डिस्क्लेमर: यह लेख पाठ्यपुस्तकों में शामिल कराने के पवित्र उद्देश्य के साथ लिखा गया है। विषय चूंकि मीडिया से संबंधित है इसलिए अपेक्षा है कि इसे सरकारी, अर्ध सरकारी व निजी मीडिया संस्थानों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। कोई और समय होता तो यह लेख लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती लेकिन समय ऐसा है कि मीडिया जगत से ‘देशद्रोहियों‘ को जेलों में ठूंसकर लाइन पर लाने का काम उतनी तेजी से नहीं हो पा रहा है, जितनी तेजी से होना चाहिए था। खासकर सोशल मीडिया में तो इनका ही बोलबाला है सो कोई भी त्रासद दुर्घटना होने पर उसका कवरेज कैसे किया जा चाहिए, कैसे नहीं किया जाना चाहिए यानी ‘डूज़‘ क्या हैं, ‘डोंट्स‘ क्या हैं, यहां बताया जा रहा है। आशा है कि मीडिया के छात्रों के लिए यह लेख उपयोगी साबित होगा। डूज़ -पॉजिटिव बनें। संवेदनशील बनें। -यह जरूर बताएं कि पुल कितने सौ वर्ष पुराना था? और पुल पर क्षमता से बहुत ज्यादा लोग थे। -लोगों की लापरवाही या चूक, जैसे उन्होंने प्रशासन के निर्देशों/चेतावनियों का पालन नहीं किया और वह खुद ही दुर्घटना के लिए जिम्मेदार थे, को हाइलाईट कर...
-क्या यह सच है कि नाइजीरिया के विज्ञापन में पश्चिम बंगाल के विकास को हाईजैक कर लिया गया? -बोले तो गलती से मिश्टेक हो गया। -आपसे? -नहीं अखबार से। -कैसे? तस्वीरें आपने नहीं दी थीं? -अखबार ने ट्वीट तो किया था कि एडवरटोरियल में मार्केटिंग विभाग की गलती से गलत तस्वीरें चली गईं। -तो तस्वीरें आपने नहीं दी थीं? -नहीं। -क्यों नहीं दी थीं? क्या आपके पास नाईजीरिया में विकास दर्शाने वाली दो तस्वीरें भी नहीं हैं? -बहुत तस्वीरें हैं। -तो दी क्यों नहीं? -पता करना पड़ेगा। उन्होंने मांगी ही नहीं होंगी... -या आपने यह सोचा कि वह खुद सिंगापुर, दुबई, या यूरोप के किसी सुंदर, विकसित देश की तस्वीरें लगा देंगे और किसीको पता नहीं चलेगा और आपकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी। -ऐसा नहीं है। हमें लगा कि मीडिया ऐसी गलती नहीं करेगा... -कैसी गलती? -जैसी कभी-कभी हमारे कुछ अतिउत्साहित भक्त करते हैं, व्हाट्स एप फॉरवर्ड, फेसबुक पोस्ट, ट्वीट पर कहीं की भी तस्वीरें हमारे यहां की डालकर हमें एंबैरेसिंग हालत में डालते हैं। -आप एंबैरेस भी होते हैं? -देशद्रोही तत्व हमारे भक्तों की फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करते हैं तो कभी-कभी एंबैरेसम...