(स्वीकरण: यह लेख एक
सरकारी विभाग के एक सीक्रेट नोट पर आधारित है जो पता नहीं किन कारणों से आम जनता
में सर्कुलेट नहीं किया गया। मैं 'अनऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट' में पकड़े जाने का
जोखिम लेकर इसे "बैठे-ठाले" ब्लॉग के पाठकों के लिए साझा कर रहा हूँ।)
नोटबंदी सफल थी। सफल है।
और सफल रहेगी। इसके उस समय घोषित, बाद में घोषित हुए और भविष्य में घोषित किये
जाने वाले सभी उद्देश्य सौ फ़ीसदी पूरे हुए। ऐसा हम दावे के साथ कह सकते हैं। सबसे
पहले उस समय घोषित उद्देश्यों की बात करें। काला धन निकालना और भ्रष्टाचार को जड़
से मिटा देना, आतंकवाद की कमर तोड़ देना तथा जाली करेंसी से निजात पाना।
99 फ़ीसदी से ज्यादा नोट
वापस आने का मतलब ही यही है कि न सिर्फ काला धन वापस आया उसके साथ नीला, पीला, लाल
और सफ़ेद धन भी वापस आ गया। है न? इतनी छोटी सी बात किसीके भेजे में नहीं घुस रही
तो हम क्या करें? जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है तो उसका तो काम तमाम हो ही चुका है।
आज पुलिस हवलदार से लेकर बड़े-बड़े नेता तक कोई एक पैसे की रिश्वत नहीं लेता। सारे
सरकारी काम बिना एक पैसे की रिश्वत लिए-दिए हो रहे हैं। लोगों को सरकारी दफ्तरों
से लेकर पुलिस थानों और कचहरी का दरवाज़ा देखने तक की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही
है। यहाँ तक कि हम सोचने लगे हैं कि हमें अब पुलिस चौकियां और कचहरियाँ बंद कर
देनी चाहियें। पर फिर यह सोचकर हम इस फैसले पर अमल नहीं कर पा रहे कि और भी अपराध
हैं ज़माने में भ्रष्टाचार के सिवा।
खैर, दूसरी बात। आतंकवाद
की हमने ऐसी कमर तोड़ी है कि वह भारत में दिख ही नहीं रहा। लेटेस्ट अपुष्ट खबर यह
है कि आतंकवाद चीन या रूस में हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी करवा रहा है। तीसरा उद्देश्य था जाली करेंसी को समाप्त करना सो उसका
इलाज तो हमने कर ही दिया। आपने टीवी पर भी खबर देखी होगी कि नए नोटों में हमने एक ख़ास
चिप लगाया हुआ है। इस चिप के कारण कोई नकली नोट छापने की हिम्मत ही नहीं कर रहा
क्योंकि नोट का डिजाईन तो वह कॉपी कर भी ले। चिप कहाँ से लाएगा?
बाद में हमने जो उद्देश्य
बताये थे उनमें डिजिटल इकॉनमी को बढ़ावा देना शामिल था। पहले उसीकी बात करते हैं।
हमारे इस उद्देश्य की सफलता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि हमने अखबार में
पढा है कि लोग सुलभ शौचालयों में मूतने के लिए एक रुपये और हगने के लिए दो रुपये
का भुगतान भी डिजिटल मोड से कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि लोगों के पास नकदी नहीं
है, पर डिजिटल पेमेंट करने की आदत सी हो गयी है लोगों को।
एक उद्देश्य जो हमने
बताया नहीं था वह यह भी था कि कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश में फिर से
लोगों के पास खूब सोना हो। हमें पता चला है नोटबंदी के दौरान लोगों ने काफी सोना
खरीदा था। यहाँ तक कि शारीरिक सज्जा के लिए आभूषण ही नहीं, लोगों ने सोने के बिस्किट
तक खरीदे थे। नोटबंदी की वजह से कितने लोगों के घर में आज सोना है अंदाज़ा लगा सकते
हैं? नहीं न? हम भी नहीं लगा सकते। इसके बाद देश में विकास के लिए हमें पैसा चाहिए
था सो टैक्स कंप्लायंस बढ़ाना था। नोटबंदी की वजह से इतने लोग कर अदा करने लगे हैं
कि हमसे पैसा संभले नहीं संभल रहा। देश में विकास की नदियाँ बह रही हैं। इतने
रोज़गार पैदा हो गए हैं कि हमारे देश में तो बेरोजगार बचे ही नहीं हैं और काम चूंकि
बढ़ गया है, बढ़ ही रहा है तो लोग कम पड़ रहे हैं और हम सीरियसली लेबर इम्पोर्ट करने
की सोच रहे हैं।
दरअसल नोटबंदी की वजह से
बैंकों में इतना पैसा आ गया कि बैंकों ने दोनों हाथों से क़र्ज़ देना शुरू किया।
लोगों ने अपना व्यवसाय शुरू किया। हमारे युवा अब नौकरी मांगते नहीं देते हैं।
देखते-देखते लोगों ने इतनी तरक्की कर ली कि अब किसीको पैसा चाहिए ही नहीं। ऐसी
समृद्धि किसी देश में नहीं होगी कि बैंक कहे "भाई लोन ले ले। भले लौटाना नहीं।"
पर फिर भी लोग लोन नहीं ले रहे। कुछ उँगलियों पर गिने जाने वाले बेईमान लोग थे जो
लोन लेकर विदेश चले गए हैं और लौटे नहीं पर उससे हमारी इकॉनमी पर कोई असर नहीं
पड़ने वाला क्योंकि हम आखिरकार दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ने वाली इकॉनमी हैं। बुलेट
ट्रेन की रफ़्तार से हमारी इकॉनमी बढ़ रही है। हमें कौन रोक सकता है?
अलावा इसके, यह कौन भूल
सकता है कि यह नोटबंदी ही थी जिसके कारण हमारे मॉडर्न रोबिन हुड ने देश में
समाजवाद की बयार लायी। करोड़ों बेईमानों की जेब से काला धन निकाला और चंद ईमानदार
और गरीबों की जेब में डाल दिया। इस जादू को दर्ज करने के लिए गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड
रिकॉर्ड वालों ने हमारे पीएम यानी परम मित्र से संपर्क
किया था पर आप तो जानते हैं वह कितने मॉडेस्ट हैं सो उन्होंने इस उपलब्धि को दर्ज
करवाने से विनम्रता से मना कर दिया।
यह सब हुआ है नोटबंदी के
कारण। खैर यह सब हम आपको क्यों बता रहे हैं। आप सब तो नोटबंदी के फायदों से वाकिफ
ही होंगे क्योंकि आपको ही तो यह सारे फायदे हुए हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या? बस, आपसे इतनी गुजारिश है कि
अफवाहों के शिकार न बनें कि नोटबंदी से लोगों को बैंकों की कतारों में तकलीफ हुई।
कोई 80 लोगों की जानें गयीं। करोड़ों कार्यघंटों का नुक्सान हुआ। लाखों से रोज़गार
छिना और कई छोटे व्यावसाय बर्बाद हुए। यह सब बकवास देश के दुश्मनों ने फैलाई हुई
है और फैला रहे हैं। हमें लेकिन पूरा भरोसा है आप इनके झांसे में नहीं आयेंगे। इसी
पॉजिटिव नोट पर मैं अपना संक्षिप्त वक्तव्य समाप्त करता हूँ। धन्यवाद। जय हिन्द।
भारत माता की जय!
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