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ब्रेकिंग न्यूज़ : 'पद्मावती' पर पर्यावरण विभाग ने रोक लगाईं! कहा, "बहुत ध्वनि प्रदूषण फैला रही है!"





पर्यावरण विभाग ने फिल्म 'पद्मावती' पर रोक लगा दी है! विभाग का कहना है कि फिल्म बहुत नॉइज़ पोल्यूशन यानी ध्वनि प्रदूषण फैला रही है विभाग के एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस ज्वलंत मुद्दे पर एक आपात बैठक बुलाई गयी थी जिसमें मंत्री का प्रतिनिधित्व उनके निजी सहायक ने किया। इस बैठक में सर्वसम्मति से फिल्म को बैन करने का फैसला लिया गया। फैसले के अनुसार फिल्म को सिर्फ भारत में ही नहीं 'प्लेनेट अर्थ' पर बैन किया गया है क्योंकि ध्वनि प्रदूषण की समस्या सिर्फ भारत में तो है नहीं। बैठक के मिनट्स (जिसकी कॉपी इस संवाददाता के पास है) के हवाले से ख़ास अपने पाठकों के लिए हम यह सुपर एक्सक्लूसिव  रिपोर्ट आपके सामने पेश कर रहे हैं:
बैठक की शुरुआत गगनभेदी 'वन्दे मातरम' और समापन 'भारत माता की जय' के नारों से हुई। बैठक का एजेंडा रखते हुए एक उच्चाधिकारी ने कहा कि ऊपर से आदेश है कि कुछ करना होगा, हम कुछ नहीं कर रहे, इसलिए कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों को क़ानून और व्यवस्था बिगड़ने की आशंका का हवाला देकर फिल्म को बैन करना पड़ रहा है, इसमें यह संकेत जा रहा है कि हमारी सरकारें कमज़ोर हैं और कानून और व्यवस्था संभालने में अक्षम हैं। एक राज्य, जहाँ चुनाव होने वाले हैं, वहां तो मुख्यमंत्री ने आदर्श चुनाव आचार सहिंता के उल्लंघन का जोखिम लेते हुए फिल्म पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की है। एक सरकारी विभाग होने के नाते हमारे लिए यह शर्मनाक बात है। इसलिए हमें जल्दी कुछ करना होगा। हमें फिल्म पर बैन लगाना होगा!" 
एक कमअक्ल जूनियर ने सवाल उठाया, "लेकिन सर किसी शिकायत के बिना हम क्या कर सकते हैं? हम फिल्म पर बैन का कारण क्या बता सकते हैं? और सवाल यह भी उठता है कि यह मामला हमारे विभाग में कैसे आता है?" 
उच्चाधिकारी ने कहा, "शिकायत का क्या है? इस देश के लोगों को 'ऑफिशियली' शिकायत करने की आदत ही नहीं है, बस आपस में बोलते रहते हैं! अब शिकायत की बात की जाए तो फिल्म से भावनाएं आहत होने की ही कौनसी शिकायत की गयी है, पर लोग आपस में बोल रहे हैं, मीडिया में आ रहा है। सब देख-सुन रहे हैं। हम कह सकते हैं कि ऐसा सुनाई दिया कि फिल्म को लेकर बहुत शोर मच रहा है और 125 करोड़ लोगों के कान के परदे फटने का डर है! हम सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, फेसबुक पेज बना सकते हैं, ट्विटर पर हैशटैग क्रिएट कर सकते हैं और फिल्म से हो रहे ध्वनि प्रदूषण के खतरों को उजागर कर सकते हैं।" 
एक सयाने जूनियर को आईडिया पसंद आया और वह उत्साहित हो गया तथा बीच में बोल पड़ा, "सर, हम इन्स्टाग्राम पर कुछ बहरे लोगों की तस्वीरें और यूट्यूब पर वीडियो भी अपलोड कर सकते हैं और दावा कर सकते हैं कि यह लोग फिल्म को लेकर हो रहे शोरगुल के शिकार हैं।" 
उच्चाधिकारी खुश हो गया, उसने कहा, "गुड! तो तय रहा हम ऐसा कैंपेन भी चलायेगे!"
कमअक्ल जूनियर फिर बोल उठा, "सर, कैंपेन हम फिल्म पर बैन लगाने से पहले चलाएंगे या बाद में?" 
