights we were not alone awake Chhatrapati was up with us And constantly telling us Don't ever go to sleep Till I sleep in peace He constantly told us Don't ever go to sleep Till the murderers are behind bars Now, Papa is sleeping And, the murderer is awake in the darkness of prison Tonight, the murderer won't be able to sleep Chhatrapati's shroud will become a noose and will keep him awake, frighten him, make him cry from his every slumber Yes, the murderer won't be able to sleep...ever (A poem by Shreyasi, daughter of slain journalist Ram Chander Chhatrapati) (Translated by yours truly) And here is the original in Hi

अब प्रेस कांफ्रेंस भी हो ही जाए...

पिछले कुछ महीनों में अलग-अलग मौकों पर  कुछ एक्सीडेंटल रिपोर्टरों के साथ सफल इंटरव्यू के बाद पीएम (परम मित्र और कोई नहीं) के कुछ गुप्त सलाहकारों की अति गोपनीय बैठक हुई, पर जैसाकि आपके खादिम की आदत है, सौ-सौ जूते खायेंगे, तमाशा घुसकर देखेंगे, वहां भी घुसने में कामयाब रहा। पेश है बैठक की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट: सलाहकार 'क' : पीएम बहुत खुश हैं पिछले इंटरव्यू से। सलाहकार 'ख' : क्यों न होते? हमने सुनिश्चित किया था कि एक भी सवाल 'असुविधाजनक' नहीं होगा। सलाहकार 'ग' : न सिर्फ असुविधाजनक सवाल नहीं होगा, कोई काउंटर सवाल भी नहीं होगा। सलाहकार 'घ' : बिलकुल अब तो हमें सफल इंटरव्यू कराने की आदत सी हो गई है। सलाहकार 'क' : (डांटते हुए) सारा क्रेडिट पीएम को जाता है, वह पूरे इंटरव्यू में खुद को कैसे कंडक्ट करते हैं। किस मौके पर मुस्कुराते हैं, किस मौके पर भावुक हो जाते हैं, किस मौके पर उनकी आँख नम हो जाती हैं  और किस मौके पर उनकी मुठ्ठियाँ भिंच जाती हैं... क्या हम यह तय कर सकते हैं? सलाहकार 'ख' : आपसे पूरी तरह सहमत। हमारे पीएम का जवाब नह