नोटबैन जीएसटी से ज्यादा घातक था, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार नोटबैन पर अड़ी रही बल्कि आज भी इसे सफल करार दे रही है और आगामी 8 नवंबर को ‘काला धन विरोधी दिवस‘ के रूप में मनाना चाहती है लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर सरकार ने अपने कदम पीछे हटाये और न सिर्फ कुछ दरों में बल्कि प्रक्रियागत बदलाव भी किये तथा और भी सुधारों की बात मान रही है, क्यों? एक विश्लेषण:- नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले एक साल में दो ऐतिहासिक आर्थिक ‘नीतियों‘ की घोषणा की - नोटबैन और जीएसटी। दोनों में कई पहलू समान थे तो कुछ एकदम विपरीत भी। पहले समान पहलुआें की बात की जाए। दोनों देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो चुकी हैं। कम से कम इनके अमल में अाने के बाद तुरंत जो दुष्प्रभाव सामने आए उन्हें देखकर ऐसा कहा ही जा सकता है, दीर्घावधि में क्या होगा, कहा नहीं जा सकता, सरकार चाहे जो दावे करे। अचानक किये गये नोटबैन से 200 से ज्यादा जानें गईं, लाखों लोग रातोंरात बेरोजगार हुए, कई लघु व्यवसाय समाप्त हो गये। नोटबैन से सबसे ज्यादा प्रभावित सबसे गरीब और कमजोर तबका (दिहाड़ी मजदूर, असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारी, छो...