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Showing posts from 2018

नोटबंदी सफल थी! सफल है और सफल रहेगी!

(स्वीकरण: यह लेख एक सरकारी विभाग के एक सीक्रेट नोट पर आधारित है जो पता नहीं किन कारणों से आम जनता में सर्कुलेट नहीं किया गया। मैं 'अनऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट' में पकड़े जाने का जोखिम लेकर इसे "बैठे-ठाले" ब्लॉग के पाठकों के लिए साझा कर रहा हूँ।) नोटबंदी सफल थी। सफल है। और सफल रहेगी। इसके उस समय घोषित, बाद में घोषित हुए और भविष्य में घोषित किये जाने वाले सभी उद्देश्य सौ फ़ीसदी पूरे हुए। ऐसा हम दावे के साथ कह सकते हैं। सबसे पहले उस समय घोषित उद्देश्यों की बात करें। काला धन निकालना और भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देना, आतंकवाद की कमर तोड़ देना तथा  जाली करेंसी से निजात पाना। 99 फ़ीसदी से ज्यादा नोट वापस आने का मतलब ही यही है कि न सिर्फ काला धन वापस आया उसके साथ नीला, पीला, लाल और सफ़ेद धन भी वापस आ गया। है न? इतनी छोटी सी बात किसीके भेजे में नहीं घुस रही तो हम क्या करें? जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है तो उसका तो काम तमाम हो ही चुका है। आज पुलिस हवलदार से लेकर बड़े-बड़े नेता तक कोई एक पैसे की रिश्वत नहीं लेता। सारे सरकारी काम बिना एक पैसे की रिश्वत लिए-दिए हो रहे हैं। लोगों को सरका

कौन देशद्रोही नहीं है?

छात्र देशद्रोही है! शिक्षक देशद्रोही है! कवि-लेखक-पत्रकार तो खैर है ही! वकील देशद्रोही है! ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता देशद्रोही है! पर्यावरणविद् तो खैर है ही! आदिवासी देशद्रोही है! दलित देशद्रोही है! मुस्लिम तो खैर है ही! आपिये देशद्रोही हैं! कांग्रेसी देशद्रोही हैं! कम्युनिस्ट तो खैर हैं ही! जो असहमत है, देशद्रोही है! जो सवाल करे, देशद्रोही है! आलोचक तो खैर है ही! अब भी नहीं समझे? या तो आप हमारे साथ हैं, या फिर देशद्रोही! महेश राजपूत (29 अगस्त 2018)  

माफ़ी तो आपको मांगनी ही होगी!

देश के नंबर वन नॉइज़ चैनल पर गर्मागर्म डिबेट चल रही थी। मैं सर्फिंग करते-करते थोड़ी देर से उस चैनल पर पहुंचा इसलिए मालूम नहीं प ड़  रहा था कि मामला क्या था? जब मैंने देखना शुरू किया डिबेट शुरू हुए करीब आठ मिनट हो चुके थे। यूं तो एंकर के सामने आठ-दस मेहमान थे पर एंकर एक मेहमान से ही रूबरू था जो किसी विपक्षी पार्टी का नुमाइंदा था। एंकर कह रहा था... एंकर : माफ़ी तो आपको मांगनी ही होगी। मेहमान : लेकिन... एंकर : हम आपकी कोई बात नहीं सुनेंगे। पहले आप माफ़ी मांगें। मेहमान : पर... एंकर : पर-वर कुछ नहीं आप माफ़ी मांगिये।  मेहमान : मेरी बात तो सुन... एंकर : राष्ट्र को कुछ नहीं सुनना। आप सिर्फ माफ़ी मांगिये। मेहमान : मेरे भाई... एंकर : मैं आपका भाई नहीं हूँ। मैंने जो कहा आप कीजिये... माफ़ी मांगिये। मेहमान : किस बात... एंकर : बात गई तेल लेने। मैंने बोल दिया तो बोल दिया। आप मुझे यह बताइये कि आप माफ़ी मांग रहे हैं या नहीं... इस बीच श्रीमतीजी आ गयीं और रिमोट उठाकर चैनल बदल दिया। मैंने कहा, "बहुत इंट्रेस्टिंग डिबेट थी।" उन्होंने कहा, "थोड़ी देर बाद देख लेना, डिबेट कहा

"पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन आपका स्वागत करता है!"

