विडंबना है कि ये दोनों बातें पिछले सप्ताह ही एकसाथ सामने आईं। एक तरफ केंद्र सरकार अदालत में सोशल मीडिया में पसरे फेक न्यूज का हवाला देकर मीडिया पर प्री-सेंसरशिप लादना चाहती दिख रही थी और दूसरी तरफ केंद्र सरकार निजामुद्दीन मर्कज में तबलीग को लेकर मुस्लिमों के खिलाफ सोशल मीडिया में धड़ल्ले से फैलायी जा रही और नफरत भड़काने वाली फेक न्यूज की अनदेखी कर रही थी।
कोरोना वायरस का फैलाव रोकने के लिए भारत में बिना सोचे-समझे 21 दिवसीय लॉकडाऊन करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 24 मार्च की आकस्मिक घोषणा के बाद इसके परिणामस्वरूप अचानक बेरोजगार, बेघर हुए भूखे-प्यासे माइग्रेंट (प्रवासी ) मजदूर जब परिवहन व्यवस्था ठप होने के कारण पैदल ही महानगरों और अन्य शहरों से अपने गांवों की तरफ जाने लगे तो उनकी दशा की हृदयविदारक सचित्र खबरें मीडिया के एक हिस्से में आईं। उनमें से कम से कम 30 लोगों की जान चली जाने की भी खबरें आईं। इस दौरान प्रवासी मजदूरों को राहत दिलाने की एक याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की गई। याचिका के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी किया , जिसमें सभी राज्यों को अपनी सीमाएं सील करने, ' शेल्टर होम ' अथवा राहत शिविर बनाने और प्रवासी मजदूरों को इनमें रखने को कहा गया।
मोदी सरकार ने अदालत में इस याचिका पर अपना पक्ष रख कहा कि ' अब सड़क पर कोई मजदूर नहीं है और सबके खाने-पीने, दवाइयों की व्यवस्था हो गई है'। अदालत में सरकार ने यह भी दावा किया कि इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों के पलायन का कारण ये अफवाहें थीं कि लॉकडाऊन तीन महीने तक चल सकता है। सरकार ने अदालत से मीडिया और खासकर सोशल मीडिया में फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए एक तरह से प्री-सेंसरशिप लादने की अनुमति चाही। सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च के अपने आदेश में सरकार का यह अनुरोध स्वीकार नहीं किया कि मीडिया केवल आधिकारिक पुष्टि के बाद ही कोई खबर दे पर उसने सरकार को फेक न्यूज रोकने के लिए उपाय करने का निर्देश दे दिया।
उसके बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय प्रेस परिषद, न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाऊंडेशन को सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश की प्रति भेजी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करने का निर्देश जारी किया। केंद्र सरकार के प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो ने भी इसकी खबर जारी की। विभिन्न राज्यों के प्रशासन, पुलिस ने भी इस आशय के चेतावनी भरी भरे बयान जारी किये कि फेक न्यूज फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और आपदा प्रबंधन अधिनियम ( 2005 ) , साइबर एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी , आदि आदि । इसी दौरान उत्तर प्रदेश में पुलिस ने समाचार पोर्टल ' द वायर ' के प्रधान संपादक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली। द वायर के बयान के अनुसार प्राथमिकी में जिक्र है कि इस पोर्टल की खबर के अनुसार कोविड-19 के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी की लॉकडाऊन घोषणा के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 25 मार्च को अयोध्या में एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
कोरोना के संदर्भ में फेक न्यूज पर अंकुश की जरूरत इसलिए है कि रोग और उसके इलाज के बारे में गलत जानकारी न फैले, कोई ऐसी भ्रामक जानकारी न फैले कि लोगों में अनावश्यक घबराहट फैल जाए। इलाज के अवैज्ञानिक नुस्खों, दावों से संबंधित जानकारी न फैले। साथ ही ऐसी खबरों पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है जो फेक हों या फेक नहीं भी हो तो उसमें किसी संदिग्ध मरीज की पहचान घोषित न की जाए क्योंकि उससे उसके सामाजिक बहिष्कार से लेकर लिंचिंग तक की आशंका हो सकती है।
