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नाईट ऑफ जनवरी सिक्सटींथ




16 जनवरी आई तो आयन रैंड के उक्त शीर्षक वाले नाटक की याद आ गयी. बहुत पहले पढ़ा था. नाटक एक कोर्ट रूम ड्रामा था जिसमें कई सारी बातें अपारंपरिक थीं। नायक वह था जो अपने बिज़नस में घाटे के कारण बैंक को चीट करने के लिए अपनी मौत का ड्रामा स्टेज करता है और खलनायक बैंक प्रबंधक जो अपने बैंक को बचाना चाहता है। नायिका नायक की पत्नी नहीं बल्कि ऑफिस की सेक्रेटरी थी जिससे उसके सम्बन्ध थे। इस नाटक से प्रेरणा लेकर हिंदी में फिल्म भी बनी थी 'गवाही'। निर्देशन अनंत बालानी ने किया था जिन्होंने बाद में विक्टर बनर्जी को लेकर 'जॉगर्स पार्क' बनायी थी और 'चमेली' (करीना कपूर) शुरू की थी लेकिन फिल्म के बीच में उनके निधन के कारण सुधीर मिश्र ने फिल्म को पूरा किया था।
खैर बात 'गवाही' की हो रही थी। फिल्म में शेखर कपूर (मासूम, मिस्टर इंडिया, बैंडिट क्वीन जैसी फिल्मों के निर्देशक), जीनत अमान (प्रेमिका) और रंजीता (पत्नी) की प्रमुख भूमिकाएं थीं। फिल्म मैंने उल्हासनगर के अमन सिनेमाघर में देखि थी। फिल्म मुझे दो वजहों से अच्छी लगी। एक तो ड्रामा मैं पढ़ चुका था और दूसरी वजह इसका एक गीत मुझे बड़ा अच्छा लगा, "देखके तुमको क्या लगता है, कुछ न बताएँगे, कुछ भी कहे कोई, हम तो तुमको देखे जायेंगे... देखे जायेंगे..." फिल्म का सबसे ड्रामेटिक सीन था जब अदालत में गवाहों के कटघरे में खड़ी जीनत अमान के किरदार को उसका एक साथी आकर उसके प्रेमी शेखर कपूर की हकीकत में मौत की खबर देता है। जबकि मुकदमा शेखर कपूर की नकली मौत को लेकर ही चल रहा होता है और जीनत अमान जो फिल्म में एक ईसाई लड़की की भूमिका में थी, अगले दृश्य में काले गाउन में अदालत में आती है।
गलती हो गयी। गवाही का ज़िक्र करते वक्त मुझे चेतावनी देनी चाहिए थी "स्पोइलर्स अहेड' क्योंकि एक सस्पेंस ड्रामा फिल्म या कहानी का सस्पेंस नहीं खोलना चाहिए। खैर, आपमें से कौन यह फिल्म देखने जा रहा है, जो मैं अधिक सोचूं। और दूसरी बात, यह पीस मैंने पूरी तरह अपनी इन दिनों कमज़ोर होती याददाश्त (बुढ़ापे के कारण)  के बल पर लिखा है और इसलिए तथ्यात्मक त्रुटि हो सकती है। आशा है, ऐसा कुछ हुआ हो या आपकी जानकारी में आये तो मुझे माफ़ करेंगे और दुरुस्त करेंगे।


#कुछ भी - 2   -महेश राजपूत     

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