रविवार की दोपहर थी। बिल्डिंग के कंपाउंड में क्रिकेट खेलने के बाद नौ वर्षीय चुन्नू और सात वर्षीय मुन्नू घर लौटे तो उन्होंने देखा पापा किचन में ऑमलेट बना रहे हैं और मम्मी लैपटॉप पर कुछ काम कर रही हैं। आज सन्डे के दिन खाना बनाने का टर्न पापा का था और उन्हें ऑमलेट के अलावा कुछ और बनाना आता ही नहीं था। दोनों में आँखों-आँखों में कुछ इशारेबाजी हुई और चुन्नू ने लीड लेते हुए पापा को डिस्टर्ब करने का जोखिम लिया। उसने पूछा, "पापा, यह पाकिस्तान किस चिड़िया का नाम है?" पापा बोले, "बेटा, पाकिस्तान कोई चिड़िया नहीं, एक देश है, हमारा पड़ोसी देश है।" अबकी मुन्नू ने सवाल किया, "पापा, पाकिस्तान बहुत बुरी जगह है क्या?" पापा ने कहा, "नहीं तो। कोई देश उतना ही बुरा या अच्छा होता है जितने उसके लोग, और मेरी राय में आम पाकिस्तानी हमारे जैसे ही अच्छे लोग होते हैं...." चुन्नू बात काटते हुए बोला, "पापा, आप तो बोर करने लगते हो। सीधे बोलो न बुरा देश नहीं है।" पापा ने कहा, "ओके। पर तुम लोग आज अचानक यह क्यों पूछ रहे हो?" चुन्नू बोला, "पापा, ह

यह गलत बात है!

(डिस्क्लेमर: इस लेख में शब्द मेरे हैं पर भावनाएं सत्तारूढ़ पार्टी के एक नेता की हैं। दरअसल हुआ यूं कि अपनी ट्रोल आर्मी के सदस्यों (यह मेरे शब्द हैं, उन्होंने 'सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स' लिखा था) से उन्होंने एक भावुक अपील की। मुझे लगा इस अपील को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना चाहिए इसलिए यहाँ पेश कर रहा हूँ।) प्रिय सोशल मीडिया एक्टिविस्ट बंधुओं, पहले तो मैं आप लोगों की तारीफ़ करना चाहूँगा कि आप सोशल मीडिया पर देश, धर्म और समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दे उठाते रहते हो और जनता को जागरूक करते रहते हो। आप जो सवाल उठाते हो वह गंभीर और बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। बस, आपकी भाषा ज़रा गड़बड़ है। आप ही बताइये, सोशल मीडिया पर संवाद करते समय भाषा में क्या अश्लीलता, नफरत और हिंसा को उचित ठहराया जा सकता है? आपका बड़ा भाई होने के नाते मैं कहूँगा, "नहीं ठहराया जा सकता।" यह गलत बात है! ख़ास कर तब तो बिलकुल नहीं जब ऐसी भाषा का इस्तेमाल अपनों के खिलाफ ही किया जाए। क्या गैरों की कमी है जो हम अपनों को निशाना बनाएं? मित्रो, आपको यह तो सोचना चाहिए कि हमारे सुप्रीम लीडर आपको फॉलो करते हैं

मूलाधार और अधिरचना में जाति-समस्या

(मज़दूर क्रांति के ध्येय को समर्पित एक बुजुर्ग साथी द्वारा तैयार करवाया गया पर्चा, बहस के लिए) भारत में जाति की समस्या कई दशकों से व्यापक चर्चा का विषय रही है। इस चर्चा में वामपंथी आंदोलन का भी हस्तक्षेप रहा है, खास कर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन का। वामपंथी आन्दोलन में इस समस्या को लेकर एक लम्बे अरसे से विचार-मंथन चल रहा है। एक सैद्धान्तिक आन्दोलन होने के चलते जब कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन ने इसमें हस्तक्षेप किया और इस विषय पर विचार-मंथन शुरू किया तब यह स्वाभाविक ही था कि विषय पर वह व्यापकता और गहराई में जाकर विचार-विमर्श करें तथा इसका सांगोपांग अध्ययन करें और समाधान प्रस्तुत करें। जाति-व्यवस्था की उपस्थिति और समस्या के अन्तर्वस्तु एवं स्वरूप पर वामपंथी आन्दोलन में काफी हद तक एकता है। आन्दोलन एकमत है कि जाति-व्यवस्था भारतीय समाज का यथार्थ है। भारतीय इतिहास के खास कर ज्ञात इतिहास से लेकर भक्ति आन्दलोन तक के विचारकों तथा फुले, अम्बेडकर, पेरियार, लोहिया जैसे पुरोधाओं ने जाति-समस्या पर महत्वपूर्ण विमर्श किया और उसके उन्मूलन के लिए व्यावहारिक आन्दचोलनों को जन्म दिया

