Skip to main content

श्रीनगर हवाई अड्डे पर बांग्लादेश से लौटे छात्रों के परिजनों पर लाठीचार्ज


छात्रों के परिजनों ने आरोप लगाया कि कुछ छात्रों को हवाई अड्डे से बाहर ले जाया गया और ‘होम-क्वारंटाईन‘ किया गया जबकि अन्य को बदहाल आइसोलेशन इकाइयों में भेजा गया 

अजान जावैद, 19 मार्च श्रीनगर: श्रीनगर हवाई अड्डे पर तब अव्यवस्था दिखी जब बांग्लादेश में पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्रों का एक समूह गुरुवार को लौटा। कुछ छात्रों के परिजनों के अनुसासर जैसे ही छात्र विमान से उतरे, उन्हें अराइवल सेक्शन में दो घंटे से ज्यादा रोक लिया गया बिना कोई कारण बताए। मामला तब बढ़ गया जब कुछ छात्रों को ‘चुपचाप‘ हवाई अड्डे से बाहर ले जाया गया जबकि अन्य को बताया गया कि उन्हें क्वारांटाईन किया जायेगा जबकि सभी छात्रों का दावा था कि वह कोलकाता हवाई अड्डे पर थर्मल इमेजिंग की फीवर स्क्रीनिंग से गुज़र चुके हैं। उड़ान कोलकाता होते हुए श्रीनगर आई थी। परिजनों ने आरोप लगाया कि छात्र जिन्हें बाहर ले जाया गया, अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बच्चे थे, इसलिए उन्हें होम क्वारांटाईन किया गया जबकि अन्य को ऐसे क्वारांटाईन केंद्रों में भेजा गया जहां ‘अपर्याप्त सुविधाएं‘ हैं। हवाई अड्डे से कुछ छात्रों को बाहर ले जाये जाने के बाद अन्य छात्रों के परिजनों ने मामला उठाया और सुरक्षा बलों व उनके बीच तीखी बहस हुई। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने परिजनों को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया। इस झड़प के वीडियो और तस्वीरें अब व्हाट्सएप पर घूम रही हैं। ‘पूरी अव्यवस्था‘ दो दर्जन से अधिक छात्रों को स्थानीय पुलिस हवाई अड्डे से बाहर ले गई थी। लड्कों को बस से श्रीनगर के हज हाऊस ले जाया गया और सात लड़कियों को एक निजी होटल में उतारा गया। दोनों समूह अब क्वारांटाईन में हैं। ढाका में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही लड़की के भाई तहलील मुश्ताक ने द प्रिंट को बताया कि छात्रों ने हवाई अड्डे के अधिकारियों से कई बार कहा कि उन्हें जाने दिया जाये क्योंकि उनकी जांच कोलकाता हवाई अड्डे पर की जा चुकी है। मुश्ताक ने कहा: “इसके बावजूद उन्हें हवाई अड्डे पर इकट्ठा रखा गया। कुछ छात्र, संभवत: अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बच्चे, चुपचाप बाहर ले जाये गये जब अन्य अभिभावकों ने ऐतराज किया तो उन्हें पीटा गया। बाद में मेरी बहन और अन्य छात्रों को बिना अभिभावकों को यह बताये कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है, ले जाया गया। उनके फोन भी ले लिये गये हालांकि बाद में लौटा दिये गये। कुछ अभिभावकों ने, जिस पुलिस वाहन में छात्रों को ले जाया जा रहा था, का पीछा किया और वह स्थान देखे जहां उन्हें क्वारांटाईन किया जाना था। पूरी तरह से अव्यवस्था का आलम था।“ उनकी बहन ने उन्हें एक ऑडियो नोट भेजा जब वह हवाई अड्डे पर इंतजार कर रही थी। इस ऑडियो नोट में उन्हें यह कहते सुना जा सकता है, “बहुत बुरी हालत है। उन्होंने वीआईपी के लिए अलग सेक्शन बनाया है और उन्हें हवाई अड्डे से बाहर ले जाया गया है। हमें कहा गया है कि हमें क्वारांटाईन किया जाएगा।“ हवाई अड्डे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द प्रिंट को बताया: संभागीय आयुक्त के कार्यालय से आदेश था कि आने वाले यात्रियों को क्वारांटाईन किया जाये। कुछ देरी होने की वजह से घबराहट फैली। पुलिस ने कार्रवाई की और हालात पर काबू पाया।“ अधिकारी ने इस आरोप का खंडन किया कि कुछ छात्रों को बिना जांच के बाहर ले जाया गया और उनकी हैसियत की वजह से होम क्वारांटाईन किया गया। ‘क्वारांटाईन केंद्र की स्थिति अच्छी नहीं‘ हज हाऊस में क्वारांटाईन किये एक छात्र के भाई ने कहा कि सभी छात्रों को एक साथ रखा गया है जबकि उन्हें अलग-अलग रखा जाना चाहिए था। अपना नाम जाहिर न करने का अनुरोध करने वाले इस भाई ने बताया, ‘‘सभी को एक बड़े हॉल में रखा गया है। कम से कम 20-25 छात्र इकट्ठा हैं। हम अधिकारियों से अपील कर रहे हैं कि कुछ करें। हम समझ सकते हैं कि उन्हें क्वारांटाईन करने की आवश्यकता होगी पर अंदर हालात अच्छे नहीं हैं। खासकर गुसलखानों की हालत बहुत बुरी है।“ क्वारांटाईन सुविधाओं के खराब होने के आरोप के जवाब में जम्मू कश्मीर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि संबंधित अधिकारी छात्रों की बेहतरी के लिए सभी सावधानियां बरतना सुनिश्चित कर रहे हैं। अधिकारी ने कहा, “अभिभावकों की चिंताओं पर विचार किया जा रहा है। यूटी प्रशासन हर नागरिक की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए बिना थके कार्य कर रहा है।“
 ‘द प्रिंट‘ से साभार
(अनुवाद : कश्मीर खबर)
Picture for representation purpose. 
Picture : courtesy UNI 
 

