बीते दस
दिनों से दिमाग में यह खयाल बार-बार गर्दिश कर रहा था कि बात-बात पर राष्ट्रवाद और
देशभक्ति की कसमें खाने और खिलाने वाली मोदी सरकार के केंद्रीय परिवहन, हाईवे, जहाजरानी एवं जल-संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने आखिर ऐसा बयान क्यों दिया!
उनका बयान किन्हीं देशद्रोही तत्वों को लेकर भी नहीं, परम
देशभक्त नौसेना को लेकर था। इसलिए गडकरी के बयान को न तो मैं हल्के में ले पा रहा
हूं न ही उसकी अनदेखी कर पा रहा हूं।
आप
पूछेंगे कि गडकरी साहब ने ऐसा क्या कह दिया? उन्होंने 11 जनवरी को मुंबई में आयोजित
एक समारोह के दौरान युवराज दुर्योधन की स्टाइल में कहा था, "दक्षिण मुंबई की
प्राइम लैंड में नौसेना को आवास के लिए एक इंच भी ज़मीन नहीं देंगे!" यही नहीं
जोश में उन्होंने नसीहत दे डाली कि नौसेनाकर्मियों को तो आतंकवादियों पर नज़र रखने
के लिए पाकिस्तान की सीमा पर गश्त लगाना चाहिए। उन्हें दक्षिण मुंबई जैसे पॉश
इलाके में आवास की जरूरत क्या है? गडकरी का दावा है कि उनके पास कई नौसेनाकर्मी दक्षिण
मुंबई में आवास पाने का अनुरोध लेकर आते हैं। गडकरी ने यह बयान किसी आपसी बातचीत
में नहीं बल्कि एक उच्च नौसेना अधिकारी वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा (पश्चिमी नौसेना
कमान प्रमुख) की उपस्थिति में दिया था। सवाल उठता है कि इस तरह का बयान देने के
लिए मंत्री महोदय के सामने तात्कालिक उकसावा क्या था?
दरअसल
नौसेना ने दक्षिण मुंबई स्थित मालाबार हिल इलाके में सरकार की योजनाओं- तैरती हुई
जेट्टी, तैरता हुआ एक होटल और सीप्लेन
सेवा शुरू करने के खिलाफ राय दी है। इसीलिए गडकरी ने कुपित होकर नौसेना पर 'विकास
विरोधी' होने का भी आरोप मढ़ दिया और कहा कि नौसेना उच्च न्यायालय की अनुमति के
बावजूद बिलावजह अड़ंगा लगा रही है। गडकरी साहब यहां ही नहीं रुके। उनकी दर्पोक्ति
थी, “सरकार हम हैं। नौसेना और रक्षा मंत्रालय सरकार नहीं
है!” एक नौसेना उच्चाधिकारी को यह औकात समझाने की मानसिकता को क्या कहा जाए?
गडकरी का
उक्त बयान अहंकारपूर्ण और नौसेना का मनोबल तोड़ने वाला है। देखा जाए तो दक्षिण
मुंबई के समुद्र से सटे इलाके में स्थित कोलाबा नौसेना का ही इलाका है। यहाँ लंबा-चौड़ा
नेवी नगर बसा हुआ है। उसके अंदर नौसेना का एक क्लब और विशाल कैंटीन है, जहां
सिविलियन खरीदारी नहीं कर सकते। नौसेना की अनुमति की बगैर इस इलाके में सचमुच
परिंदा भी पर नहीं मार सकता। इसलिए यहां नौसेना को ही 'एक इंच' जमीन, वह भी आवास के लिए न देने
संबंधी बयान का क्या अर्थ है? दुनिया जानती है कि इसी इलाके में 'आदर्श' कॉलोनी के
नाम पर बहुमंजली इमारत बनाकर गडकरी साहब की बिरादरी यानी राजनीतिज्ञों (अधिकांश
कांग्रेसी) और अफसरों ने मिलकर घोटाला किया था। तब गडकरी साहब कहां थे? यदि वह
कहते हैं कि उनकी पार्टी उस समय सत्ता में नहीं थी तो यह सवाल तो उठता ही है कि इस
घोटाले पर शोर मचाने वाली भारतीय जनता पार्टी की भूमिका आज नौसेना विरोधी कैसे हो
गई?
