Skip to main content

"पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन आपका स्वागत करता है!"


रविवार की दोपहर थी। बिल्डिंग के कंपाउंड में क्रिकेट खेलने के बाद नौ वर्षीय चुन्नू और सात वर्षीय मुन्नू घर लौटे तो उन्होंने देखा पापा किचन में ऑमलेट बना रहे हैं और मम्मी लैपटॉप पर कुछ काम कर रही हैं। आज सन्डे के दिन खाना बनाने का टर्न पापा का था और उन्हें ऑमलेट के अलावा कुछ और बनाना आता ही नहीं था। दोनों में आँखों-आँखों में कुछ इशारेबाजी हुई और चुन्नू ने लीड लेते हुए पापा को डिस्टर्ब करने का जोखिम लिया। उसने पूछा, "पापा, यह पाकिस्तान किस चिड़िया का नाम है?"
पापा बोले, "बेटा, पाकिस्तान कोई चिड़िया नहीं, एक देश है, हमारा पड़ोसी देश है।"
अबकी मुन्नू ने सवाल किया, "पापा, पाकिस्तान बहुत बुरी जगह है क्या?"
पापा ने कहा, "नहीं तो। कोई देश उतना ही बुरा या अच्छा होता है जितने उसके लोग, और मेरी राय में आम पाकिस्तानी हमारे जैसे ही अच्छे लोग होते हैं...."
चुन्नू बात काटते हुए बोला, "पापा, आप तो बोर करने लगते हो। सीधे बोलो न बुरा देश नहीं है।"
पापा ने कहा, "ओके। पर तुम लोग आज अचानक यह क्यों पूछ रहे हो?"
चुन्नू बोला, "पापा, हम क्रिकेट खेल रहे थे न, हमारी गेंद वो सामने वाली विंग में फर्स्ट फ्लोर पर रहने वाले त्रिपाठी अंकल की खिड़की पर लगी। उन्होंने चिल्ला कर कहा, "तुम लोग पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते?"
पापा बोले, "ऐसा बोला उन्होंने?"
मुन्नू बोला, "हाँ, पापा और मैंने उस दिन मैंने टीवी पर भी देखा एक अंकल दूसरे अंकल को चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे, तुम पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते?"
मम्मी ने हस्तक्षेप किया और पापा को डांटते हुए बोली, "कितनी बार बोला है बच्चे साथ हों तो टीवी पर डिबेट मत देखा करो।"
पापा ने झेंपते हुए सफाई दी, "मेरा ध्यान नहीं रहा होगा।"
बेसब्रे मुन्नू ने दोनों को टोकते हुए बोला, "अब आप लोग आपस में शुरू मत हो जाओ।"
पापा बोले, "ठीक है, तो तुम यह बोल रहे थे कि तुमने टीवी पर भी देखा..."
चुन्नू बोला, "हाँ, और मैंने अखबार में भी पढ़ा है।"
पापा मम्मी को सुनाते हुए, "तुम अखबार भी पढ़ते हो? देखा, बच्चे पापा से सिर्फ बुरी बातें ही नहीं, अच्छी बातें भी सीखते हैं।"
मुन्नू ने फिर टोका, "पापा, आप बार-बार पटरी से क्यों उतर जाते हो?"
पापा बोले, "सॉरी, ऐसा है बेटा, त्रिपाठी अंकल की बात का बुरा नहीं मानने का। उन्होंने कोई गलत इरादे से नहीं कहा।"
चुन्नू बोला, "वो तो ठीक है, पर ऐसा कहा क्यों?"
पापा थोडा गड़बड़ाए, फिर संभले और बोलना शुरू किया, "बेटा, वह पाकिस्तान में टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहते होंगे।"
मुन्नू बोला, "यानी त्रिपाठी अंकल जैसे लोग यह नहीं कहना कहते कि पाकिस्तान चले जाओ, वह यह कहना चाहते हैं कि पाकिस्तान घूमकर आओ?"
चुन्नू ने जैसे पूरी बात समझ ली हो, उत्साहित होकर बोला, "जैसे झगडा होने पर मम्मी पापा को बोलती है, दफा हो जाओ, तो उसका मतलब मम्मी पापा को घर से निकाल नहीं रही होती, कह रही होती है, थोड़ी देर बाहर टहल कर आओ।"
पापा झेंपते हुए, "अब समझे तुम।"
मुन्नू अभी तक संतुष्ट नहीं हुआ था, उसने पूछा, "पर पापा, वह पाकिस्तान में टूरिज्म को एनकरेज क्यों करना चाहते हैं? उन्हें क्या फायदा होता है?"
चुन्नू बोला, "मैं समझ गया। यह लोग पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के लिए काम करते होंगे। इन्हें ज़रूर कमीशन मिलता होगा।"
पापा और मम्मी बेहोंश होते-होते बचे। मुन्नू ने अगला सवाल दागा, "पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन क्या होता है?"
चुन्नू उसे समझाने के लहजे में बोला, "हर देश अपने यहाँ टूरिज्म को एनकरेज करने के लिए टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन बनाता है और कैम्पेन चलाता है क्योंकि टूरिज्म से बिज़नस मिलता है। अपने देश में टूरिज्म को एनकरेज करने के लिए उनके दूसरे देशों में एजेंट भी होते हैं।"
मुन्नू बोला, "तो इसका मतलब यह लोग पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के एजेंट हैं। क्या इन्हें कमीशन मिलता है?"
चुन्नू बोला, "मिलता ही होगा। मुफ्त में कोई क्यों किसीके लिए काम करेगा?"
मुन्नू बोला, "पर मुझे यहाँ पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का कोई ऑफिस क्यों नहीं दीखता? यह लोग ऑपरेट कहाँ से करते हैं?"
चुन्नू बोला, "बिज़नस के लिए अपना ऑफिस खोलना ज़रूरी नहीं है, फ्रेंचाईजी से भी काम चल जाता है।"
मुन्नू ने एक और सवाल दागा, "ओके। पर यह लोग ऐसे एक-एक को "पकिस्तान चले जाओ" कहने के बजाय टीवी कैंपेन क्यों नहीं चलाते?"
चुन्नू ने पूछा, "लाईक इनक्रेडिबल इंडिया? अतिथि देवो भव:? हाँ, यह हो सकता है, पापा, उन्हें आईडिया सरकाना पड़ेगा कि टीवी पर ऐड दिखाएँ 'पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन आपका स्वागत करता है!' तब ज्यादा लोग पाकिस्तान जायेंगे और इनका कमीशन भी ज्यादा बनेगा। और हाँ पापा, यह लोग कोई ब्रांड अम्बेसेडर भी हायर कर सकते हैं."
मुन्नू ने तपाक से पूछा, "ब्रांड अम्बेसेडर बोले तो?"
चुन्नू ने जवाब दिया, "किसी प्रोडक्ट के प्रमोशन और पब्लिसिटी के लिए पोपुलर फेस या फेमस व्यक्ति को ब्रांड अम्बेसेडर बनाया जाता है।"
मुन्नू बोला, "फिर तो तय हो गया। ब्रांड अम्बेसेडर पीएम ही बनेंगे। इंडिया में वर्ल्ड फेमस तो वही हैं। है न, पापा?"
पापा ने देखा कि बात हाथ से निकल रही है। उन्होंने मम्मी को पनाह मांगती निगाहों से देखा और मम्मी बोली, "तुम लोगों को भूख नहीं लगी? चलो अब तुम हाथ-मुंह धो लो, पापा के हाथ का बना खाना यानी ऑमलेट और ब्रेड खाते हैं।"
चुन्नू-मुन्नू दोनों के मुंह से एक साथ "ओह नो!" निकला और वह बाथरूम में घुस गए।
कोई नहीं जी! #19 -महेश राजपूत

