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Showing posts from 2021

गलती से मिश्टेक हो गया!

  -क्या यह सच है कि नाइजीरिया के विज्ञापन में पश्चिम बंगाल के विकास को हाईजैक कर लिया गया? -बोले तो गलती से मिश्टेक हो गया। -आपसे? -नहीं अखबार से। -कैसे? तस्वीरें आपने नहीं दी थीं? -अखबार ने ट्वीट तो किया था कि एडवरटोरियल में मार्केटिंग विभाग की गलती से गलत तस्वीरें चली गईं। -तो तस्वीरें आपने नहीं दी थीं? -नहीं। -क्यों नहीं दी थीं? क्या आपके पास नाईजीरिया में विकास दर्शाने वाली दो तस्वीरें भी नहीं हैं? -बहुत तस्वीरें हैं। -तो दी क्यों नहीं? -पता करना पड़ेगा। उन्होंने मांगी ही नहीं होंगी... -या आपने यह सोचा कि वह खुद सिंगापुर, दुबई, या यूरोप के किसी सुंदर, विकसित देश की तस्वीरें लगा देंगे और किसीको पता नहीं चलेगा और आपकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी। -ऐसा नहीं है। हमें लगा कि मीडिया ऐसी गलती नहीं करेगा... -कैसी गलती? -जैसी कभी-कभी हमारे कुछ अतिउत्साहित भक्त करते हैं, व्हाट्स एप फॉरवर्ड, फेसबुक पोस्ट, ट्वीट पर कहीं की भी तस्वीरें हमारे यहां की डालकर हमें एंबैरेसिंग हालत में डालते हैं। -आप एंबैरेस भी होते हैं? -देशद्रोही तत्व हमारे भक्तों की फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करते हैं तो कभी-कभी एंबैरेसमेंट

बड़े पैमाने पर यूनियनों से जुड़ रहे हैं अमरीकी पत्रकार

  महामारी में एकजुटता ने ही बचाई नौकरियां कोविड महामारी वर्ष 2020 में अमेरिका में 16,000 पत्रकारों ने नौकरियां गंवाईं लेकिन इनमें से अधिकांश वह मीडिया वर्कर थे, जो यूनियनाइज़्ड नहीं थे। यह कहना है अमेरिका में पत्रकारों व मीडियाकर्मियों की सबसे बड़ी यूनियन न्यूज़गिल्ड के अध्यक्ष जोन श्लेयुस का। उन्होंने यह बात आईजेनेट की हेलोइस हकीमी ले ग्रांड की रिपोर्ट में कही है।   रिपोर्ट के अनुसार 2021 के पहले छह महीनों में अमेरिका में यूनियनों से रिकॉर्ड संख्या में पत्रकार और मीडियाकर्मी जुड़े हैं। मध्य जुलाई तक 29 संस्थानों के कर्मचारियों ने यूनियन प्रतिनिधित्व की मांग की। पिछले साल यानी 2020 में 37 संस्थानों में सफल संगठन बने। इसका कारण है यूनियन से जुड़ने के लाभ। यूनियन में होने से मीडियाकर्मी अपनी नौकरियों, पारिश्रमिक, सेवाशर्तों, प्रकाशनों, रिपोर्टिंग की गुणवत्ता समेत कई बातों के लिए लड़ सकते हैं। जब कर्मचारी एकजुट होते हैं तो वह मुद्दों का सामना कर सकते हैं, संगठित मोर्चा बना सकते हैं और अपने पक्ष में प्रबंधन पर ज्यादा दबाव बना सकते हैं। श्लेयुस के अनुसार “हम यूनियन से जुड़ते है

वैश्विक फिल्म बिरादरी के नाम टूटे दिल लेकिन गहरी उम्मीद के साथ फिल्मकार सहरा करीमी का खत!

दुनिया के सभी फिल्म समुदायों को, जो फिल्म और सिनेमा से प्यार करते हैं! मेरा नाम सहरा करीमी है और मैं एक फिल्म निर्देशक व 1968 में स्थापित की गई एकमात्र सरकारी फिल्म कंपनी अफगान फिल्म की महानिदेशक हूं। मैं आपको टूटे दिल और गहरी उम्मीद से लिख रही हूं कि आप मेरे प्यारे देशवासियों, खासकर फिल्मकारों को बचाने में साथ दें। पिछले कुछ हफ्तों में तालिबान ने कई प्रांतों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है। उन्होंने हमारे लोगों को मारा है, कई बच्चों का अपहरण किया है, बच्चियों को चाईल्ड ब्राईड के रूप में बेचा है, एक महिला को उनकी वेशभूषा के कारण मारा है, हमारे एक प्यारे कॉमेडियन को उन्होंने प्रताड़ित करने के बाद मार डाला है, हमारे ऐतिहासिक कवियों को मारा है, सरकार के संस्कृति व मीडिया प्रमुख को मारा है, सरकार से जुड़े लोगों की वह हत्याएं कर रहे हैं, कुछ लोगों को तो वह सरेआम फांसी पर लटका रहे हैं, हजारों परिवारों को उन्होंने दरबदर किया है। इन प्रांतों से भागे परिवारों ने काबुल के शिविरों में शरण ली है और वह बुरी स्थिति में हैं। शिविरों में लूट मची हुई है और बच्चे मर रहे हैं क्योंकि दूध नहीं है। यह मानव

