नज़र लगने का 'कांसेप्ट' कभी मेरी समझ में नहीं आया! ऑफिस में पढ़े-लिखे सहयोगी भी अक्सर छींक आने से लेकर बुखार हो जाने पर कह देते हैं, "लगता है किसीकी नज़र लग गयी!" पर यह नज़र लगना होता क्या है? असल में इसकी जड़ में 'हैव्स" की 'हैव्स नॉट' के प्रति हीन भावना, असुरक्षा की भावना है। दरअसल आपके पास जो भी होता है, जो अपनी समझ के अनुसार आपने चाहे अपनी काबिलियत के बल पर हासिल किया हो या ऐसे ही मिल गया हो, आपको लगता है कि वह लोग जिनके पास वह नहीं है, आपसे जलते हैं। मन ही मन वह चाहते हैं कि आपसे यह छिन जाए। हालाँकि यह भी सच है कि किसीके चाहने भर से किसीका कुछ होता-जाता नहीं है। बद्दुआ एक कमज़ोर व्यक्ति का लड़ाई हार जाने पर आखिरी हथियार है। वह यही सोचकर सब्र कर लेता है, "मुझ पर अन्याय करने वाले का मैं कुछ नहीं बिगाड़ सका तो क्या, भगवान्/खुदा/गॉड या कहें कुदरत उसे सबक सिखाएगी।" ऐसा कुछ नहीं होता। पर फिर भी आश्चर्यजनक रूप से अगर लोग "गरीब की हाय" या "किसीकी बद्दुआ" से डरते हैं तो इसके पीछे उनका अपराध बोध होता है कि उन्होंने सामने वाले के सा...