Comments

Popular posts from this blog

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम...

नरक में मोहलत (कहानी)

  -प्रणव प्रियदर्शी घर से निकलते समय ही अनिता ने कहा था, ‘बात अगर सिर्फ हम दोनों की होती तो चिंता नहीं थी। एक शाम खाकर भी काम चल जाता। लेकिन अब तो यह भी है। इसके लिए तो सोचना ही पड़ेगा।’ उसका इशारा उस बच्ची की ओर था जिसे अभी आठ महीने भी पूरे नहीं हुए हैं। वह घुटनों के बल चलते, मुस्कुराते, न समझ में आने लायक कुछ शब्द बोलते उसी की ओर बढ़ी चली आ रही थी। अनिता के स्वर में झलकती चिंता को एक तरफ करके अशोक ने बच्ची को उठा लिया और उसका मुंह चूमते हुए पत्नी अनिता से कहा, ‘बात तुम्हारी सही है। अब इसकी खुशी से ज्यादा बड़ा तो नहीं हो सकता न अपना ईगो। फिक्कर नॉट। इस्तीफा वगैरह कुछ नहीं होगा। जो भी रास्ता निकलेगा, उसे मंजूर कर लूंगा, ऐसा भी क्या है।’ बच्ची को गोद से उतार, पत्नी के गाल थपथपाता हुआ वह दरवाजे से निकल पड़ा ऑफिस के लिए। इरादा बिल्कुल वही था जैसा उसने अनिता से कहा था। लेकिन अपने मिजाज का क्या करे। एक बार जब दिमाग भन्ना जाता है तो कुछ आगा-पीछा सोचने के काबिल कहां रहने देता है उसे।  मामला दरअसल वेतन वृद्धि का था। अखबार का मुंबई संस्करण शुरू करते हुए सीएमडी साहब ने, जो इस ग्रुप के म...

चुनावपूर्व पुल दुर्घटनाएं कैसे कवर करें पत्रकार? डूज़ एंड डोंट्स

डिस्क्लेमर: यह लेख पाठ्यपुस्तकों में शामिल कराने के पवित्र उद्देश्य के साथ लिखा गया है। विषय चूंकि मीडिया से संबंधित है इसलिए अपेक्षा है कि इसे सरकारी, अर्ध सरकारी व निजी मीडिया संस्थानों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। कोई और समय होता तो यह लेख लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती लेकिन समय ऐसा है कि मीडिया जगत से ‘देशद्रोहियों‘ को जेलों में ठूंसकर लाइन पर लाने का काम उतनी तेजी  से नहीं हो पा रहा है, जितनी तेजी से होना चाहिए था। खासकर सोशल मीडिया में तो इनका ही बोलबाला है सो कोई भी त्रासद दुर्घटना होने पर उसका कवरेज कैसे किया जा चाहिए, कैसे नहीं किया जाना चाहिए यानी ‘डूज़‘ क्या हैं, ‘डोंट्स‘ क्या हैं, यहां  बताया जा रहा है। आशा है कि मीडिया के छात्रों के लिए यह लेख उपयोगी साबित होगा।  डूज़  -पॉजिटिव बनें। संवेदनशील बनें।  -यह जरूर बताएं कि पुल कितने सौ वर्ष पुराना था? और पुल पर क्षमता से बहुत ज्यादा लोग थे।  -लोगों की लापरवाही या चूक, जैसे उन्होंने प्रशासन के निर्देशों/चेतावनियों का पालन नहीं किया और वह खुद ही दुर्घटना के लिए जिम्मेदार थे, को हाइलाईट कर...