नरक में मोहलत (कहानी)

  -प्रणव प्रियदर्शी घर से निकलते समय ही अनिता ने कहा था, ‘बात अगर सिर्फ हम दोनों की होती तो चिंता नहीं थी। एक शाम खाकर भी काम चल जाता। लेकिन अब तो यह भी है। इसके लिए तो सोचना ही पड़ेगा।’ उसका इशारा उस बच्ची की ओर था जिसे अभी आठ महीने भी पूरे नहीं हुए हैं। वह घुटनों के बल चलते, मुस्कुराते, न समझ में आने लायक कुछ शब्द बोलते उसी की ओर बढ़ी चली आ रही थी। अनिता के स्वर में झलकती चिंता को एक तरफ करके अशोक ने बच्ची को उठा लिया और उसका मुंह चूमते हुए पत्नी अनिता से कहा, ‘बात तुम्हारी सही है। अब इसकी खुशी से ज्यादा बड़ा तो नहीं हो सकता न अपना ईगो। फिक्कर नॉट। इस्तीफा वगैरह कुछ नहीं होगा। जो भी रास्ता निकलेगा, उसे मंजूर कर लूंगा, ऐसा भी क्या है।’ बच्ची को गोद से उतार, पत्नी के गाल थपथपाता हुआ वह दरवाजे से निकल पड़ा ऑफिस के लिए। इरादा बिल्कुल वही था जैसा उसने अनिता से कहा था। लेकिन अपने मिजाज का क्या करे। एक बार जब दिमाग भन्ना जाता है तो कुछ आगा-पीछा सोचने के काबिल कहां रहने देता है उसे।  मामला दरअसल वेतन वृद्धि का था। अखबार का मुंबई संस्करण शुरू करते हुए सीएमडी साहब ने, जो इस ग्रुप के मालिक ही न

हम सकारात्मक होने में विश्वास करते हैं!

  -कोविड से हालात बहुत खराब हैं। -जी। पर हम चुप नहीं बैठे हैं। हमने पूरा सिस्टम झोंक दिया है। -कैसे? -हमने ठान लिया है, एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों में एक भी व्यक्ति निगेटिव न हो। -क्या कह रहे हैं आप??? -पता था, आप जैसे देशद्रोही लोग उलटा अर्थ निकालेंगे। मैं कोविड निगेटिव की नहीं नकारात्मकता की बात कर रहा था। हम सकारात्मक होने में विश्वास करते हैं। -तो सकारात्मकता का भाव जगाने के लिए आपकी योजना ज़रूर अस्पताल बनाने, ऑक्सीजन, दवाइयों की कमी दूर करने, देश भर में नि:शुल्क वैक्सीनेशन अभियान चलाने की होगी। -इस सबके लिए टाइम और पैसा कहां है हमारे पास? हम दूसरे प्रयासों में लगे हैं। -बोले तो? -हम ढूंढ - ढूंढ कर नकारात्मकता फैलाने वाली सोशल मीडिया पोस्ट को हटवा रहे हैं। नकारात्मकता फैलाने वालों को ब्लॉक करवा रहे हैं। ट्विटर, फेसबुक, सब पर हमारी नज़र है। -ये तो सचमुच बड़ा काम है। इंटरनेशनल मीडिया में लेकिन बहुत अंटशंट आ रहा है, उसका क्या करेंगे? आप इन प्रकाशनों को बंद नहीं करवा सकते? -आप हमारा मज़ाक उड़ा रहे हैं? -नहीं, मेरी ऐसी मजाल? मैं सौ फीसदी गंभीर था।  -देखिये। इंटरनेशनल मीडिया की पहुंच वैसे

The List: Media Bloodbath in Covid Times (Character Sketches)