उच्चाधिकारी ने उसे घूरते हुए कहा, "इससे क्या फर्क कैंपेन पहले चलायें या बाद में? और रही बात तुम्हारे बेवकूफी भरे सवाल की कि मामला हमारे विभाग में कैसे आता है, तो मैं तुमसे पूछता हूँ क्या ध्वनि प्रदूषण हमारे विभाग का मामला नहीं है? मैं तो कहूँगा बल्कि यह ज्यादा सॉलिड ग्राउंड है फिल्म को बैन भी करने का और सरकार को बदनामी से भी बचाने का! यह उपाय 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे जैसा है'! अब देखिये न अगर बैन का आधार इतिहास से छेड़छाड़ को बनाया जाता है तो फिल्म तो हम लोगों ने देखी नहीं, इन फैक्ट अर्नब गोस्वामी और कुछ बड़े टीवी पत्रकारों को छोड़कर किसीने नहीं देखी और वह तो फिल्म के पक्ष में बोल रहे हैं! दूसरी बात कानून और व्यवस्था बिगड़ने का तर्क देने से अपनी सरकार की कमजोरी उजागर करने के बारे में पहले ही बोल चुका हूँ इसके अलावा वह भी तो 'इफ्स एंड बट्स' वाला मामला है, अगर फिल्म सेंसर से पास हुई तो, अगर फिल्म रिलीज़ हुई और अगर उसमें इतिहास से छेड़छाड़ की गयी हुई होगी तो और अगर उससे लोगों को बहुत गुस्सा आ गया और वह हिंसा पर उतारू हो गए तो कानून और व्यवस्था का सवाल उठेगा न? पर यह जो ध्वनि प्रदूषण का मामला है, वर्तमान का मामला है, सबको सुनाई और दिखाई दे रहा है! प्रत्यक्ष को प्रमाण की ज़रुरत कहाँ होती है, या होती है?"
अब कमअक्ल जूनियर निरुत्त्तर हो गया। अब सवाल मंत्री के पीए की तरफ से आया, "पर फिल्म पर बैन लगाने से हमारी सरकार पर जो असहिष्णुता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने का आरोप लगेगा उसका जवाब क्या है?"
उच्चाधिकारी ने कहा, "सर, फिल्म की नायिका और निर्देशक को मिल रही नाक काटने, गला काटने या सर काटने जैसी धमकियों को हम इग्नोर कर रहे हैं कि नहीं? क्यों? क्योंकि यह सीरियसली लेने लायक बातें नहीं हैं! उसी तरह हमें ऐसे बेतुके आरोपों की अनदेखी करनी चाहिए। दूसरी बात हम जो भी कर रहे हैं, व्यापक जनहित में कर रहे हैं, अब बेवजह के शोर से 125 करोड़ लोगों के कान फट जाएँ इससे तो बेहतर फिल्म को प्रतिबंधित कर असहिष्णु होने का आरोप झेल लिया जाए। वैसे भी हमारा ट्रैक रिकॉर्ड कठोर फैसले लेना का ही है! है न? और अंत में, मैं फिल्म को हमेशा के लिए बैन करने की बात ही नहीं कर रहा, बस 14 दिसंबर तक बैन करने की बात कर रहा हूँ। तब तक शोरगुल शांत हो जाएगा और हम बैन उठा लेंगे!"
पीए को सुझाव पसंद आया,  उन्होंने मन में कैलकुलेट किया तब तक एक राज्य के चुनाव जो सरकार की नाक का सवाल बन चुके हैं निबट जायेंगे।
उच्चाधिकारी ने अपनी बात जारी रखी, "और चूंकि हमारा विभाग अराजनीतिक है इसलिए सरकार पर यह आरोप भी नहीं लगेगा कि हम बहुसंख्यकों के 'तुष्टिकरण' की राजनीति' कर रही है!" फिर उन्हें लगा वह कुछ ज़्यादा बोल गए इसलिए उन्होंने इस वाक्य को मिनट्स से हटाने को कहा और मिनट्स नोट करने वाले अधिकारी ने उस पर लाल लकीर मार दी।
तो खैर फैसला ले लिया गया है और इसकी घोषणा के लिए प्रेस कांफ्रेंस की तैयारी पूरी कर ली गयी है, जो किसी भी पल हो सकती है। हमने तो एक अच्छे पत्रकार की तरह न्यूज़ पहले ही ब्रेक कर ली है। जब अधिकारिक घोषणा हो तो भूलियेगा नहीं कि सबसे पहले हमने ही आपको यह खबर दी थी और हाँ, यह कहने की ज़रुरत तो नहीं है न कि किसी भी अपडेट के लिए वाच दिस स्पेस!
           
कोई नहीं जी! - ६/महेश राजपूत    (कार्टून साभार : वन इंडिया) हिंदी 

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