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Showing posts from February, 2020

"मैं इस हार की नैतिक औैर हर तरह से जिम्मेवारी लेता हूं..."

वह हर मायनेे में सबसे अलग पार्टी थी। इसलिए, हर चुनाव को गंभीरता से लेती थी चाहे वह गली-मोहल्ले का चुनाव हो या फिर किसी प्रांत या देश का। हर चुनाव में वोट पार्टी, देश और विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता के नाम पर ही मांगे जाते थे औेर अक्सर पार्टी जीत भी जाती थी या हार में भी जीत देख लेती थी। जैसे सीटें कम हुईं तो बढ़े हुए वोट प्रतिशत से खुश हो लेती। वोट प्रतिशत कम हुआ हो तो प्रत्याशियों के हार के अंतर को हाईलाईट किया जाता। कुल मिलाकर पार्टी में कभी किसी चुनाव में हार का ठीकरा किसीके सिर फोड़ने की नौबत लगभग नहीं ही आई थी। ऐसे में एक मिनी प्रांत में पार्टी की बेहद बुरी हार हुई। एक एसयूवी में भरकर विधानसभा भेजने लायक संख्या में इसके प्रतिनिधि चुने गये यानी दहाई का आंकड़ा भी नहीं छुआ और जहां तक वोट प्रतिशत का मामला है तो मिनी प्रांत के पिछले चुनाव के मुकाबले तो यह ज्यादा था, जो सुकून वाली बात थी लेकिन कुछ समय पहले हुए देश के चुनाव में इसी क्षेत्र से मिले वोटों के मुकाबले यह संख्या काफी कम थी। पार्टी सदमे में थी। ट्विटर पर अति सक्रिय रहने वाले नेताओं की उंगलियों को जैसे करंट लग गया था। पार्टी के

मुस्कुराइये, आप शाहीन बाग में हैं :-)

दिसंबर-जनवरी में कम से कम तीन बार मैंने शाहीन बाग जाने की योजना बनाई पर अमल नहीं कर पाया लेकिन पांच फरवरी को मुंबई से चंडीगढ़ जाते समय दिल्ली उतर ही गया और पहुंच गया शाहीन बाग। रात वहीं गुज़ारी। बढ़ती उम्र के कारण, इधर, रात को जागना नहीं हो पाता। फिर चंडीगढ़ की ठंड ने अपना असर दिखाना शुरू किया है और थोड़ा चलने पर या कुछ देर खड़े रहने पर बायें पैर में दर्द होने लगा है। इसलिये बीच-बीच में कहीं कोना पकड़कर थोड़ी देर के लिये बैठ जाना पड़ता है। लेकिन यह शाहीन बाग के आंदोलन का जोश और ऊर्जा का कमाल ही था कि रात कैसे गुज़री पता ही नहीं चला। अगली सुबह मैं कितना तरोताज़ा था, इसकी गवाही नोएडा में रहने वाले मेरे मित्र प्रणव प्रियदर्शी देंगे, जिनके घर मैं सुबह मेट्रो पकड़कर लगभग सात बजे पहुंचा। पोस्ट के साथ उनकी खींची सेल्फी लगाने का कारण यह है कि मेरे मोबाईल का कैमरा खराब है और शाहीन बाग में मैं कोई तस्वीर नहीं खींच पाया था। वैसे भी शाहीन बाग मैं एक आम नागरिक के तौर पर गया था, पत्रकार के रूप में नहीं, इसलिये तस्वीरें खींचने या रिपोर्टिंग का कोई इरादा नहीं था। मैं बस कुछ घंटे वहां के माहौल को