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Showing posts from March, 2020

अफवाहें हैं अफवाहों का क्या?

इसे संयोग ही कहिये कि दुनिया के सबसे बड़े (अ)लोकतंत्र की सबसे बड़ी (अ) राजनीतिक पार्टी के पोर्टल पर विश्व भर में फैल चुकी और देश में पैर पसार रही एक महामारी के बारे में जानकारी वाले हिस्से में  FAQs पर मेरी नज़र पड़ गई। मुझे लगा कि ब्लॉग के पाठकों से यह जानकारी साझा करनी चाहिये सो साईट पर पूछे गये कुछ सवाल और दिये गये उनके जवाब, जो टू द प्वाइंट थे, यहां दे रहा हूं: -क्या यह सच है कि यह महामारी विश्व में चार महीने पहले फैलनी शुरू हुई? -जी। सच है। -क्या यह भी सच है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमें भी ढाई महीने पहले जानकारी दे दी थी जब यह महामारी फैल रही थी? -जी। बिल्कुल सच है। -और क्या यह भी सच है कि देश में महामारी विदेशों से आने वाले अमीर लोगों के कारण फैली? -जी। यह भी झूठ नहीं है। -क्या यह सच है कि गौैमूत्र से महामारी का उपचार हो सकता है? -देखिये, अब तक अगर यह सिद्ध नहीं हुआ कि गौमूत्र से उपचार हो सकता है तो यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि नहीं हो सकता। हम वैज्ञानिक पद्धति से सोचने, काम करने वाले लोग हैं सो अनुसंधान जारी है। -हमने यह महामारी फैलने से रोकने के लिये क्या किया

श्रीनगर हवाई अड्डे पर बांग्लादेश से लौटे छात्रों के परिजनों पर लाठीचार्ज

छात्रों के परिजनों ने आरोप लगाया कि कुछ छात्रों को हवाई अड्डे से बाहर ले जाया गया और ‘होम-क्वारंटाईन‘ किया गया जबकि अन्य को बदहाल आइसोलेशन इकाइयों में भेजा गया   अजान जावैद, 19 मार्च श्रीनगर: श्रीनगर हवाई अड्डे पर तब अव्यवस्था दिखी जब बांग्लादेश में पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्रों का एक समूह गुरुवार को लौटा। कुछ छात्रों के परिजनों के अनुसासर जैसे ही छात्र विमान से उतरे, उन्हें अराइवल सेक्शन में दो घंटे से ज्यादा रोक लिया गया बिना कोई कारण बताए। मामला तब बढ़ गया जब कुछ छात्रों को ‘चुपचाप‘ हवाई अड्डे से बाहर ले जाया गया जबकि अन्य को बताया गया कि उन्हें क्वारांटाईन किया जायेगा जबकि सभी छात्रों का दावा था कि वह कोलकाता हवाई अड्डे पर थर्मल इमेजिंग की फीवर स्क्रीनिंग से गुज़र चुके हैं। उड़ान कोलकाता होते हुए श्रीनगर आई थी। परिजनों ने आरोप लगाया कि छात्र जिन्हें बाहर ले जाया गया, अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बच्चे थे, इसलिए उन्हें होम क्वारांटाईन किया गया जबकि अन्य को ऐसे क्वारांटाईन केंद्रों में भेजा गया जहां ‘अपर्याप्त सुविधाएं‘ हैं। हवाई अड्डे से कुछ छात्रों को बाहर ले जाये जाने के बा

किसी दिन उसने अंदर से कुंडी लगा दी तो?

यह संवाद है सुनीता का, जो फिल्म 'थप्पड़' में अमृता के घर में सहायिका है। वह अमृता को बता रही होती है कि जब भी उसे उसका पति मारता है, वह घर से निकलकर बाहर से कुंडी लगा देती है। लेकिन उसकी यह आशंका बनी रहती है कि किसी दिन उसके पति अंदर से कुंडी लगा दी तो? तो वह कहां जायेगी?? 'थप्पड़' एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बनी एक महत्वपूर्ण फिल्म है। लेकिन इसके केंद्र में एक मध्य वर्ग की बेहद खूबसूरत, पढ़ी-लिखी लड़की का होना इसे कॉमर्शियल टच भी देता है और विषय की गंभीरता भी थोड़ी कम करता है। संक्षेप में फिल्म की कहानी यूं है कि अमृता के एक सफल और प्रसन्न गृहिणी होने का भ्रम टूटता है, जब एक पार्टी में उसका पति सबके सामने उसे थप्पड़ मार देता है। बाद में वह थप्पड़ को कार्यस्थल की कुंठा का नतीजा बताकर वह बाद में जस्टीफाई करने की कोशिश करता है। पर अमृता जिसने कॉलेज के समय ज़िंदगी से सिर्फ दो ही बातों, सम्मान और खुशी, की अपेक्षा की थी, वह इसे स्वीकार नहीं कर पाती और कुछ सोच-विचार के बाद घर छोड़कर मायके चली जाती है।  बाद में जब उसका पति कानूनी रास्ते से उसे जबरन घर लान