Manish Manish is Resident Editor of the Chandigarh edition of ‘The Whistle-blower’. One fine day during the Covid-19 lockdown, he gets a midnight-call from his Editor-in-Chief who asks him to prepare a list of 15 staffers to be fired soon. Facing a moral dilemma, he knows very well that if he fails to do the dirty job, he himself will be on the list. Ritu Ritu is a concerned and conscientious wife of Manish, who does not want her husband to fire his subordinates during a time of crisis. Boss Boss (Editor-in-Chief) is a ruthless fellow who wants his orders to be complied with and he is not the person who would listen to any excuses or reasoning. Rajni Rajni, HR head at the Chandigarh office of ‘The Whistle-blower’, is as ruthless as one can get in her position. She does not even believe in sugar-quoting what she says. Jagbir Singh Jagbir, an ace reporter at the ‘The Whistle-blower', gets the shock of his life when he is told that he is on the list of staffers to be fired. Sarabjit K

The List: Media Bloodbath in Covid Times (Cast & Crew)

 Main Cast Manoj Kumar Sharma  Rashmi Bhardwaj Sanjeev Kaushish Akanksha Shandil Saahir Banwait Gurvinder Kaur Dr. Gurtej Singh Jaspreet Kaur Supporting Cast:   Harsha Ankur Goyat Gaurika Pathania Ajay Singh Hunny Sharma Himanshi Rajput Crew:  Executive Producer : Manoj Kumar Sharma Associate Director: Navin Kumar Editor: Gopal T. Raghani DOP: Sunil Gupta Writer & Director: Mahesh Rajput Make-up: Saurav Sharma & Baljinder Singh Title Calligraphy by: Dr. Ganesh Tartare Title designed by : Rudra Tartare Posters designed by : Deepak Rajput 'The Whistle-blower' front page designed by: Mohan Singh Dhami Cartoon for the front page by: Prince Dantha Equipment supplied by: Forecasting Media Post-production at: Raghani Studios Mountains Background Music by and Dubbing at: BBStudioz      Note: 'The List; Media Bloodbath in Covid Times, a Madness Without Method Entertainments' presentation, is streaming on an OTT platform ABC Talkies since May 3, 2021)

The List: Media Bloodbath in Covid Times (Synopsis)

'The List: Media Bloodbath in Covid Times', a short movie in Hindi, delves into the theme of massive-scale retrenchment in Indian Media Industry in the wake of the Covid crisis. Manish, the Resident Editor of Chandigarh edition of English daily 'The Whistle-blower' gets a midnight call from his Editor-in-Chief in Delhi. He is asked to make a list of 15 staffers to be fired soon to "rationalise expenditure". He finds himself in a moral crisis as he presides over the bloodbath of his subordinates. However, he knows very well that if he fails to do the dirty job, he himself will be on the list. ( Note: 'The List; Media Bloodbath in Covid Times, a Madness Without Method Entertainments' presentation, is streaming on an OTT platform ABC Talkies since May 3, 2021)

अर्नब कॉलिंग अर्नब!

  -इज़ दिस अर्नब?  -या। हू इज़ कॉलिंग?  -अर्नब!  -टेल मी अर्नब।  -ये लीक्ड व्हाट्सएप चैट का क्या मसला है?  -नो कमेंट्स।  -कम अॉन। मैं अर्नब बोल रहा हूं। ईदर यू हैव टु डिनाय अॉर यू हैव टु कन्फर्म। फॉर यू टु से नो कमेंट्स इज़ नॉट एन अॉप्शन।  -नोबडी टेल्स अर्नब टु व्हाट टु से अॉर व्हाट नॉट टु से।  -बट आई एम नॉट नोबडी। मैं अर्नब हूं। मैं जब किसी से कुछ पूछता हूं तो मैं नहीं पूछता। देश पूछता है, दुनिया पूछती है। प्लेनेट अर्थ पूछता है। ब्रह्मांड पूछता है।  -तो मैं भी तो अर्नब हूं। मैं सवालों के जवाब नहीं देता। मैं सवाल करता हूं। सवाल के रूप में कमेंट बल्कि कमेंट्री करता हूं। मेरे शो में मैं ही सवाल करता हूं। मैं ही जवाब देता हूं। किसी को बोलने नहीं देता। जो बोलने की कोशिश करता है, उसे चुप करा देता हूं। चिल्ला कर। उसकी बेइज्जती कर। उस पर दूसरे पैनलिस्ट छोड़कर। केवल पात्रा अपवाद है।  -तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि सिर्फ पात्रा ही पूछे तो जवाब दोगे?  -नहीं। पात्रा अपवाद है बोलने के मामले में चूंकि वह एनएम का खास है,  पूछ तो वह भी नहीं सकता।  -एन एम बोले तो?  -मैं क्यों बताऊं? मैं तुम्ह