शांतता! डायलॉगबाजी चालू आहे

"मैं अकेला नहीं है रे, अपुन का कंट्री का बड़ा-बड़ा लीडर लोक कू डायलॉग पसंद है।" पक्या उस अखबार के टुकड़े को, जिसमें बॉईल अंडे लाये गए थे, एक तरफ फेंकते हुए बोला। वह अपने पंटर अल्बर्ट के साथ आंटी के अड्डे पर बैठा पैग लगा रहा था। बैकग्राउंड में चिकनी चमेली टाइप के गाने चल रहे थे। अल्बर्ट जिसे चढ़ने लगी थी, बोला, "उसमें नया क्या है बॉस? अपुन बी तो डायलॉग का दीवाना है। अमिताभ बच्चन की हर फिल्म का हर डायलॉग अपुनको बायहार्ट याद है।" पक्या झल्लाते हुए बोला, "मैं फिल्मों के डायलॉग की बात नहीं किया रे...मैं बोलना चाहता था सोसाइटी में डायलॉग मस्ट है।" अल्बर्ट अपनी ही धुन में था। वह बोला, "बॉस, अपुन का सिदधी विनायक सोसाइटी का एनुअल फंक्शन में कितना लोक डायलॉग मारता है...." पक्या उसे काटते हुए बोला, "अरे मैं तेरा सोसाइटी का नहीं, सोसाइटी यानी समाज का बात कर रहेला था।"         अल्बर्ट, "ओह! सॉरी बॉस...मैं समझा नहीं था। पण बॉस, अगर तुमको बुरा न लगे तो एक बात बोले?" पक्या : बोल। अल्बर्ट: स्साला अपुन का समाज-विमाज में डायलॉग हो

विक्रम बेताल 2020 में...

वर्ष 2020 की बात है। विक्रम बेताल को काँधे पर लिए अँधेरी रात में जंगल से जा रहे थे। सफ़र लम्बा था, सो बेताल ने एक कहानी सुनानी शुरू की: "पिछले साल का ही किस्सा है, राजन! एक देश में आम चुनाव हुए थे। एक तरफ महालोकप्रिय महाबली राजा नरेन्द्र और उनके बाहुबली सेनापति अमित थे। दूसरी तरफ कई बौने राजकुमारों जैसे राहुल, अखिलेश तथा तेजस्वी आदि थे। मायावती, ममता समेत कम्युनिस्ट, जिन्हें कोई पूछता नहीं था, भी विपक्ष के खेमे में थे। राजा नरेन्द्र के विरोध में होने के बावजूद सारे विपक्षी साथ में थे, ऐसा भी नहीं था क्योंकि अधिकांश की महत्वाकांक्षा खुद राजा बनने की थी।   ऐसे में तमाम टीवी एंकर और अखबारों के संपादक, राजनीतिक पंडित मुकाबले को एकतरफा मानकर ही चल रहे थे। ओपिनियन पोल भी यही कह रहे थे कि राजा नरेन्द्र और सेनापति अमित की पार्टी को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। इनके पांच साल के शासन का थोड़ा बैकग्राउंड भी बता दूं। कोई बुरा काम नहीं किया था इन लोगों ने, बस नोटबैन और जीएसटी जैसे फैसलों से रोज़गार और कारोबार ठप्प कर दिया था। पेट्रोल-डीज़ल-रसोई गैस की बढती कीमतों को और जानलेवा महंगाई

तुमको हमारी नज़र लग जाए!

नज़र लगने का 'कांसेप्ट' कभी मेरी समझ में नहीं आया! ऑफिस में पढ़े-लिखे सहयोगी भी अक्सर छींक आने से लेकर बुखार हो जाने पर कह देते हैं, "लगता है किसीकी नज़र लग गयी!" पर यह नज़र लगना होता क्या है? असल में इसकी जड़ में 'हैव्स" की 'हैव्स नॉट' के प्रति हीन भावना, असुरक्षा की भावना है। दरअसल आपके पास जो भी होता है, जो अपनी समझ के अनुसार आपने चाहे अपनी काबिलियत के बल पर हासिल किया हो या ऐसे ही मिल गया हो, आपको लगता है कि वह लोग जिनके पास वह नहीं है, आपसे जलते हैं। मन ही मन वह चाहते हैं कि आपसे यह छिन जाए। हालाँकि यह भी सच है कि किसीके चाहने भर से किसीका कुछ होता-जाता नहीं है। बद्दुआ एक कमज़ोर व्यक्ति का लड़ाई हार जाने पर आखिरी हथियार है। वह यही सोचकर सब्र कर लेता है, "मुझ पर अन्याय करने वाले का मैं कुछ नहीं बिगाड़ सका तो क्या, भगवान्/खुदा/गॉड या कहें कुदरत उसे सबक सिखाएगी।" ऐसा कुछ नहीं होता। पर फिर भी आश्चर्यजनक रूप से अगर लोग "गरीब की हाय" या "किसीकी बद्दुआ" से डरते हैं तो इसके पीछे उनका अपराध बोध होता है कि उन्होंने सामने वाले के सा

(55) घंटे का सीएम!