रिपोर्टर की खोपड़ी, संपादक की नौकरी बचाने के लिए बैलेंस बनाये रखना जरूरी है

हर बार लंबी-चौड़ी भूमिका क्या बांधना? आपके खादिम को एक लाभार्थी मीडिया हाऊस की ‘स्टाईल शीट‘ मिल गई। उसमें बाकी सब तो ठीक था पर ‘दंगे कवर कैसे न करें?‘ सेक्शन काफी रोचक लगा जो यहां ब्लॉग के पाठकों से शेयर कर रहा हूं। ‘दंगे कवर कैसे न करें?‘ दंगे एक संवेदनशील मुद्दा हैं और हमारे प्रतिष्ठित मीडिया हाऊस व हमारे पत्रकारों की जिम्मेदारी भरी भूमिका को देखते हुए यह जानना जरूरी है कि दंगे कैसे कवर न किये जाएं क्योंकि जब हमारे संस्थान के सदस्य यह जान जाएंगे तो उन्हें इसका भी पता लग जायेगा कि दंगे कैसे कवर किये जाते हैं। इसलिए नीचे दिये टिप्स ध्यान से पढ़ें: धर्म न पूछो दंगाइयों का हिंसा करने वाले समुदाय का धर्म (यदि वह बहुसंख्यक समुदाय से हो तो) कभी न दें। इसके दो कारण हैं। एक उनकी भावनाएं आहत हो सकती हैं और संबंधित संवाददाता, संपादक संस्थान पर बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओें को आहत करने के आरोप में और दो समुदायों के बीच वैमन्सय बढ़ाने के आरोप में मुकदमेबाजी झेलनी पड़ सकती है और दंगाइयों को ज्यादा ही गुस्सा आ गया तो कार्यालय में तोड़फोड़ से लेकर स्टाफ के किसी सदस्य की खोपड़ी भी फूट सकती है और मुक

‘शांति मार्च‘ में ‘गोली मारो‘ के नारे लगना, गोदी मीडिया के संपादक का धर्म संकट में फंसना

धर्म संकट गहरा था। गोदी मीडिया के क्या टीवी, क्या अखबार और क्या वेबसाईट, सभीके न्यूज़रूम में उस दिन यही माहौल था। यहां पेश है एक अखबार के न्यूजरूम में संपादक के केबिन में बुलाई गई बैठक का एक्सक्लूजिव ब्यौरा। मामले की पृष्ठभूमि संक्षेप में यूं है कि शहर में 40 से ज्यादा जानें लेने वाली हिंसा थमने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थन से एक शांति मार्च निकला। शांति मार्च में सत्तारूढ़ पार्टी के वह नेताजी भी शामिल थे, शामिल क्या थे, नेतृत्व ही वही कर रहे थे, जिनके नाम भड़काऊ भाषण देने और हिंसा भड़कने का कारण बनने को लेकर प्राथमिकी दर्ज होते-होते रह गई थी। खैर, शांति मार्च कवर करने के लिए जिस रिपोर्टर को भेजा गया था, वह लौटकर अपनी खबर वरिष्ठ उप संपादक को दे चुका था। एक नज़र डालने के बाद वरिष्ठ उप संपादक ने खबर मुख्य उप संपादक को दे दी। मुख्य उप संपादक ने समाचार संपादक को और समाचार संपादक ने खबर संपादक के केबिन में भिजवा दी। पांच मिनट के अंदर संपादक ने सबको केबिन में बुला लिया। संबंधित रिपोर्टर और चीफ रिपोर्टर को भी बुला लिया गया था और मीटिंग शुरू हो गई। संपादक : यह खबर हम कैसे छाप सकते हैं?