Skip to main content

माफ़ी तो आपको मांगनी ही होगी!


देश के नंबर वन नॉइज़ चैनल पर गर्मागर्म डिबेट चल रही थी। मैं सर्फिंग करते-करते थोड़ी देर से उस चैनल पर पहुंचा इसलिए मालूम नहीं प रहा था कि मामला क्या था? जब मैंने देखना शुरू किया डिबेट शुरू हुए करीब आठ मिनट हो चुके थे। यूं तो एंकर के सामने आठ-दस मेहमान थे पर एंकर एक मेहमान से ही रूबरू था जो किसी विपक्षी पार्टी का नुमाइंदा था। एंकर कह रहा था...
एंकर : माफ़ी तो आपको मांगनी ही होगी।
मेहमान : लेकिन...
एंकर : हम आपकी कोई बात नहीं सुनेंगे। पहले आप माफ़ी मांगें।
मेहमान : पर...
एंकर : पर-वर कुछ नहीं आप माफ़ी मांगिये। 
मेहमान : मेरी बात तो सुन...
एंकर : राष्ट्र को कुछ नहीं सुनना। आप सिर्फ माफ़ी मांगिये।
मेहमान : मेरे भाई...
एंकर : मैं आपका भाई नहीं हूँ। मैंने जो कहा आप कीजिये... माफ़ी मांगिये।
मेहमान : किस बात...
एंकर : बात गई तेल लेने। मैंने बोल दिया तो बोल दिया। आप मुझे यह बताइये कि आप माफ़ी मांग रहे हैं या नहीं...
इस बीच श्रीमतीजी आ गयीं और रिमोट उठाकर चैनल बदल दिया। मैंने कहा, "बहुत इंट्रेस्टिंग डिबेट थी।"
उन्होंने कहा, "थोड़ी देर बाद देख लेना, डिबेट कहाँ भागी जा रही है।" उन्हें एक कार्यक्रम देखना था।
खैर करीब दस मिनट बाद ही कमर्शियल ब्रेक आ गया और मैंने तुरंत रिमोट पर 'बैक' बटन दबा दिया। डिबेट जारी थी।
मेहमान : सर...
एंकर : मैंने कहा न, आज आपको स्टूडियो से तब तक नहीं जाने दिया जाएगा जब तक आप माफ़ी नहीं मांग लेते।
मेहमान : देखिये...
एंकर : देखने को क्या है? आप यह बस यह बताइए कि आप माफ़ी मांगेंगे या नहीं?
मेहमान : मैं...
एंकर : और जवाब देने से पहले जान लीजिये। 'नहीं' एक्सेप्ट नहीं होगी।
मेहमान : मगर...
एंकर : फिर मगर? मैं आपको बताऊँ इस समय सारा देश आपको देख रहा है। आप अपना, मेरा, यहाँ बाकी मेहमानों के साथ देश का वक्त जाया कर रहे हैं। वक्त से याद आया, ब्रेक लेने का वक्त आ गया है। (दर्शकों से) जुड़े रहिएगा। हम जल्द लौटेंगे...
चैनल बदल गया। इस बीच श्रीमतीजी रिमोट कब्ज़ा चुकी थीं। मैंने देखा तो उन्होंने कहा, "देखो, तुम्हारी फ़ालतू डिबेट के चक्कर में यहाँ एक सीन मिस हो गया।"
 मैं फिर मन मसोसकर रह गया।
अगली बार जब सीरियल में ब्रेक आया तो मैं रिमोट ले सकूं इससे पहले साहबजादे ने रिमोट कब्ज़ा लिया था और चैनल बदल कर कोई डब्ल्यूडब्ल्यूएफ मैच देखने लगा था। खैर, उसके पांच मिनट मैच देखने के बाद श्रीमतीजी ने अपना सीरियल पूरा किया और रिमोट मुझे वापस मिला। डिबेट अभी पांच मिनट बाकी थी। मैंने वह न्यूज़ चैनल लगाया। डिबेट अपने छप्पनवें मिनट में थी।
एंकर : तो आप माफ़ी नहीं मांगेगे?
मेहमान : मैंने कब कहा...
एंकर : पर माफ़ी मांगी भी तो नहीं। देखिये, मैं यहाँ पूरी रिसर्च और होमवर्क के साथ आता हूँ। और मैं जो तय करके आता हूँ वह करके रहता हूँ। मेरा आज का एजेंडा आपसे माफ़ी मंगवाना है सो मंगवाकर रहूँगा।
मेहमान : एक बार मेरी बात तो सुनो...
एंकर : आपकी बात सुनने का समय किसके पास है। डिबेट का समय समाप्त होने को है। अब आप बाकी सब छोडिये और माफ़ी मांग लीजिये।
...और लाइट चली गयी। मुझे पता ही नहीं चला कि बहस का अंत कैसे हुआ। चूंकि मैंने डिबेट की की शुरुआत भी नहीं देखी थी सो पता नहीं था कि मेहमान से माफ़ी किस बात की मंगवाई जा रही थी। मेरी बदनसीबी। लेकिन इसके बावजूद मैं कहूँगा कि डिबेट काफी एज्युकेटिंग, इल्युमिनेटिंग, इन्ट्रेस्टिंग, एंगेजिंग और एंटरटेनिंग थी।

