(डिस्क्लेमर: इस लेख में शब्द मेरे हैं पर भावनाएं सत्तारूढ़ पार्टी के
एक नेता की हैं। दरअसल हुआ यूं कि अपनी ट्रोल आर्मी के सदस्यों (यह मेरे शब्द हैं,
उन्होंने 'सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स' लिखा था) से उन्होंने एक भावुक अपील की। मुझे
लगा इस अपील को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना चाहिए इसलिए यहाँ पेश कर रहा
हूँ।)
प्रिय सोशल मीडिया एक्टिविस्ट बंधुओं,
पहले तो मैं आप लोगों की तारीफ़ करना चाहूँगा कि आप सोशल मीडिया पर
देश, धर्म और समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दे उठाते रहते हो और जनता को जागरूक करते
रहते हो। आप जो सवाल उठाते हो वह गंभीर और बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। बस, आपकी
भाषा ज़रा गड़बड़ है। आप ही बताइये, सोशल मीडिया पर संवाद करते समय भाषा में क्या
अश्लीलता, नफरत और हिंसा को उचित ठहराया जा सकता है? आपका बड़ा भाई होने के नाते
मैं कहूँगा, "नहीं ठहराया जा सकता।" यह गलत बात है! ख़ास कर तब तो बिलकुल
नहीं जब ऐसी भाषा का इस्तेमाल अपनों के खिलाफ ही किया जाए। क्या गैरों की कमी है
जो हम अपनों को निशाना बनाएं?
मित्रो, आपको यह तो सोचना चाहिए कि हमारे सुप्रीम लीडर आपको फॉलो करते
हैं। आपको पार्टी और सरकार का पूरा-पूरा समर्थन प्राप्त है। आपको इसका फायदा उठाकर
कम से कम हमारी ही सरकार के मंत्रियों को तो तंग नहीं करना चाहिए। अभी हाल ही में
आपने हमारी एक मंत्री को परेशान किया। यह मान भी लिया जाए कि उन्हें छद्म
धर्मनिरपेक्षता के कीड़े ने काट लिया और उन्होंने कोई गलत प्रशासनिक फैसला लिया।
नहीं, नहीं... मैं यह नहीं कह रहा कि उन्होंने ऐसा किया। मैं कह रहा हूँ कि मान
लो, उन्होंने ऐसा किया भी तो उनकी आलोचना की जा सकती है। मतभेद होना अस्वाभाविक
नहीं है। परिवार में भी सदस्यों में मतभेद हो सकते हैं पर मतभेद के कारण परेशान
करना, गालियाँ देना, किसीकी मौत की कामना करना, स्वास्थ्य पर टिप्पणी करना क्या
उचित है? उन्हें बेगम कहना, उनके पति को सलाह देना कि वह अपनी पत्नी की पिटाई करे!
यह गलत बात है। और यह सब हमारी उस नेता के लिए जो पिछले चार दशकों से राष्ट्रवाद
के लिए लड़ रही हैं! वह भी उन्हींके ज़रिये जो हमारी विचारधारा को मानने का दावा
करते हैं? ये गलत बात है! आपको अपने नेता में विश्वास होना चाहिए।
आपको इतना तो सोचना ही चाहिए कि आप हमारे विरोधियों को मौका दे रहे हो।
आप खान्ग्रेसियों, देशद्रोहियों, वामियों, आपियों, परधर्मियों, विधर्मियों,
नास्तिकों आदि को तंग करो न, किसने रोका है? हमें तो बख्श दो! अब इस पासपोर्ट वाली
घटना की ही बात लीजिये जिसमें हमारे एक हिन्दू अधिकारी का तबादला किया गया और
बेवजह सज़ा दी गयी। क्या आप समझ नहीं पा रहे इस कहानी में असली खलनायक कौन है?
खलनायक वह मौलवी है जिसने एक हिन्दू महिला का निकाहनामे में नाम बदल दिया। हमें
क्यों ऐसी दुविधा में डाल रहे हो कि हमें न आपका बचाव करते बने न आपका विरोध करते।
यदि हम अपने मंत्री के समर्थन में आपके खिलाफ आगे आयें तो भी हमारी नाक कटे और यदि
आपकी करतूतों को इग्नोर कर चुप्पी साध लें तो भी हमारी नाक कटे। हमारे लिए तो यह स्थिति
'इधर गिरे तो खाई उधर गिरे तो कुआँ' वाली है न। मंत्री भी हमारी अपनी हैं और आप भी
हमारे अपने हो। मैं आपसे फिर अपील करना चाहूँगा कि आप लोग समझदार हो, आशा करता हूँ
दोबारा हमें ऐसी मुश्किल स्थिति में नहीं डालोगे और फिर मुझे यह कहने का मौका नहीं
दोगे कि यह गलत बात है!
कोई नहीं जी! #18 महेश राजपूत
Comments
Post a Comment