सचमुच हमारे देश का कुछ नहीं हो सकता! बताइए न ऐसे देश का हो भी क्या सकता है जहाँ विपक्षी इतने बदमाश हों कि युगों-युगों तक सीएम बने रहने के काबिल एक शख्स को 55 घंटे का सीएम बना दिया जाए! इतनी बड़ी साज़िश! इतनी गहरी साज़िश! दो पार्टियों (कांग्रेस और जनता दल सिक्युलर) ने पहले तो यह इम्प्रैशन दिया कि वह एक दूसरे के खिलाफ लड़ रही हैं। फिर जनता को कन्फ्यूज़ कर ऐसे परिणाम लाये कि देश और सभी राज्यों में शासन करने लायक एकमात्र स्वाभाविक पार्टी यानी बीजेपी को 'सिंगल लार्जेस्ट पार्टी' तो बनवा दिया पर बहुमत के आंकड़े से दूर रखा। फिर नतीजे आते ही आनन-फानन अनैतिक गठजोड़ कर सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया ताकि बीजेपी को लगे कि हाय, देर करने से गाड़ी छूट न जाए और वह भी बिना सोचे-समझे दावा ठोंक दे! फिर राज्यपाल को मजबूर कर दिया कि वह येदुरप्पाजी को सरकार बनाने का न्योता दे! आप पूछेंगे मजबूर कैसे? अरे भाई सोशल मीडिया में इतना हल्ला मचा दिया कि कभी पीएम (तब गुजरात के सीएम) थे के लिए सीट छोड़ने वाले वाजूभाई वाला तो बीजेपी के प्रत्याशी को ही बुलाएँगे कि उनकी जगह बैठा कोई भी व्यक्ति सोचता कि विपक्षी उनकी बा

काश! स्टूडियो का फ्लोर फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं! (एक भक्त की डायरी से)

वैसे तो मैं भी चोरी करना पाप मानता हूँ पर चूंकि यह जानने की उत्सुकता हमेशा मन में रही है कि एक भक्त के दिमाग में क्या चलता है, इसलिए मौका मिला तो मैं खुद को रोक नहीं पाया और एक भक्त (जो एक टीवी   न्यूज़ चैनल में काम करता है) की डायरी चुरा ली। यहाँ पेश है उसकी अप्रैल महीने में की गयी कुछ एंट्रीज़, विशेष 'बैठे-ठाले' के पाठकों के लिए: 01 अप्रैल आज एक अजीब किस्सा हो गया। मैंने जब ऑफिस में प्रवेश किया तो मेरे कुछ साथी जो किसी बात पर 'हो-हो' कर हंस रहे थे, मुझे देखते ही चुप हो गए। मैं समझ गया वह मेरे बारे में ही कुछ बात कर रहे होंगे और हंस रहे होंगे। फिर याद आया कि आज अप्रैल फूल डे है और मेरे ऑफिस में कुछ कुलीग ऐसे 'देश-द्रोही' हैं जिनकी राय में 'भक्त' और 'मूर्ख' में कोई अंतर नहीं है इसलिए मेरे पीछे मुझ पर हंस रहे होंगे। शिट! मैं भी क्या-क्या सोच लेता हूँ। कभी मुझे किसी ने भक्त कहा तो नहीं है और न ही मैं उनके सामने पीएम की तारीफ़ करता हूँ, फिर भला वह क्यों मुझे भक्त मानेंगे? मैंने बड़ी मुश्किल से नकारात्मक विचार अपने मन से निकाले और अपने डेस्क

कानून अपना काम करेगा...

जब किसी निर्भया, गुड़िया, आसिफा का बलात्कार किया जाए बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर दी जाए हत्या के बाद इंसाफ की राह में रोड़े अटकाए जाएँ   हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है कानून अपना काम करेगा जब कोई एनकाउंटर किया जाए फिर एनकाउंटर के गवाहों का एनकाउंटर किया जाए और एक न्यायाधीश की 'प्राकृतिक' मौत हो जाए हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है क़ानून अपना काम करेगा जब किसी अख़लाक़, पहलू खान को मार दिया जाए किसी जुनैद की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाए   किसी अफरजुल की हत्या का वीडियो बनाया जाए हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है क़ानून अपना काम करेगा   जब किसी रोहित को मार दिया जाए किसी नजीब को गायब कर दिया जाए जब डॉक्टर बनने की चाह रखने वाली कोई अनीता ख़ुदकुशी कर ले हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है क़ानून अपना काम करेगा जब किसी साईंबाबा को जेल में सड़ाया जाये जब किसी रावण पर रासुका लगाया जाए जब किसी डॉक्टर कफील को जेल भेज दिया जाए हमें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है कानून अपना काम करेगा जब दलितों को सरे-आम कोड़े लगाये जाएँ मूंछे रखने से लेकर घोड़ी चढ़ने की सज़ा क