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Showing posts from January, 2018

"बोले तो पकौड़े बेचने के फैसले ने मेरी ज़िन्दगी बदल डाली!"

संपादक का फरमान था, एक पकौड़े बेचने वाले का इंटरव्यू करना था। सो मैं सड़क के किनारे एक ठेले पर पहुंचा। ठेले पर बोर्ड लगा था, "राम भरोसे रेस्तरां"। अच्छी-खासी भीड़ थी इसलिए ठेले के मालिक को बात करने के लिए मनाने में थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पेश है साक्षात्कार के कुछ महत्वूर्ण अंश:  "आप कब से पकौड़े बेचते हैं?" "जी, 16 मई 2014 से।" "उससे पहले क्या करते थे?" "बेरोजगार ही था।" "फिर अचानक पकौड़े तलने का खयाल कैसे आया?" "15 मई की रात एक महापुरुष सपने में आये और उन्होंने कहा 'बालक, तेरे दुःख भरे दिन बीत गये और अच्छे दिन आ गए है। कल से तू नौकरी के लिए दर-दर भटकना बंद कर दे, तुझे नौकरी मांगनी नहीं पगले नौकरी देनी है! तू कोई अपना काम शुरू कर!" "फिर...?" "फिर मैंने असमंजस में पूछा कि सर मैं क्या करूं? उन्होंने कहा चाय-पकौड़ी का ठेला लगा ले, दिन में 200 रुपये कहीं नहीं जायेंगे। बस फिर क्या था, यह दिव्य ज्ञान मिलने के बाद मैंने अगले दिन से ही यह 'राम भरोसे रेस्तरां' का बोर्ड लगाकर यह ठेला शुरू...

गडकरी का बयान किस ‘राष्ट्रवाद’ की मिसाल है?

बीते दस दिनों से दिमाग में यह खयाल बार-बार गर्दिश कर रहा था कि बात-बात पर राष्ट्रवाद और देशभक्ति की कसमें खाने और खिलाने वाली मोदी सरकार के केंद्रीय परिवहन , हाईवे , जहाजरानी एवं जल-संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने आखिर ऐसा बयान क्यों दिया! उनका बयान किन्हीं देशद्रोही तत्वों को लेकर भी नहीं , परम देशभक्त नौसेना को लेकर था। इसलिए गडकरी के बयान को न तो मैं हल्के में ले पा रहा हूं न ही उसकी अनदेखी कर पा रहा हूं। आप पूछेंगे कि गडकरी साहब ने ऐसा क्या कह दिया? उन्होंने 11 जनवरी को मुंबई में आयोजित एक समारोह के दौरान युवराज दुर्योधन की स्टाइल में कहा था, "दक्षिण मुंबई की प्राइम लैंड में नौसेना को आवास के लिए एक इंच भी ज़मीन नहीं देंगे!" यही नहीं जोश में उन्होंने नसीहत दे डाली कि नौसेनाकर्मियों को तो आतंकवादियों पर नज़र रखने के लिए पाकिस्तान की सीमा पर गश्त लगाना चाहिए। उन्हें दक्षिण मुंबई जैसे पॉश इलाके में आवास की जरूरत क्या है? गडकरी का दावा है कि उनके पास कई नौसेनाकर्मी दक्षिण मुंबई में आवास पाने का अनुरोध लेकर आते हैं। गडकरी ने यह बयान किसी आपसी बातचीत में नहीं बल्कि एक उच्च ...

नाईट ऑफ जनवरी सिक्सटींथ

16 जनवरी आई तो आयन रैंड के उक्त शीर्षक वाले नाटक की याद आ गयी. बहुत पहले पढ़ा था. नाटक एक कोर्ट रूम ड्रामा था जिसमें कई सारी बातें अपारंपरिक थीं। नायक वह था जो अपने बिज़नस में घाटे के कारण बैंक को चीट करने के लिए अपनी मौत का ड्रामा स्टेज करता है और खलनायक बैंक प्रबंधक जो अपने बैंक को बचाना चाहता है। नायिका नायक की पत्नी नहीं बल्कि ऑफिस की सेक्रेटरी थी जिससे उसके सम्बन्ध थे। इस नाटक से प्रेरणा लेकर हिंदी में फिल्म भी बनी थी 'गवाही'। निर्देशन अनंत बालानी ने किया था जिन्होंने बाद में विक्टर बनर्जी को लेकर 'जॉगर्स पार्क' बनायी थी और 'चमेली' (करीना कपूर) शुरू की थी लेकिन फिल्म के बीच में उनके निधन के कारण सुधीर मिश्र ने फिल्म को पूरा किया था। खैर बात 'गवाही' की हो रही थी। फिल्म में शेखर कपूर (मासूम, मिस्टर इंडिया, बैंडिट क्वीन जैसी फिल्मों के निर्देशक), जीनत अमान (प्रेमिका) और रंजीता (पत्नी) की प्रमुख भूमिकाएं थीं। फिल्म मैंने उल्हासनगर के अमन सिनेमाघर में देखि थी। फिल्म मुझे दो वजहों से अच्छी लगी। एक तो ड्रामा मैं पढ़ चुका था और दूसरी वजह इसका एक गीत ...

क्या करें कंट्रोल नहीं होता..................डैमेज!

कुछ तो भी बड़ा पंगा हो गया था। रूलिंग पार्टी, उसे रिमोट कण्ट्रोल से चलाने वाले संगठन के डैमेज कण्ट्रोल बोर्ड की आपात बैठक बुलाई गयी थी। सारे लोग आ चुके थे इसलिए बैठक तुरंत शुरू की गयी और संगठन के नुमाइंदे ने बोलना शुरू किया: "स्साला, यह देश चलाना आसान नहीं है, बहुत टेंशन का काम है। रोज़ कोई न कोई पंगा हो जाता है।" सबने चेहरे पर गंभीरता लाकर, मुंडी हिलाकर चीफ की बात का अनुमोदन किया। चीफ को रिएक्शन अच्छा लगा। उन्होंने बोलना जारी रखा, "सबको पता है न क्या करना है।" सबने फिर मुंडी हिलाई। चीफ को इस बार सिर्फ मुंडी हिलाना जंचा नहीं, नकली गुस्से का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने  कहा, "मुंडी नहीं हिलाने का, बोलने का।" सबने एक स्वर में कहा, "हाँ, पता है।" चीफ ने कहा, "क्या ख़ाक पता है। अगर तुम सब लोग अपना काम ठीक से करते तो यह नौबत ही नहीं आती। मेरे कहने का मतलब है, भले हम डैमेज कण्ट्रोल बोर्ड हैं, पर डैमेज होने के बाद कण्ट्रोल करने का क्या मतलब है? कभी-कभी हमें डैमेज एंटीसीपेट करना चाहिए और उसे होने ही नहीं देना चाहिए।" सबने फिर मुंडी हि...