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"तानाशाह खुद को आज़ाद करते हैं पर जनता को गुलाम बना लेते हैं"




माफ़ कीजिये, पर मैं कोई राजा नहीं बनना चाहता। यह मेरा काम नहीं है। मैं किसी पर राज करना या जीतना नहीं चाहता। यदि संभव हो तो मैं हर किसीकी मदद करना चाहूँगा - यहूदी, गैर-यहूदी- अश्वेत - श्वेत। हम सभी एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। इंसान ऐसे ही होते हैं। हम एक-दूसरे की ख़ुशी में खुश रहते हैं, किसीकी पीड़ा में हमें ख़ुशी नहीं मिलती। हम एक-दूसरे से नफरत करना नहीं चाहते। इस दुनिया में हर किसीके लिए जगह है। और पृथ्वी समृद्ध है तथा सभी का पेट भर सकती है। ज़िन्दगी की राह मुक्त और खूबसूरत हो सकती है, पर हम रास्ता भटक चुके हैं।
लालच ने हमारी आत्माओं में ज़हर घोल दिया है, दुनिया को नफरत से घेर लिया है, दुःख और रक्तपात में धकेल दिया है। हमने रफ़्तार विकसित की है पर हमने खुद को बंद कर दिया है। मशीन, जो हमें विपुलता देती है, ने हमें ज़रूरतमंद बना दिया है। हमारे ज्ञान ने हमें कुटिल बना दिया है। हमारी होशियारी ने हमें सख्त और निर्दयी बना दिया है। हम सोचते बहुत ज्यादा हैं और महसूस बहुत कम करते हैं। मशीनरी से ज्यादा हमें मानवता चाहिए। होशियारी से ज्यादा हमें करुणा और सहृदयता चाहिए। इन गुणों के बिना, ज़िन्दगी हिंसक होगी और सभी कुछ खो जाएगा।।।
विमान और रेडियो ने हमें करीब लाया है। इन खोजों का मूल ही इंसानों में अच्छाई को पुकारता है, वैश्विक भाईचारे की मांग करता है - हम सभीके एक होने की मांग करता है। इस वक्त मेरी आवाज़ दुनिया के लाखों लोगों तक -- लाखों आशाहीन पुरुषों, औरतों और छोटे बच्चों - जो ऐसी व्यवस्था के शिकार हैं जो लोगों को यातना देती है और निर्दोष लोगों को जेलों में ठूस लेती है - पहुँच रही है।
जो मुझे सुन पा रहे है, मैं उनसे कहता हूँ, निराश न हो। हमारी पीड़ा इंसान की तरक्की के रास्ते से डरने वाले लोगों की कड़वाहट और लालच का गुज़रना है। लोगों की यह नफरत भी गुज़र जायेगी, और तानाशाह मरेंगे और लोगों से जो उन्होंने ताकत छीनी है वह लोगों के पास वापस आएगी। और लोग मर सकते हैं पर आज़ादी कभी नहीं मरेगी।
सैनिको, तुम अपने आप को उन पशुओं के हवाले मत करो - वह लोग जो तुम्हारा तिरस्कार करते हैं - तुम्हें गुलाम बनाते हैं - तुम्हारी जिंदगियों को अनुशासन में बांधते हैं - तुम्हें बताते हैं कि तुम क्या करो - क्या सोचो और क्या महसूस करो! जो तुम्हें खिलाते हैं - तुमसे भेड़-बकरियों सा व्यवहार करते हैं, तुम्हारा चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। तुम खुद को इन अस्वाभाविक लोगों - मशीनी लोगों -- मशीनी दिमागों और मशीनी दिलों वाले लोगों के हवाले न करें! तुम मशीन नहीं हो! तुम पशु नहीं हो! तुम इंसान हो! तुम्हारे दिलों में इंसानियत के प्रति प्यार भरा है! तुम घृणा नहीं करते! केवल वही लोग नफरत करते हैं जिन्हें प्यार न मिला हो, जिन्हें प्यार न मिला हो और जो अस्वाभाविक हों! सैनिको, गुलामी के लिए न लड़ें! आज़ादी के लिए लड़ें!
१७ वें अध्याय में संत ल्युक ने लिखा है: "भगवान का साम्राज्य इंसान के भीतर है" - किसी एक इंसान या इंसानों के किसी एक समूह के भीतर नहीं, बल्कि सभी इंसानों में है! आपमें है! आप, लोगों के पास ही ताकत है - मशीनें बनाने की ताकत। ख़ुशी बनाने की ताकत! आप, जनता के पास ही इस ज़िन्दगी को मुक्त और खूबसूरत बनाने, इसे एक अद्भुत रोमांच बनाने की ताकत है।
तो आइये हम -- लोकतंत्र के नाम पर - इस ताकत का इस्तेमाल करें - हम सब एक हों। हम एक नयी दुनिया के लिए लड़ें - एक सभ्य दुनिया के लिए जो लोगों को काम करने का मौका देगी - जो युवाओं को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा देगी। इन चीज़ों के वायदों से क्रूर लोग सत्ता में आये हैं। पर वह झूठे हैं! वह उस वायदे को पूरा नहीं करते। कभी नहीं करेंगे!
तानाशाह खुद को आज़ाद करते हैं पर जनता को गुलाम बना लेते हैं! अब आइये हम उस वायदे को पूरा करने के लिए लड़ें! हम दुनिया को आज़ाद करने के लिए लड़ें - राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ दें - लालच, नफरत और असहिष्णुता को समाप्त करें। आइये हम ऐसी दुनिया के लिए लड़ें जो विवेक की दुनिया हो, जहाँ विज्ञान और तरक्की सभी लोगों के लिए खुशियाँ लाये। सैनिको! लोकतंत्र के नाम पर, हम सब एक हों!

(नोट: चार्ली चैपलिन ने यह भाषण फिल्म "दि ग्रेट डिक्टेटर" के क्लाइमेक्स में दिया था। अपने देश और दुनिया का माहौल देखकर भाषण आज भी मौजूं लगता है।)   


(एक अनुरोध: अगर पोस्ट अच्छी लगी हो शेयर करें और अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें।)  

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