(मज़दूर क्रांति के ध्येय को समर्पित एक बुजुर्ग साथी द्वारा तैयार करवाया गया पर्चा, बहस के लिए) भारत में जाति की समस्या कई दशकों से व्यापक चर्चा का विषय रही है। इस चर्चा में वामपंथी आंदोलन का भी हस्तक्षेप रहा है, खास कर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन का। वामपंथी आन्दोलन में इस समस्या को लेकर एक लम्बे अरसे से विचार-मंथन चल रहा है। एक सैद्धान्तिक आन्दोलन होने के चलते जब कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन ने इसमें हस्तक्षेप किया और इस विषय पर विचार-मंथन शुरू किया तब यह स्वाभाविक ही था कि विषय पर वह व्यापकता और गहराई में जाकर विचार-विमर्श करें तथा इसका सांगोपांग अध्ययन करें और समाधान प्रस्तुत करें। जाति-व्यवस्था की उपस्थिति और समस्या के अन्तर्वस्तु एवं स्वरूप पर वामपंथी आन्दोलन में काफी हद तक एकता है। आन्दोलन एकमत है कि जाति-व्यवस्था भारतीय समाज का यथार्थ है। भारतीय इतिहास के खास कर ज्ञात इतिहास से लेकर भक्ति आन्दलोन तक के विचारकों तथा फुले, अम्बेडकर, पेरियार, लोहिया जैसे पुरोधाओं ने जाति-समस्या पर महत्वपूर्ण विमर्श किया और उसके उन्मूलन के लिए व्यावहारिक आन्दचोलनों को जन्म दिया...