इस सत्र के अध्यक्ष श्री कुंदन शाह जी , वक्ता श्री विष्णु खरे जी, श्री राम गोविंद जी , श्री अनंद देसाई जी और डाक्टर प्रज्ञा शुक्ल जी । मुझे विषय दिया गया है साहित्य की लोकप्रियता में धारावाहिकों की भूमिका। मैं इस विषय पर अपना नज़रिया पेश करने की कोशिश करूंगा।
मेरा यह मानना है कि साहित्य की लोकप्रियता में धारावाहिकों की बड़ी भूमिका रही है। धारावाहिकों ने साहित्य को जन जन तक पहुंचाने का काम किया है। ऐसे लोग जिनकी भाषा की समस्या या किताबों की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से साहित्य तक पहुंच नहीं हो पाती, उन तक साहित्य को पहुंचाने का काम धारावाहिकों ने किया है। श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं पर बने कुछ धारावाहिकों का जिक्र करते हुए मैं अपनी बात रखना चाहता हूं.
1.भारत एक खोज- पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब .. डिस्कवरी आफ इंडिया पर आधारित ये धारावाहिक जानेमाने निर्देशक श्याम बेनेगल ने बनाया था। वर्ष 1988 में इसका प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था। इसमें नेहरू की भूमिका रोशन सेठ ने निभाई थी । ओम पुरी और टाम अल्टर जैसे नामी कलाकारों ने इसमें अभिनय किया था। भारत के इतिहास और तानेबाने को इस धारावाहिक के 53 एपीसोड में बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया गया है। ये धारावाहिक आर्यों के आगमन के भी पहले सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का बेहतरीन दस्तावेज है । जिन लोगों ने नेहरूजी की अंग्रेजी में लिखी ये किताब नहीं पढ़ी थी उन्हें धारावाहिक भारत एक खोज के जरिए आसान भाषा में भारतीय इतिहास की जानकारी मिल गई।
2.मालगुड़ी डेज- आर. के नारायण की रचना पर आधारित इस धारावाहिक के निर्देशक शंकर नाग थे और यह धारावाहिक 1986 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। इसके कुल 39 एपीसोड प्रसारित हुए थे। यह एक ऐसा धारावाहिक था जो खासा लोकप्रिय हुआ और जिसका उस दौर के बच्चों पर गहरा असर पड़ा। धारावाहिक में स्वामी एंड फ्रेंड्स तथा वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कथाएँ व उपन्यास शामिल थे। इस धारावाहिक को हिन्दी व अंग्रेज़ी में बनाया गया था। "वेंडर ऑफ स्वीट्स" एक मिठाई विक्रेता जगन की कहानी थी जिसमें विदेश से लौटे अपने बेटे के साथ सामंजस्य बिठाने के प्रयास का वर्णन था। स्वामी एंड फ्रेंड्स" दस बरस के स्वामीनाथन की कहानी थी जिसमें स्वामी की भूमिका गिरीश कर्नाड ने निभाई थी।
3.नीम का पेड़- ये धारावाहिक विलायत जाफरी की लघु कथाओं पर बना था। इसके संवाद डाक्टर राही मासूम रज़ा ने लिखे थे। दूरदर्शन पर 1991 में ये धारावाहिक प्रसारित हुआ था। जानेमाने अभिनेता पंकज कपूर ने इसमें बंधुआ मजदूर बुधईराम का किरदार निभाया था। बुधईराम ने अपने बेटे के जन्म के मौके पर नीम का पेड़ लगाया था। पूरे धारावाहिक के बैकड्राप में ये नीम का पेड़ बार बार नजर आता है। इसकी कहानी स्वतंत्रता पूर्व के काल में शुरू होती है और स्वतंत्रता के बाद तक चलती है। इसका टायटल सांग मशहूर शायर निदा फाजली ने लिखा था और जगजीत सिंह ने स्वरबद्ध किया था। इसके कुल 59 एपीसोड प्रसारित हुए थे।
4.तमस- भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर ये धारावाहिक बना था। 1986 में गोविंद निहलानी ने ये धारावाहिक बनाया था जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। तमस' की कथा परिधि में 1947 के समय में पंजाब के जिले को परिवेश के रूप में लिया गया है। 'तमस' कुल पांच दिनों की कहानी को लेकर बुना गया उपन्यास है। परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है । आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी के इस उपन्यास में मिलता है।
5.चरित्रहीन- शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की रचना पर आधारित इस धारावाहिक का प्रसारण भी दूरदर्शन पर हुआ था। शरतचंद्र की रचनाओं जैसे परिणीता और देवदास पर फिल्में भी बनी हैं। शरत बाबू के उपन्यास नबा बिधान पर तुम्हारी पाखी और श्रीकांत धारावाहिक भी बने हैं।
