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क्या करें कंट्रोल नहीं होता..................डैमेज!


कुछ तो भी बड़ा पंगा हो गया था। रूलिंग पार्टी, उसे रिमोट कण्ट्रोल से चलाने वाले संगठन के डैमेज कण्ट्रोल बोर्ड की आपात बैठक बुलाई गयी थी। सारे लोग आ चुके थे इसलिए बैठक तुरंत शुरू की गयी और संगठन के नुमाइंदे ने बोलना शुरू किया: "स्साला, यह देश चलाना आसान नहीं है, बहुत टेंशन का काम है। रोज़ कोई न कोई पंगा हो जाता है।"
सबने चेहरे पर गंभीरता लाकर, मुंडी हिलाकर चीफ की बात का अनुमोदन किया। चीफ को रिएक्शन अच्छा लगा। उन्होंने बोलना जारी रखा, "सबको पता है न क्या करना है।"
सबने फिर मुंडी हिलाई। चीफ को इस बार सिर्फ मुंडी हिलाना जंचा नहीं, नकली गुस्से का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने  कहा, "मुंडी नहीं हिलाने का, बोलने का।"
सबने एक स्वर में कहा, "हाँ, पता है।"
चीफ ने कहा, "क्या ख़ाक पता है। अगर तुम सब लोग अपना काम ठीक से करते तो यह नौबत ही नहीं आती। मेरे कहने का मतलब है, भले हम डैमेज कण्ट्रोल बोर्ड हैं, पर डैमेज होने के बाद कण्ट्रोल करने का क्या मतलब है? कभी-कभी हमें डैमेज एंटीसीपेट करना चाहिए और उसे होने ही नहीं देना चाहिए।"
सबने फिर मुंडी हिलाई।
चीफ ने कहा, "अब जो हुआ सो हुआ एक बार एक-एक करके सब बता दो करना क्या है?"
बोर्ड में सरकार के नुमाइंदे ने कहा, "हम कहेंगे इस पंगे से सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है।"
पार्टी के नुमाइंदे ने कहा, "हम कहेंगे इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए और विपक्षी पार्टी पर ओछी राजनीति करने का आरोप लगा देंगे।"
अगला बन्दा कुछ बोले, चीफ ने पार्टी के नुमाइंदे को हिदायत दी, "साथ ही किसी छुटभैये नेता से पंगा करने वालों के बारे में, उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कोई बयान दिला दीजिये। जिससे आप बाद में "यह पार्टी लाइन नहीं है, उसके अपने विचार हैं" कहकर पल्ला झाड सकें।"
पार्टी के नुमाइंदे ने कहा, "ऐसा तो हम हमेशा करते आये हैं।"
अब बारी सोशल मीडिया प्रचार सेल के नुमाइंदे की थी। चीफ क्योंकि उसीकी ओर देख रहे थे।
वह अपने मोबाइल में खोया हुआ था। उसने जैसे ही महसूस किया कि चीफ की आँखें उस पर केन्द्रित हैं, सर उठाया और आत्मविश्वास से कहा, "मैं अपना काम जानता हूँ सर, बल्कि मैं उस चांडाल चौकड़ी के चरित्र हनन का काम शुरू भी कर चुका हूँ। मैं अब भी एक ट्वीट ही कर रहा था।मेरे यहाँ बैठक से फारिग होते ही हमारी ट्रोल आर्मी भी काम पर लग जाएगी"
चीफ ने कहा, "गुड! चरित्र हनन के अलावा धर्म, जाति और पोलिटिकल मोटिवेशन का भी एंगल ढूंढ निकालो।"
सोशल मीडिया प्रचार सेल के नुमाइंदे ने कहा, "बिलकुल, नहीं होगा तो गढ़ लेंगे।"
अब चीफ की नज़र मीडिया को मैनेज करने वाले एक टीवी न्यूज़ चैनल के संपादक पर गयी, "आप कुछ नहीं कहेंगे।.."
