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Showing posts from August, 2021

वैश्विक फिल्म बिरादरी के नाम टूटे दिल लेकिन गहरी उम्मीद के साथ फिल्मकार सहरा करीमी का खत!

दुनिया के सभी फिल्म समुदायों को, जो फिल्म और सिनेमा से प्यार करते हैं! मेरा नाम सहरा करीमी है और मैं एक फिल्म निर्देशक व 1968 में स्थापित की गई एकमात्र सरकारी फिल्म कंपनी अफगान फिल्म की महानिदेशक हूं। मैं आपको टूटे दिल और गहरी उम्मीद से लिख रही हूं कि आप मेरे प्यारे देशवासियों, खासकर फिल्मकारों को बचाने में साथ दें। पिछले कुछ हफ्तों में तालिबान ने कई प्रांतों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है। उन्होंने हमारे लोगों को मारा है, कई बच्चों का अपहरण किया है, बच्चियों को चाईल्ड ब्राईड के रूप में बेचा है, एक महिला को उनकी वेशभूषा के कारण मारा है, हमारे एक प्यारे कॉमेडियन को उन्होंने प्रताड़ित करने के बाद मार डाला है, हमारे ऐतिहासिक कवियों को मारा है, सरकार के संस्कृति व मीडिया प्रमुख को मारा है, सरकार से जुड़े लोगों की वह हत्याएं कर रहे हैं, कुछ लोगों को तो वह सरेआम फांसी पर लटका रहे हैं, हजारों परिवारों को उन्होंने दरबदर किया है। इन प्रांतों से भागे परिवारों ने काबुल के शिविरों में शरण ली है और वह बुरी स्थिति में हैं। शिविरों में लूट मची हुई है और बच्चे मर रहे हैं क्योंकि दूध नहीं है। यह मानव

नरक में मोहलत (कहानी)

  -प्रणव प्रियदर्शी घर से निकलते समय ही अनिता ने कहा था, ‘बात अगर सिर्फ हम दोनों की होती तो चिंता नहीं थी। एक शाम खाकर भी काम चल जाता। लेकिन अब तो यह भी है। इसके लिए तो सोचना ही पड़ेगा।’ उसका इशारा उस बच्ची की ओर था जिसे अभी आठ महीने भी पूरे नहीं हुए हैं। वह घुटनों के बल चलते, मुस्कुराते, न समझ में आने लायक कुछ शब्द बोलते उसी की ओर बढ़ी चली आ रही थी। अनिता के स्वर में झलकती चिंता को एक तरफ करके अशोक ने बच्ची को उठा लिया और उसका मुंह चूमते हुए पत्नी अनिता से कहा, ‘बात तुम्हारी सही है। अब इसकी खुशी से ज्यादा बड़ा तो नहीं हो सकता न अपना ईगो। फिक्कर नॉट। इस्तीफा वगैरह कुछ नहीं होगा। जो भी रास्ता निकलेगा, उसे मंजूर कर लूंगा, ऐसा भी क्या है।’ बच्ची को गोद से उतार, पत्नी के गाल थपथपाता हुआ वह दरवाजे से निकल पड़ा ऑफिस के लिए। इरादा बिल्कुल वही था जैसा उसने अनिता से कहा था। लेकिन अपने मिजाज का क्या करे। एक बार जब दिमाग भन्ना जाता है तो कुछ आगा-पीछा सोचने के काबिल कहां रहने देता है उसे।  मामला दरअसल वेतन वृद्धि का था। अखबार का मुंबई संस्करण शुरू करते हुए सीएमडी साहब ने, जो इस ग्रुप के मालिक ही न