6.वागले की दुनिया – ये धारावाहिक 1988-90 के दौरान दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था। ये हास्य धारावाहिक था जो जानेमाने कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के रचे हुए किरदारों पर आधारित था। आर के लक्ष्मण के रचे हुए प्रसिद्ध किरदार.. कामनमैन.. यानी आम आदमी की समस्याओं और उसकी कहानी इसमें दिखाई गई है। इसमें अंजन श्रीवास्तव और भारती आचरेकर ने पति पत्नी का किरदार निभाया है। यूं तो लक्ष्मण के किरदार पहले ही काफी लोकप्रिय थे लेकिन इस धारावाहिक के बनने के बाद किताबों और अखबारों से निकलकर वो लोगों के ड्राइंग रूम में पहुंच गए।
7.रागदरबारी-श्रीलाल शुक्ल की बहुचर्चित रचना पर ये धारावाहिक बनाया गया ।
8.पापड़ पोल- शहाबुद्दीन राठौड़ की रंगीन दुनिया.. शहाबुद्धीन राठौड़ की रचनाओं पर आधारित ये धारावाहीक मनोरंजन चैनल सब टीवी पर प्रसारित किया गया और इसने काफी लोकप्रियता बटोरी।
9. लापतागंज- हिंदी के प्रमुख व्यंग्यकार शरद जोशी से शायद नई पीढ़ी अनजान हो, लेकिन उनकी व्यंग्यात्मक कहानियों पर आधारित धारावाहिक'लापतागंज' से सभी वाकिफ हो गए हैं। इसका प्रसारण मनोरंजन चैनल 'सब' टीवी पर हुआ। शरद जोशी ने स्वयं भी कई धारावाहिक लिखे हैं जिनमें 'ये जो है जिंदगी', 'विक्रम बेताल', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'ये दुनिया गजब की', 'दाने अनार के' आदि शामिल है!
10. तारक मेहता का उल्टा चश्मा- ये धारावाहिक गुजराती के पत्रकार और स्तंभ लेखक तारक मेहता की कृतियों पर आधारित है। गुजराती की साप्ताहिक पत्रिका चित्रलेखा में उनका कालम.. दुनिया ने ऊंधा चश्मा .. नाम से छपता था । इसमें विभिन्न मुद्दों पर वो अपना अलग दृष्टिकोण रखते थे। हर्षद जोशी, मालव राजदा और धर्मेश मेहता के निर्देशन में बने इस धारावाहिक की की लोकप्रियता का आलम यह है कि साल 2008 से ये प्रसारित होना शुरू हुआ था और अब तक 2250 से ऊपर एपीसोड प्रसारित हो चुके हैं। आज घर घर में लोग गोकुलधाम सोसायटी से परिचित है। इसका प्रसारण अभी भी जारी है और इसी से इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। लाखों लोगों ने जिन्होंने गुजराती भाषा समझ में नहीं आने की वजह से या अखबार –पत्रिका में रुचि नहीं होने की वजह से तारक मेहता का कालम नहीं पढ़ा होगा लेकिन इस धारावाहिक ने उनकी रचना बच्चों से लेकर बूढ़ों और गृहणियों तक पहुंचा दी है। मैं समझता हूं साहित्यिक रचनाओं की लोकप्रियता में धारावाहिकों की भूमिका का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है।
11.अलिफ लैला- अरबी साहित्य की सबसे ज्यादा पढ़ी जानेवाली इस रचना को भारतीयों में लोकप्रिय बनाने का काम इसी धारावाहिक ने किया है। वन थाउजेंड वन नाइट पर आधारित यह धारावाहिक 1994 में दूरदर्शन पर प्रसारित होता था। इसका निर्देशन आनंद सागर , प्रेम सागर और मोती सागर ने किया था। इसमें चमत्कार, जादू , रहस्य और टोना टोटका सबकुछ वो है जो बच्चों को खासतौर से आकर्षित करता है।
इसके अलावा शार्दिंदु बन्दोपाध्याय की रचना पर व्योमकेश बक्षी, गोवर्धनराम त्रिपाठी की कृति पर सरस्वतीचंद्र, , धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता पर एक था चंदर एक थी सुधा धारावाहिक का निर्माण हुआ है। राजिंदर सिंह बेदी के उपन्यास पर लाजवंती, बिमल मित्र की रचना पर साहेब बीवी और गुलाम, इंदु सुन्दरेसन के उपन्यास ट्वेल्थ वाइफ पर आधारित सियासत , टेगौर की कहानियों पर धारावाहिक स्टोरीज बाय टैगोर और प्रेमचंद की कहानियों पर भी काम हुआ है। मिर्ज़ा गालिब पर गुलज़ार साहब ने धारावाहिक बनाया था जो काफी चर्चित और लोकप्रिय हुआ था। उसमें नसीरुद्दीन शाह ने मिर्ज़ा गालिब की भूमिका निभाई थी।
