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Showing posts from March, 2017

अनारकली को एक आदाब तो जरूर बनता है हुज़ूर!

आज अनारकली ऑफ आरा से मिलना हुआ। जैसे अनारकली को हीरामन न मिलता तो वह 'भीसी बाबू' को सबक ना सिखा पाती। वैसे ही अवि को मुक्ता न मिलती तो वह अनारकली न बना पाता। यह फ़िल्म जितनी अवि की है, उतनी ही मुक्ता और बिटिया सुर की भी है। अविनाश ने स्वरा और पंकज के साथ मिलकर 2 घंटे का बेजोड़ सांग जोड़ा है।  जब गर्दा मुंबई में उड़ रहा है तो बिहार और यूपी में तो यकीनन आग लगी होगी। 'देसी तंदूर' यानि कि स्वरा को इस फिल्म के लिए लंबे समय तक याद किया जाएगा। पंकज त्रिपाठी के लिए क्या कहा जाए। यह  शख़्स अभिनय करता नहीं बल्कि किरदार को जीता है। संजय मिश्रा एक सदाबहार अभिनेता हैं। यह उन्होंने फिर साबित किया है। फिल्म हंसाती-गुदगुदाती है तो रुलाती और आक्रोश भी पैदा करती है। यह फिल्म उन हज़ारों-हज़ार अनारकलियों की आज़ादी, आत्मसम्मान और स्वाभिमान की भी कहानी है, जो नाच-गाकर अपना गुज़र-बसर करती हैं। साफगोई से कहूं तो अविनाश फ़िल्म को बाकी फिल्मकारों की तरह थोड़ा और कमर्शियल टच दे सकता था। कथानक को देखते हुए उसके पास इसका भरपूर अवसर भी था। लेकिन संसाधनों की भारी कमी के बावजूद उसने ऐसा नहीं कि

"तानाशाह खुद को आज़ाद करते हैं पर जनता को गुलाम बना लेते हैं"

माफ़ कीजिये, पर मैं कोई राजा नहीं बनना चाहता। यह मेरा काम नहीं है। मैं किसी पर राज करना या जीतना नहीं चाहता।  यदि संभव हो तो मैं हर किसीकी मदद करना चाहूँगा - यहूदी, गैर-यहूदी- अश्वेत - श्वेत। हम सभी एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। इंसान ऐसे ही होते हैं। हम एक-दूसरे की ख़ुशी में खुश रहते हैं, किसीकी पीड़ा में हमें ख़ुशी नहीं मिलती। हम एक-दूसरे से नफरत करना नहीं चाहते। इस दुनिया में हर किसीके लिए जगह है। और पृथ्वी समृद्ध है तथा सभी का पेट भर सकती है। ज़िन्दगी की राह मुक्त और खूबसूरत हो सकती है, पर हम रास्ता भटक चुके हैं। लालच ने हमारी आत्माओं में ज़हर घोल दिया है, दुनिया को नफरत से घेर लिया है, दुःख और रक्तपात में धकेल दिया है। हमने रफ़्तार विकसित की है पर हमने खुद को बंद कर दिया है। मशीन, जो हमें विपुलता देती है, ने हमें ज़रूरतमंद बना दिया है। हमारे ज्ञान ने हमें कुटिल बना दिया है। हमारी होशियारी ने हमें सख्त और निर्दयी बना दिया है। हम सोचते बहुत ज्यादा हैं और महसूस बहुत कम करते हैं। मशीनरी से ज्यादा हमें मानवता चाहिए। होशियारी से ज्यादा हमें करुणा और सहृदयता चाहिए। इन गुणों के बिना

#RapeThreatsNotOk ट्विटर पर बलात्कार की धमकियों के खिलाफ अभियान

चिन्मयी श्रीपदा एक गायिका हैं जिन्हें ट्विटर पर एक राय व्यक्त करने के बदले बलात्कार से लेकर चेहरे पर तेज़ाब फेंकने की धमकियाँ मिलीं। जब उन्होंने ट्विटर से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह तब तक कोई कार्रवाई नहीं कर सकते जब तक की पुलिस केस न हो।  श्रीपदा के अनुसार अधिकाँश औरतें यहाँ से आगे नहीं बढ़ पातीं और बस ट्विटर से खुद को अलग कर लेती हैं। पर उन्होंने लड़ाई जारी रखी और पुलिस में शिकायत की। श्रीपदा के अनुसार अंतत: प्रशंसकों की मदद से धमकियां देने वाले तीन लोगों की शिनाख्त हो पायी और उन्हें १० दिन के लिए जेल की हवा भी खानी पड़ी।  श्रीपदा के अनुसार वह सेलेब्रिटी हैं और उनके पास लड़ाई के लिए समय, संसाधन और समर्थन उपलब्ध था पर उन करोड़ों सामान्य औरतों का क्या जो ट्विटर पर हैं और रोज़ बलात्कार की धमकियों का शिकार होती हैं।  श्रीपदा के अनुसार यह ट्विटर की ज़िम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि उनके मंच का इस्तेमाल महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए न किया जाए।  श्रीपदा ने चेंज डॉट ओआरजी पर एक ऑनलाइन याचिका दाखिल की है और ट्विटर से ऐसे अकाउंट बंद करने का आह्वान किया है जिन पर महिलाओं को इस त

WHO: तेज़ी से अवसादग्रस्त हो रहा है भारत!

-विजयशंकर चतुर्वेदी अवसाद और अन्य मानसिक विकारों को लेकर वैश्विक स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक महत्वपूर्ण रपट सामने आई है।  इस रपट के मुताबिक दुनिया भर के 32.2 करोड़ अवसादग्रस्त लोगों में से 50% लोग भारत और चीन में बसते हैं। अकेले भारत में ही 5 करोड़ से अधिक लोग इस विकार से जूझ रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की यह रपट ऐसे समय आई है जब भारत में छात्रों का परीक्षा-काल चल रहा है और ज़्यादातर छात्र तनाव में होते हैं। परीक्षाओं में अपेक्षित सफलता न मिलने की आशंका और सामाजिक दबाव उन्हें अवसादग्रस्त कर देता है।  अगर उन्हें समय पर अभिभावकों अथवा परामर्शदाताओं का मार्गदर्शन न मिले तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं! बात सिर्फ छात्रों की ही नहीं है। हमारे देश में महिलाएं ,   मजदूर ,   किसान ,   नौकरीपेशा ,   व्यापारी …   यानी कोई वर्ग ऐसा नहीं है ,   जिसके अवसादग्रस्त होने की आशंका न हो। अवसाद और चिंता ऐसा मर्ज़ नहीं है जिसके लिए कोई आयुवर्ग निर्धारित किया जा सके। वर्ष 2018 के दौरान भारत में करीब 3.8 करोड़ लोग चिंताग्रस्त पाए गए थे और इसमें हर आयु वर्ग के लोग