Comments

Popular posts from this blog

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 5

(कार्टून : सुहैल नक्शबंदी के आर्काइव से, सौजन्य : एफएससी) (एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट)                  कश्मीर में इन्टरनेट शटडाउन कश्मीर के लिए इन्टरनेट शटडाउन कोई अनोखी बात नहीं है और 2012 से 180 बार इसका अनुभव कर चुका है । 4 अगस्त 2019 को मोबाइल और ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाओं पर प्रतिबन्ध इस साल के सात महीनों में 55वां था । पर यह पहली बार है कि मोबाइल, ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाएं, लैंडलाइन और केबल टीवी सब एक साथ बंद किये गए, नतीजतन कश्मीर के अन्दर और बाहर संचार के हर प्रकार को काट दिया गया । 2012 से इन्टरनेट शटडाउन का हिसाब रख रहे सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेण्टर (एसएफएलसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल इन्टरनेट सेवाओं पर सबसे बड़ी अवधि का बैन 2016 में 08 जुलाई 2016 को बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद विरोध प्रदर्शनों के समय रहा. तब मोबाइल इन्टरनेट सेवाएं 133 दिन बंद रहीं । एसएफएलसी ट्रैकर के अनुसार, "पोस्टपेड नम्बरों पर इन्टरनेट सेवाएं 19 नवम्बर 2016 को बहाल की गयीं, लेकिन प्रीपेड उपयोगकर्ताओं की मोबाइल सेवाएं जनवरी 2017 मे...

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम...

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 3

(एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट) हमारी तहकीकात की प्रमुख बातें: सेंसरशिप और समाचारों पर नियंत्रण हालांकि कोई अधिकारिक सेंसरशिप या बैन लागू नहीं है पर संचार चैनलों की कमी और आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण पत्रकारों को समाचार जुटाने के निम्नलिखित क़दमों में समस्या आ रही है:        इन्टरनेट और फ़ोन बंद होने के कारण घटनाओं के बारे में जानकारी मिलने या संपर्कों और स्रोतों से जानकारी मिलने में       कहीं आ-जा न पाने के कारण, कुछ इलाकों में प्रवेश पर पाबंदियों से, समाचार जुटाना बाधित हो रहा है       खुद या गवाहों से पुष्टि करने से रोके जाने, आधिकारिक स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करने से मना करने के कारण समाचारों की विश्वसनीयता से समझौते के खतरे हैं        संपादकों से ईमेल अथवा फ़ोन पर तथ्यों की पुष्टि के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब न दे पाने के कारण या ख़बरों में सुधार न कर पाने के कारण ख़बरें छप नहीं पा रही हैं। केवल एक खबर मीडिया केंद्र में जाकर अपलोड करना काफी नहीं है यदि आप सवालों के जवाब देने के लिए...