12.रामायण और महाभारत को साहित्य मानने को लेकर मतभेद हो सकता है। लेकिन इस बार में रत्ती भर भी संदेह नहीं कि रामानंद सागर की रामायण जब दूरदर्शन पर प्रसारित होती थी तो पूरा शहर और गांव एक तरह से ठप्प हो जाता था। घर के सभी लोग कामकाज छोड़कर टीवी के आगे बैठ जाते थे। ऐसा नहीं कि पहले रामायण के बारे में लोग नहीं जानते थे लेकिन रामायण जिस दिलचस्प तरीके से पर्दे पर पेश की गई और भगवान राम, सीता , लक्ष्मण और हनुमान के किरदारों को लोगों ने पर्दे पर देखा.. इसके चलते रामायण की छोटी से छोटी कहानी भी लोगों के दिलो दिमाग में अंकित हो गई।
इसी तरह बीआर चोपड़ा के धारावाहिक महाभारत ने भीष्म पितामह, कर्ण, अर्जुन और तमाम किरदारों से जन जन को परिचित करवा दिया। महाभारत के युद्ध को देखकर लोग मानों उस काल में पहुंच गए जब ये युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया होगा। बेशक महाभारत की कथा विभिन्न माध्यमों के जरिए हमारे यहां सदियों से कही और सुनी जाती रही है लेकिन जितनी लोकप्रियता इस धारावाहिक को मिली उनती शायद ही किसी अन्य माध्यम को मिली होगी।
इसी तरह धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों पर कई धारावाहिक जैसे कृष्ण, देवों के देव महादेव, हनुमान , संतोषी माता , महाकाली , गणेश , शनि आदि बने है । इन धारावाहिकों की लोकप्रियता भी काफी है।
ऐतिहासिक किरदारों की बात करें तो ज़ी टीवी पर जोधा अकबर , कलर्स टीवी पर चक्रवर्ती सम्राट अशोक , सोनी पर पेशवा बाजीराव प्रसारित हो रहा है। इसके अलावा झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, टीपू सुल्तान और चंद्रगुप्त मौर्य पर भी धारावाहिक बन चुके हैं। चाणक्य पर चंद्रप्रकाश द्वेदी ने धारावाहिक चाणक्य बनाया जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ था।
यहां एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि साहित्य और धारावाहिक दो अलग अलग माध्यम है। इसलिए साहित्यिक रचना को जब धारावाहिक का रूप दिया जाता है तो लोगों की रूचि बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंच बनाने के लिए मूल रचना में थोड़ा बहुत परिवर्तन करना जरूरी होता है। धारावाहिक में कहानी में नाटकीयता और अतिरंजना का तड़का लगाना होता है। साथ ही इसे मौजूदा काल से भी जोड़ना होता है। इसे सिनेमेटिक लिबर्टी कहा जाता है। हालांकि कभी कभी नाटकीयता और अतिरंजना की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है जिससे साहित्यिक रचना की मूल आत्मा ही मर जाती है और भौंडापन आ जाता है। इसका उदाहरण बाबू देवकीनंदन खत्री की रचना चंद्रकांता संतति पर बना धारावाहिक चंद्रकांता है।
बहरहाल चंद्रकांता जैसे कुछेक अपवाद को छोड़ दें तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर साहित्य पर अच्छा कार्य हुआ. बाद में खासकर प्राइवेट चैनल सास-बहू में ऐसे उलझे की साहित्य को भूल गए. दूरदर्शन भी इसी भेडचाल का हिस्सा बन गया. इधर फिर जब टीवी चैनल सास-बहू से बोर हो गए तो साहित्य की तरफ देखने लगे और प्राइवेट चैनलों पर भी कई साहित्यिक कृतियों पर धारावाहिक बने ।
साहित्यिक रचनाओं पर धारावाहिक बनने से साहित्यकार को इतना लाभ ज़रूर होता है कि टीवी पर उनकी रचनाओं से वो दर्शक भी वाकिफ होते हैं जो आमतौर पर किताबें नहीं पढ़ते। एक लेखक की कृति घर-घर पहुँचती है जो आज के समय में काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इधर पढने का रिवाज़ ज़रा कम होता जा रहा है।
मुझे सुनने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !
- सुभाष दवे
(नोट: मित्र सुभाष दवे ने यह वक्तव्य महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी एवं जनसेवा समिति संचालित श्री एम. डी. शाह महिला महाविद्यालय के सौजन्य से स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा आयोजित दूरदर्शन (टेलीविज़न) और हिंदी साहित्य विषय पर आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (१८ और १९ अगस्त) में दिया था)
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