कोई नहीं जी! #20 -महेश राजपूत

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 5

(कार्टून : सुहैल नक्शबंदी के आर्काइव से, सौजन्य : एफएससी) (एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट)                  कश्मीर में इन्टरनेट शटडाउन कश्मीर के लिए इन्टरनेट शटडाउन कोई अनोखी बात नहीं है और 2012 से 180 बार इसका अनुभव कर चुका है । 4 अगस्त 2019 को मोबाइल और ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाओं पर प्रतिबन्ध इस साल के सात महीनों में 55वां था । पर यह पहली बार है कि मोबाइल, ब्रॉडबैंड इन्टरनेट सेवाएं, लैंडलाइन और केबल टीवी सब एक साथ बंद किये गए, नतीजतन कश्मीर के अन्दर और बाहर संचार के हर प्रकार को काट दिया गया । 2012 से इन्टरनेट शटडाउन का हिसाब रख रहे सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेण्टर (एसएफएलसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल इन्टरनेट सेवाओं पर सबसे बड़ी अवधि का बैन 2016 में 08 जुलाई 2016 को बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद विरोध प्रदर्शनों के समय रहा. तब मोबाइल इन्टरनेट सेवाएं 133 दिन बंद रहीं । एसएफएलसी ट्रैकर के अनुसार, "पोस्टपेड नम्बरों पर इन्टरनेट सेवाएं 19 नवम्बर 2016 को बहाल की गयीं, लेकिन प्रीपेड उपयोगकर्ताओं की मोबाइल सेवाएं जनवरी 2017 मे...

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम...

कंटीली तारों से घायल खबर : कश्मीर की सूचनाबंदी - 3

(एनडब्ल्यूएमआई-एफएससी रिपोर्ट) हमारी तहकीकात की प्रमुख बातें: सेंसरशिप और समाचारों पर नियंत्रण हालांकि कोई अधिकारिक सेंसरशिप या बैन लागू नहीं है पर संचार चैनलों की कमी और आवाजाही पर प्रतिबंधों के कारण पत्रकारों को समाचार जुटाने के निम्नलिखित क़दमों में समस्या आ रही है:        इन्टरनेट और फ़ोन बंद होने के कारण घटनाओं के बारे में जानकारी मिलने या संपर्कों और स्रोतों से जानकारी मिलने में       कहीं आ-जा न पाने के कारण, कुछ इलाकों में प्रवेश पर पाबंदियों से, समाचार जुटाना बाधित हो रहा है       खुद या गवाहों से पुष्टि करने से रोके जाने, आधिकारिक स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करने से मना करने के कारण समाचारों की विश्वसनीयता से समझौते के खतरे हैं        संपादकों से ईमेल अथवा फ़ोन पर तथ्यों की पुष्टि के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब न दे पाने के कारण या ख़बरों में सुधार न कर पाने के कारण ख़बरें छप नहीं पा रही हैं। केवल एक खबर मीडिया केंद्र में जाकर अपलोड करना काफी नहीं है यदि आप सवालों के जवाब देने के लिए...