अब तबलीग जमात वाले मामले में क्या हुआ? 13-15 मार्च को दिल्ली के निजामुद्दीन में उसके मुख्यालय में उन जमातियों में से लगभग 4000 ने तब हिस्सा लिया जिनके देश के कोने-कोने में लौटने पर कइयों के कोरोना वायरस संक्रमित होने की आशंका थी। कुछ मामलों में पुष्टि भी हुई। 30 मार्च को दिल्ली सरकार ने समूचे निजामुद्दीन इलाके को सील कर दिया क्योंकि तब तक देश भर में कोविड के सामने आये मामलों में बड़ी संख्या दिल्ली से लौटे जमात सदस्यों की थी। दो दिन बाद , तब तक मर्कज में फंसे रह गये 2346 लोगों को वहां से निकाला गया जिनमें से 536 को अस्पताल में भर्ती कराया गया और 1810 को क्वारंटाइन किया गया। जमात के प्रमुख , मौलाना मोहम्मद शाद और अन्य के खिलाफ दिल्ली सरकार के महामारी विषयक निर्देशों के उल्लंघन के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई। जमात ने दावा किया कि उसने लॉकडाऊन के कारण मर्कज में फंसे लोगों को निकालने के लिए अधिकारियों से परिवहन की व्यवस्था के लिए मदद मांगी थी, जिस पर कोई कदम नहीं उठाया गया।
मौलाना शाद के दो कथित बयानों के ऑडियो टेप सामने आये जिनमें उन्होंने मस्जिदें बंद न करने का आह्वान यह कहते हुए किया -कि मस्जिद में मरने से बेहतर कोई जगह नहीं, कि अल्लाह हमें मस्जिदों को त्यागने की सजा दे रहा है, कि डॉक्टर मस्जिदों में इबादत न करने के लिए कहेंगे तब भी नहीं सुनेंगे। दूसरे बयान में उन्होंने तबलीगी साथियों से कहा कि वह दिल्ली में सेल्फ क्वारनटाईन में हैं, जैसा कि डॉक्टरों ने सलाह दी है और सभी जमात सदस्यों से अपील करना चाहेंगे कि वे देश में जहां भी हों, कानूनी निर्देशों का पालन करें। इन बयानों की मुस्लिम समाज में ही आलोचना भी हुई।
इस मामले का खुलासा होने के बाद जहां केंद्र और कई राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की बयानबाजी शुरू हो गई वहीं सोशल मीडिया - ट्विटर, फेसबुक औैर व्हाट्सएप आदि पर फेक न्यूज की बाढ़ आ गई। कोरोना को ‘ हिंदू-मुस्लिम ‘ एंगल देकर सरकार समर्थक मीडिया ने भी घृणा की आग में घी डालकर अपना योगदान दिया। कथित संतुलित और मुख्यधारा के मीडिया में भी बताया जाने लगा कि दो दिन में सामने आये कुल मामलों में कितने मामले जमात से संबंधित थे, और कैसे संक्रमितों की संख्या दुगनी होने की रफ्तार बढ़ गई है आदि। हालांकि मुख्य नुकसान पूरी तरह से फेक न्यूज वाले संदेशों ने पहुंचाया , जिनमें पुराने और असंबद्ध वीडियो जारी कर तरह-तरह के आरोप लगाकर पूरी एक कौम के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की गई और जिनकी वजह से बने माहौल में कई जगह सामाजिक, आर्थिक बहिष्कार झेलना पड़ा। हिमाचल प्रदेश से एक व्यक्ति के आत्महत्या की भी खबर है।
फेक न्यूज बस्टर साईट - ऑल्ट
न्यूज, बीबीसी समेत अन्य मीडिया संस्थानों के फैक्ट चेकर्स ने कई फेक न्यूज
का पर्दाफाश किया। लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था। वैसे भी फेक न्यूज
फैलने की रफ्तार यदि किसी खरगोश-सी है तो फेक न्यूज की हकीकत सामने लाने
वालों की पहुंच सीमित होने से लोगों को सच पता चलने की रफ्तार कच्छुए-सी
है। लेकिन इस मामले में सबसे आश्चर्यजनक रूख सरकार का ही रहा। सरकार की तरफ
से कोई कार्रवाई क्या किसी बड़े या जिम्मेदार नेता का बयान तक नहीं आया। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा का इस
आशय का बयान जरूर आया जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं से कोरोना को
सांप्रदायिक रंग न देने की अपील की।
यह पूरा प्रकरण बताता
है कि फेक न्यूज को लेकर सरकार का रवैया कैसा है और कैसे एक ख़ास किस्म की
फेक न्यूज को फैलने से रोकने की कोई गंभीर कोशिश नहीं होती लेकिन दूसरी तरफ
फेक न्यूज पर अंकुश लगाने के नाम पर मीडिया पर प्री-सेंसरशिप लादने की
कोशिश होती है। (चित्र हासिफ खान की बनाई पेंटिंग का है जो एक तमिल पत्रिका में छपने के बाद सोशल मीडिया में वायरल हुआ था।)
(इस लेख के कुछ तथ्य, तबलीग जमात से संबंधित, श्री जावेद आनंद के इंडियन एक्सप्रेस में तीन अप्रैल को छपे लेख से लिये गये हैं।)
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