Skip to main content

अच्छे दिनों की ट्रेन अनिश्चितकालीन देरी से चल रही है! असुविधा के लिए खेद है!





कार्टून साभार : राजेंद्र धोड़पकर,  जैसी-तैसी सत्याग्रह
अच्छे दिनों की ट्रेन का इंतज़ार कर रहे सभी भारतीय कृपया ध्यान दें, अच्छे दिनों की ट्रेन अनिश्चितकालीन देरी से चल रही है और 16 मई 2014 को पहुँचने वाली ट्रेन अभी हमें मिली जानकारी के अनुसार 2019 तक तो नहीं पहुँचने वाली। यात्रियों की असुविधा के लिए हमें खेद है!
इससे पहले कि आप आक्रोशित हों, हमें अपशब्दों से नवाजें या तोड़फोड़ जैसी देशद्रोही गतिविधियां शुरू करें, हम आपसे अनुरोध करना चाहेंगे कि यह देश आपकी ही संपत्ति (हमें तो केवल इसे मैनेज करने का ठेका मिला हुआ है) है कृपया इसे नुकसान न पहुंचाएं अन्यथा हमें कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए आप पर लाठी और गोली चलानी पड़ सकती है।
इस वैधानिक चेतावनी के बाद वैसे हमें तो आपको कोई सफाई देने की ज़रुरत नहीं हैं पर फिर भी आपको ट्रेन के लेट होने के कारण बता देते हैं। आप सवा सौ करोड़ भारतीय हो और अच्छे दिनों की ट्रेन एक। अब वैसे भी इसमें सब एक साथ सवार नहीं हो सकते। इसलिए ट्रेन को अभी यार्ड से निकाला ही नहीं गया है। इसमें डिब्बे जोड़े जाने का काम चल रहा है ताकि सभी भारतीय इसमें सवार हो सकें। कोई रह गया तो फिर हम पर भेदभाव का आरोप लगेगा। तो यह रहा पहला कारण। दूसरा कारण आप सवा सौ करोड़ भारतीय कई वर्गों, जातियों, धर्मों में बंटे हैं। हमें यह भी तय करना है कि अच्छे दिनों की ट्रेन में डिब्बे किस आधार पर बनाये जाएँ क्या हर धर्म, जाति, वर्ग के लिए अलग-अलग डिब्बे हों? क्या आरक्षण भी होना चाहिए? वैसे तो हम जाति-धर्म के आधार पर आरक्षण के खिलाफ हैं। हमारा यह स्पष्ट मानना है कि आरक्षण होना ही नहीं चाहिए और बहुत आवश्यक हो तो आर्थिक आधार पर होना चाहिए। आर्थिक आधार पर आरक्षण वैसे भी हमारे देश में बहुत पहले से लागू है ही। जो आर्थिक रूप से बेहद सक्षम (जिन्हें आपमें से कुछ देशद्रोही धनपशु कहते हैं) हैं, हर चीज़, हर सेवा, हर संसाधन पर उनका पहला अधिकार सुरक्षित है। वैसे एक टॉप सीक्रेट बात दें, इस वर्ग को तो अच्छे दिनों की ट्रेन का इंतज़ार भी नहीं है और उनके पास पहले से अपने अच्छे दिनों के चार्टर प्लेन, हेलीकॉप्टर हैं। खैर, विषयांतर हो रहा है, यहाँ बात अच्छे दिनों की ट्रेन की हो रही थी जो लेट चल रही है।
तो हम कह रहे थे कि ट्रेन लेट होने की जेन्युइन वजहें हैं, देखिये न, कोई भी बदलाव रातोंरात तो नहीं हो सकता। हमारे पास कोई जादू का डंडा तो है नहीं कि घुमाया और 'गिली-गिली' या 'आबरा-का-डाबरा' जैसा कुछ बोलकर इस देश में पिछले ६०० सालों में चल रहे बुरे दिनों के राज को एक झटके में ठीक कर दें (हां, हाँ, हमें याद है हमने पहले सिर्फ कांग्रेस के ६० सालों के (कु)शासन की बात की थी पर सत्ता में आने के बाद हमें अंग्रेजों के २०० सालों और मुगलों के राज की भी याद आई)! तो हम आपसे अनुरोध करेंगे कि आपने मुगलों, अंग्रेजों और कांग्रेस को ६०० साल दिए हैं हमें ६० साल तो दीजिये! क्या कहा, २०१३ में हमने आपसे सिर्फ ६० महीने मांगे थे? आप गलत नहीं कह रहे पर जैसाकि हमने आपको अभी-अभी बताया कि तब हमने कांग्रेस के ६० सालों के शासन के बदले ६० महीने मांगे थे, अंग्रेजों और मुगलों की बात बाद में हमारे ध्यान में आई तो हम आपसे अनुरोध करना चाहेंगे कि आप हमारे संशोधित अनुरोध पर विचार करें! देखिये आपने हमें फिर पटरी से उतार दिया, सॉरी, विषय से भटका दिया। तो हम आपको बता यह रहे थे कि अच्छे दिनों की ट्रेन लेट चल रही है।       
लेट चलने की और भी वजहें हैं साहब, ट्रेन कम डिब्बों के साथ ही सही हम यार्ड से निकालें भी तो कैसे, उसके लिए पटरी तो अभी बिछी ही नहीं। बिना पटरी के ट्रेन चलाकर हम आपकी जान जोखिम में तो नहीं डाल सकते न! आपकी सुरक्षा हमारे लिए सर्वोपरि है, साहब! और हाँ अभी हमें ट्रेन के इंजन के लिए इंटरनेशनल टेंडर भी तो निकालना है।  
सभी धर्म, जाति, वर्गों (या हम तय कर सकते हैं कि ट्रेन में जगह की कमी को देखते हुए किस धर्म, जाती, वर्ग के लोगों को ट्रेन में बैठने से रोका जा सकता है) के लिए डिब्बे जुड़ते ही, इंजन बनते ही, पटरी बिछाते ही ट्रेन चल पड़ेगी और आप सभी को, जो अच्छे दिनों की ट्रेन का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहे हैं, सूचित किया जाएगा।
और इस (देशद्रोही इसे अशुभ कहेंगे) सूचना का अंत हम एक सुखद जानकारी के साथ करना चाहेंगे। अच्छे दिनों की इस ट्रेन में कुछ डिब्बों की डिजाईन तैयार करने का काम हमने शुरू कर दिया है और यह अलग-अलग थीम पर हो रहा है, जैसे 'स्वच्छ भारत अभियान', 'सभी के लिए आवास', 'किसानों की आय दुगनी करना', 'बुलेट ट्रेन', 'न्यू इंडिया', 'सभी के लिए बिजली' वगैरा-वगैरा जिसका फिलहाल लक्ष्य हमने 2022 तक रखा है! (क्या कहा? हमारा वर्तमान कार्यकाल 2019 तक ही है, क्यों मज़ाक कर रहे हैं साहब! हमें पूरा विश्वास है आप हमें एक मौका और देंगे। इसीलिए तो हमारी कोई भी योजना 'शॉर्ट टर्म' की है ही नहीं, हम तो लॉन्ग टर्म में ही सोचते हैं। आखिर लॉन्ग टर्म गेन के लिए शॉर्ट टर्म का पेन तो आपको ही सहना होगा न! आशा है, नोटबंदी को आप भूले नहीं होंगे! देखिये, हम फिर पटरी से उतर गए! तो, देशवासियो, जैसे आपने अब तक सब्र से काम लिया है, आगे भी लेंगे और अच्छे दिनों की ट्रेन का इंतज़ार इसी तरह शान्ति बनाए रखकर करेंगे, बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर 'करण-अर्जुन' में राखी के किरदार की तरह 'मेरे करण-अर्जुन आयेंगे' का विश्वास रखेंगे तो अच्छे दिनों की ट्रेन ज़रूर आएगी, आपके इस जन्म में न आये तो अगले जन्म में आएगी लेकिन आएगी ज़रूर, यह आपसे हमारा वादा है! आपका इंतज़ार उबाऊ न हो इसके लिए अब हम देशभक्ति के गीत चला देते हैं! जय हिन्द! भारत माता की जय! वन्दे मातरम्!     

