-कोरोना
वायरस से बच गये पत्रकारों का इस वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में स्वागत करते
हुए बता दूं कि हमारी लॉकडाऊन फ्रेंचाइजी सफल रही है, क्या कहा? प्रमाण? अजी, आपका जीवित होना और इस पीसी में हिस्सा लेना ही
इसका प्रमाण है, अब हम अनलॉक फ्रेंचाइजी ला रहे हैं। आपको जो पूछना है,
पूछिए:
-लॉकडाऊन शुरू करने से पहले कितने मामले थे?
-एक्ज़ेक्ट फिगर तो मुझे याद नहीं, पर दो सौ से तीन सौ के बीच होंगे।
-आज कितने हैं?
-एक्ज़ेक्ट
फिगर मुझे देखना पड़ेगा पर यही कोई दो लाख होंगे। मैं जानता हूं, आप बड़े
बदमाश हैं। लॉकडाऊन को फ्लॉप साबित करना चाहते हैं पर याद रखिये, हम
लॉकडाऊन नहीं लाते न, तो यह फिगर बीस लाख या उससे भी ज्यादा होता।
-बीस लाख का अनुमान महामारी विशेषज्ञों से आया होगा?
-नहीं, हमारे खेल मंत्रालय के कुछ आंकड़ा विशेषज्ञों ने दिया।
-कोरोना को लेकर अपनी स्ट्रेटेजी के बारे में बताएंगे।
-ज़रूर।
देखिए कोरोना का पहला लेटर ‘सी‘ है तो हमने 'सी' को पकड़ लिया और कोरोना को
कन्फ्यूज करने की रणनीति बनाई। मजे की बात ये रही कि हम सफल भी हुए।
-कैसे?
-हमने
14 घंटे का जनता कर्फ्यू लगाया, अब किसी भी सतह पर कोरोना वायरस 12 घंटे
जीवित रह सकता है तो 14 घंटे में उसे छुहारे की मौत मर जाना चाहिए था पर वह
थोड़ा ढीठ निकला। हमने थाली, ताली बजवाई। बत्तियां बुझा कर मोमबत्ती,
मोबाइल टॉर्च की रौशनी से कोरोना को अंधा करने की कोशिश की। इस सबका फायदा भी हुआ।
-क्या?
-फायदा ये हुआ कि कोरोना कन्फ्यूज्ड हो गया। हमारा मिशन पूरा हो गया। उसके बाद हमने 'सी' से शुरू होने वाले
दूसरे शब्द 'कम्यूनल' का सहारा लिया और कोरोना को कम्यूनलाइज करना शुरू
किया। इसमें आपकी बिरादरी ने भी हमारा साथ दिया।
-उससे क्या हुआ? कोरोना की मॉब लिंचिंग तो न कर पाई पब्लिक!
-कैसी बात कर रहे हैं आप? हम ‘मॉब लिंचिंग‘ या हिंसा में कतई विश्वास नहीं करते। हमारी संस्कृति में ही नहीं है जी। हमारा मकसद कोरोना को डराना था औैर इसमें मैं समझता हूं हम किसी हद तक सफल रहे क्योंकि कोरोना ने डरकर इतना तो सोचा होगा न कि यार, यहां तो मुझसे भी खतरनाक वायरस पहले से मौजूद हैं। यहां मेरा कोई काम नहीं।
-पर वह गया तो नहीं।
-इसीलिए
तो ‘सी‘ से शुरू होने वाले तीसरे शब्द 'करप्शन' पर फोकस किया हमने। प्राइवेट
लैब में टेस्टिंग की लूट हो या खिलौना वेंटीलेटर या पीपीई किट, हमने करप्शन की पूरी
छूट दे दी।
-अब आप हमें कन्फ्यूज करने लगे। करप्शन से कोरोना कैसे खत्म होता?
-ऐसा है कि मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं हमारी स्ट्रेटेजी कोरोना को मारना नहीं थी उसे कन्फ्यूज कर, डराकर खुद ही भागने पर मजबूर करना था।
-ओके। अच्छा, ये
बताइये, श्रमिकों का क्या मामला है? श्रमिकों के हालात को लेकर सोशल मीडिया में देशद्रोहियों ने बवाल
काटा हुआ है। हमारा भी 'लाभार्थी' मीडिया कहकर मज़ाक उड़ाते हैं।
-आप
किसी पर ध्यान ही न दें, जैसा हम कर रहे हैं। जहां तक श्रमिकों का मामला
है, इन्होंने तो हमारी भी नाक में दम कर रखा है। जब हमने कहा, घर में रहो, तो
सड़कों पर निकल पड़े। हमने कोरंटाईन सेंटरों में डाला तो खाना मांगने लगे। फिर
गांव जाने की डिमांड करने लगे। ट्रेन शुरू की तो मुफ्त यात्रा की मांग करने
लगे। खैर, कहां जाएंगे बच्चू, अब अनलॉक कर दिया हमने, काम चाहिए तो वापस शहरों में आना पड़ेगा।
-अनलॉक से याद आया, क्या कोरोना का डर खत्म हो गया?
-पूरी तरह खत्म नहीं हुआ पर हमें एकानॉमी के बारे में भी तो सोचना है। कोरोना जैसे वायरस तो
आते-जाते रहते हैं, अर्थव्यवस्था की लुटिया डूब गई तो कहां जाएंगे? इसलिए हमने 130
करोड़ लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान शुरू किया है और उन्हें यह भी समझा रहे हैं कि कोरोना के संग जीने की आदत डाल लो। वैसे भी आप लोग सरकार के भरोसे कब तक
रहोगे? तो ठीक है? मेरे फेवरेट सीरियल 'वागले की दुनिया' का समय हो गया है।
वर्चुअल पीसी समाप्त करें?
#दिमाग का दही महेश/राजपूत
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