Skip to main content

तुम कब जाओगे, कोरोना?

 

कोरोना, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? जब तुम आये थे, हमने तुम्हारा स्वागत किया था। तुम्हारे लिए देश के द्वार बोले तो अपने एयरपोर्ट खोल रखे थे। यह सोचा था कि कुछ दिन बिताकर चले जाओगे। तुम्हारे स्वागत में हमने ताली भी बजवाई, थाली भी पर तुम पर कोई असर नहीं हुआ, कठोर। फिर हमने दिये और मोबाइल टॉर्च जलवाकर दिवाली भी मनवाई। मंशा थी कि इस देश का सबसे बड़ा त्यौहार देखने के बाद तुम खुशी-खुशी चले जाओगे, पर तुम बड़े ढीठ निकले। गये नहीं। शायद तुम हमारे कुछ भक्त मंत्रियों के 'गो कोरोना गो' मंत्रजापा से नाराज़ हो गये और यहीं रहने का फैसला कर लिया। हमने लॉकडाऊन कर एक लक्ष्मण रेखा खींची और 130 करोड़ लोगों को घरों में बंद कर दिया। और तुम्हें 21 दिन का अल्टीमेटम दिया। महाभारत के युद्ध से तीन दिन ज़्यादा ही दिये। पर तुम नहीं गये। गौमूत्र से लेकर कोरोनिल की धमकियां दीं। तुम आईटी सेल से निकली फेक न्यूज़ की तरह फैलते रहे। मीडिया को साथ में लेकर हमने तुम्हें इग्नोर करना शुरू कर दिया। प्राइम टाइम डिबेट से तुम्हें गायब करवा दिया और बॉलीवुड, राफेल, पड़ोसी देश को मोबाइल एप्प छोड़, टीवीतोड़ जवाब आदि पर चर्चा करवाने लगे। हमारा मानना था कि जिस तरह अतिथि की अनदेखी करो तो उसे अपमान लगता है, तुम भी अपमानित महसूस करोगे पर तुम बड़े बेशर्म निकले। तुम नहीं गये। हमें ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम देश में ही छिपे हमारे दुश्मनों से मिल गये हो। पप्पू ने दस अगस्त तक बीस लाख मामलों की भविष्यवाणी की थी, तुमने आठ अगस्त का भी इंतज़ार न किया। तुमने हमारे उन दावों का भी लिहाज़ न किया कि हमने तुम्हें काबू में रखा हुआ है, कि दुनिया हमारी समझदारी भरी नीतियों और उठाये कदमों की तारीफ़ कर रही है। तुमने तो हमारे कोरोनालॉजी वाले मंत्री, भाभीजी के पापड़ वाले मंत्री समेत कितनों को लपेट लिया। खैर, हम भी हार मानने वाले नहीं हैं। अब हमने रामबाण उपाय के तौर पर मंदिर का भूमिपूजन कर दिया है। अब तो तुम्हें जाना ही होगा और नहीं भी गये तो एक सौ तीस करोड़ लोगों के मन में बिठा ही दिया है कि कोरोना-फोरोना तो आते-जाते रहते हैं और लोग भी फ्लू से लेकर तमाम बीमारियों से मरते रहते हैं, भक्ति नहीं छूटनी चाहिए। राम का नाम लो और महंगाई, गरीबी, भूख, बेरोज़गारी, बीमारी, कोरोना महामारी सब भूल जाओ। इतना तो हमने पहले ही बोल दिया था कि आत्मनिर्भर बनो यानी सरकार के भरोसे मत रहो। अब हमने उन्हें राम भरोसे कर दिया है। ठीक है?
 
#कोई नहीं जी! - महेश राजपूत

Comments

Popular posts from this blog

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 5

(कार्टून : सुहैल नक्शबंदी के आर्काइव से, सौजन्य : एफएससी) (एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट)                  कश्मीर में इन्टरनेट शटडाउन कश्मीर के लिए इन्टरनेट शटडाउन कोई अनोखी बात नहीं है और 2012 से 180 बार इसका अनुभव कर चुका है । 4 अगस्त 2019 को मोबाइल और ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाओं पर प्रतिबन्ध इस साल के सात महीनों में 55वां था । पर यह पहली बार है कि मोबाइल, ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाएं, लैंडलाइन और केबल टीवी सब एक साथ बंद किये गए, नतीजतन कश्मीर के अन्दर और बाहर संचार के हर प्रकार को काट दिया गया । 2012 से इन्टरनेट शटडाउन का हिसाब रख रहे सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेण्टर (एसएफएलसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल इन्टरनेट सेवाओं पर सबसे बड़ी अवधि का बैन 2016 में 08 जुलाई 2016 को बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद विरोध प्रदर्शनों के समय रहा. तब मोबाइल इन्टरनेट सेवाएं 133 दिन बंद रहीं । एसएफएलसी ट्रैकर के अनुसार, "पोस्टपेड नम्बरों पर इन्टरनेट सेवाएं 19 नवम्बर 2016 को बहाल की गयीं, लेकिन प्रीपेड उपयोगकर्ताओं की मोबाइल सेवाएं जनवरी 2017 मे...

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम...

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 3

(एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट) हमारी तहकीकात की प्रमुख बातें: सेंसरशिप और समाचारों पर नियंत्रण हालांकि कोई अधिकारिक सेंसरशिप या बैन लागू नहीं है पर संचार चैनलों की कमी और आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण पत्रकारों को समाचार जुटाने के निम्नलिखित क़दमों में समस्या आ रही है:        इन्टरनेट और फ़ोन बंद होने के कारण घटनाओं के बारे में जानकारी मिलने या संपर्कों और स्रोतों से जानकारी मिलने में       कहीं आ-जा न पाने के कारण, कुछ इलाकों में प्रवेश पर पाबंदियों से, समाचार जुटाना बाधित हो रहा है       खुद या गवाहों से पुष्टि करने से रोके जाने, आधिकारिक स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करने से मना करने के कारण समाचारों की विश्वसनीयता से समझौते के खतरे हैं        संपादकों से ईमेल अथवा फ़ोन पर तथ्यों की पुष्टि के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब न दे पाने के कारण या ख़बरों में सुधार न कर पाने के कारण ख़बरें छप नहीं पा रही हैं। केवल एक खबर मीडिया केंद्र में जाकर अपलोड करना काफी नहीं है यदि आप सवालों के जवाब देने के लिए...