    

-कोई नहीं जी!-4/महेश राजपूत 

Comments

Popular posts from this blog

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 5

(कार्टून : सुहैल नक्शबंदी के आर्काइव से, सौजन्य : एफएससी) (एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट)                  कश्मीर में इन्टरनेट शटडाउन कश्मीर के लिए इन्टरनेट शटडाउन कोई अनोखी बात नहीं है और 2012 से 180 बार इसका अनुभव कर चुका है । 4 अगस्त 2019 को मोबाइल और ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाओं पर प्रतिबन्ध इस साल के सात महीनों में 55वां था । पर यह पहली बार है कि मोबाइल, ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाएं, लैंडलाइन और केबल टीवी सब एक साथ बंद किये गए, नतीजतन कश्मीर के अन्दर और बाहर संचार के हर प्रकार को काट दिया गया । 2012 से इन्टरनेट शटडाउन का हिसाब रख रहे सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेण्टर (एसएफएलसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल इन्टरनेट सेवाओं पर सबसे बड़ी अवधि का बैन 2016 में 08 जुलाई 2016 को बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद विरोध प्रदर्शनों के समय रहा. तब मोबाइल इन्टरनेट सेवाएं 133 दिन बंद रहीं । एसएफएलसी ट्रैकर के अनुसार, "पोस्टपेड नम्बरों पर इन्टरनेट सेवाएं 19 नवम्बर 2016 को बहाल की गयीं, लेकिन प्रीपेड उपयोगकर्ताओं की मोबाइल सेवाएं जनवरी 2017 मे...

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम...

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 3

(एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट) हमारी तहकीकात की प्रमुख बातें: सेंसरशिप और समाचारों पर नियंत्रण हालांकि कोई अधिकारिक सेंसरशिप या बैन लागू नहीं है पर संचार चैनलों की कमी और आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण पत्रकारों को समाचार जुटाने के निम्नलिखित क़दमों में समस्या आ रही है:        इन्टरनेट और फ़ोन बंद होने के कारण घटनाओं के बारे में जानकारी मिलने या संपर्कों और स्रोतों से जानकारी मिलने में       कहीं आ-जा न पाने के कारण, कुछ इलाकों में प्रवेश पर पाबंदियों से, समाचार जुटाना बाधित हो रहा है       खुद या गवाहों से पुष्टि करने से रोके जाने, आधिकारिक स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करने से मना करने के कारण समाचारों की विश्वसनीयता से समझौते के खतरे हैं        संपादकों से ईमेल अथवा फ़ोन पर तथ्यों की पुष्टि के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब न दे पाने के कारण या ख़बरों में सुधार न कर पाने के कारण ख़बरें छप नहीं पा रही हैं। केवल एक खबर मीडिया केंद्र में जाकर अपलोड करना काफी नहीं है यदि आप सवालों के जवाब देने के लिए...