तथ्य यह
है कि दक्षिण मुंबई प्रॉपर्टी की कीमतों के लिहाज़ से मुंबई या देश ही नहीं पूरी दुनिया
के महंगे इलाकों में शुमार है। महाराष्ट्र के मंत्रालय से लेकर, रिज़र्व बैंक, शेयर मार्केट, मंत्री-संत्री और राज्यपाल आवास तथा तमाम निजी-सरकारी संस्थानों व
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कार्पोरेट मुख्यालय होने के कारण बड़े अफसरों की
कालोनियां भी यहीं बसी हुई हैं। इसी इलाके में महंगे होटल,
कई स्टेडियम और बड़े अंबानी साहब की बहुमंजिला ‘कुटिया’ एंटीलिया भी बनी हुई है। जाहिर है इतने महंगे इलाके में अपने बूते कोई आम
आदमी मकान खरीदने की सोच भी नहीं सकता। लेकिन इसी इलाके में नौसेना की ही जमीन पर
तमाम नियम-कानूनों को ताक पर रखकर आदर्श कॉलोनी खड़ी की गई,
जिसमें कई ‘मान्यवरों’ ने अपने गरीब मातहतों
के नाम फ्लैट एलॉट करा लिए थे! क्या इसीलिए गडकरी नौसेना को यहां 'एक इंच' भी जमीन
नहीं देना चाहते?
दूसरी
बात, गडकरी ने नौसेनाकर्मियों को पाकिस्तान सीमा पर जाकर गश्त लगाने की जो नसीहत
दी है, वह भी किसी तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। क्या वह ये कहना चाहते हैं कि
नौसेना ने अभी भारत की समुद्री सीमाओं को असुरक्षित छोड़ रखा है? गडकरी साहब को इतना याद
दिलाना ही काफी होगा कि 26 नवम्बर 2008 को आतंकवादी समुद्री रास्ते से ही आए थे और
दक्षिण मुंबई में ही घुसे थे। उस भीषण, क्रूर और निंदनीय
हमले के बाद सीख यह ली जानी चाहिए थी कि नौसेना को अत्याधुनिक और अतिबलशाली बनाने
का बीड़ा उठाया जाता। क्योंकि जहां तक समुद्री सुरक्षा का सवाल है तो यह नौसेना के
ही वश की बात है; दक्षिण मुंबई में बसे अमीर लोग, नेता-मंत्री या बाबू यह काम नहीं कर सकते।
गडकरी
साहब की गणना मोदी सरकार के काम पूरा करने वाले सफल मंत्रियों में होती है।
महाराष्ट्र में मंत्री रहते हुए उन्होंने पूरे राज्य में हाईवेज और उड्डान पुलों
का जाल बिछा दिया था। मुंबई के दर्जनों बल खाते फ्लाईओवर और कॉन्क्रीट की मीलों
लंबी कई आरसीसी सड़कें उन्हीं की देन हैं। लेकिन अपने ऊटपटांग बयानों के लिए भी वह
कुख्यात रहे हैं। उनका एक आपत्तिजनक बयान याद ही होगा जब उन्होंने वरिष्ठ फिल्म
अभिनेत्री आशा पारेख के बारे में कहा था कि 'पद्म' पुरस्कार की सिफारिश के लिए वह उनके
घर लिफ्ट से नहीं बल्कि सीढ़ियां चढ़कर आती थीं! वर्ष 2012 में
उन्होंने कह दिया था कि स्वामी विवेकानंद और दाऊद इब्राहिम का आईक्यू लेवल एकसमान
है, जिसका इस्तेमाल स्वामी जी ने मानवता के लिए किया जबकि
दाऊद इसे बरबाद करने में लगा रहा है! पिछले साल की शुरुआत में उन्होंने उवाचा कि
जो अफसर अपना काम ठीक से नहीं करते या रिश्वत लेते हैं उनकी सरेआम ठुकाई होनी
चाहिए!
इस तरह
के बयान सत्ता के नशे में चूर किसी अहंकारी छुटभैये नेता के हो सकते हैं, केंद्र सरकार
के प्रतिनिधि या मंत्री को तो शोभा नहीं ही देते। केंद्र की मोदी सरकार (जिसमें
गडकरी साहब एक वजनदार मंत्री हैं), उनकी पार्टी भाजपा और अभिभावक संगठन राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के नेता, जो उठते-बैठते सेनाओं का गुणगान करते नहीं थकते और जनता से अपेक्षा करते
हैं कि राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा कर रही सेनाओं को 'भगवान' माना जाए और उनके
किसी कार्य पर उंगली न उठायी जाए- गडकरी साहब के नौसेना संबंधी बयान को किस ‘राष्ट्रवादी’ खांचे में फिट पाते हैं, देश के सामने यह स्पष्ट किया जाना चाहिए।
-विजयशंकर चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
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