संपादक जो न सिर्फ अपने चैनल पर डैमेज कण्ट्रोल करता था बल्कि मीडिया के एक बड़े हिस्से को मैनेज करता था, बोला, "चीफ, हम तो अपना काम पूरी ईमानदारी से करते आये हैं और आगे भी करेंगे क्योंकि हमने आपका नमक खाया है."
चीफ को मज़ाक सूझा, "अच्छा, हम तो समझते थे आप टाटा का नमक खाते हैं।"
संपादक समेत सबने फरमाइशी ठहाका लगाया। फिर संपादक ने बोलना शुरू किया, "सर, क्योंकि न्यूज़ को पूरी तरह ब्लैक आउट नहीं कर सकते इसलिए हम कोशिश करेंगे इस न्यूज़ को कम से कम जगह मिले। फिर प्राइम टाइम की डिबेट के लिए हम ऐसे सभी पेड गेस्ट को बुला लेंगे जो इन पंगेबाजों के खिलाफ बोलें। अगर उससे भी बात नहीं बनी तो फिर व्यूअर का ध्यान भटकाने के लिए पाकिस्तान/चीन को गरियाना शुरू कर देंगे। देशप्रेम/देशभक्ति का कोई मुद्दा खड़ा कर लेंगे। मीडिया की तरफ से आप निश्चित रहिये। लोग दो दिन में तो यह मुद्दा भूल ही जायेंगे। हमारे तरकश में कई तीर हैं।"
चीफ ने इस बार संपादक की तारीफ़ की, "आपही के तो भरोसे हम इस देश को चला पा रहे हैं। लेकिन यह प्रिंट मीडिया बदमाशी नहीं छोड़ रहा? उसका क्या इलाज है?"
संपादक बोला, "सर, प्रिंट मीडिया का भी बड़ा हिस्सा आपके साथ है। वैसे भी टीवी न्यूज़ के ज़माने में अखबार पढता ही कौन है?"
चीफ बोला, "ऐसा है तो नहीं, खैर... ।" और चीफ जैसे किसी सोच में गुम हो गए।
एक बन्दे ने दबे स्वर में पुछा, "क्या सोच रहे हैं सर?"
चीफ ने कहा, "हर बार डैमेज होता है, उसके बाद हम कण्ट्रोल करने की कोशिश करते हैं, लेकिन हमारी सारी एक्सरसाइज सांप के जाने के बाद लकीर पीटने जैसी होती है।"
दुसरे ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, "हां सर और ऊपर से बड़ा ही थैंकलेस जॉब है यह।"
चीफ ने उसे घूरकर देखा भर और मेसेज चला गया।
सरकार के नुमाइंदे ने कहा, "सर, हम और कुछ कर भी तो नहीं सकते। यह जो देशद्रोह का वायरस है कब किसके भेजे में घुसकर केमिकल लोचा कर दे पता ही नहीं चलता। कभी स्टूडेंट, कभी एक्टर, कभी जर्नलिस्ट तो कभी काले कोट वाले..."
चीफ ने कहा, "बस, बस मैं आपकी बात समझ गया। इस देशद्रोह का एंटीडोट खोजना होगा। खैर वह बाद की बात है। तो किसीको और कुछ कहना है या यह बैठक समाप्त समझी जाए।.."
पार्टी के नुमाइंदे ने थोडा झिझकते हुए चीफ से सवाल किया, "सर, हमारा मार्गदर्शन हो जाएगा, अगर आप अपनी भी लाइन बता देंगे। यानी इस मुद्दे पर आप क्या बोलना चाहेंगे? मेरा मतलब..."
चीफ ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा, "हम क्या बोलेंगे? हम तो सांस्कृतिक संगठन हैं। हमारा राजनीति से या किसी पंगे से क्या लेना?"
सबने "हाँ" में मुंडी हिलाई।
चीफ ने कहा, "और कोई सवाल?"
सबने "न" में मुंडी हिलाई और बैठक समाप्त हो गयी।

कोई नहीं जी!- 7/-महेश राजपूत     



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