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सीएए, एनआरसी, एनपीआर के बीच कोई संबंध नहीं है जी!


-आपने कहा था, एक सौ तीस करोड़ देशवासी सीएए पर आपके साथ हैं।
-बिलकुल हैं जी। फैसला ही उनका है। आखिर, सरकार और संसद उन्हीं की तो है।
-तो फिर विरोध करने वाले कौन हैं?
-कांग्रेसी, अर्बन नक्सल, देशद्रोही तत्व हैं जी।
-आप कहना चाहते हैं कि विरोध प्रदर्शन करने वाले लाखों छात्र, युवा, महिलाएं कांग्रेसी, अर्बन नक्सल, देशद्रोही तत्व हैं?
-नहीं जी। विरोध प्रदर्शनों को उकसाने वालों की बात कर रहा था मैं। अधिकांश प्रदर्शनकारियों को तो पता भी नहीं वह प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं। उन्होंने कानून ठीक से पढ़ा भी नहीं।
-आपने पढ़ा?
-ऑफ द रिकॉर्ड मानें तो पढ़ा तो ठीक से मैंने भी नहीं।
-अच्छा, यह बताइये क्या यह प्रदर्शनकारी एक सौ तीस करोड़ के अतिरिक्त हैं?
-नहीं जी। एक जर्मन स्टूडेंट था, एक कोरियाई लेडी थी, उन्हें तो हमने वापस उनके देश भेज दिया।
-इसका मतलब है कि प्रदर्शनकारियों की संख्या को एक सौ तीस करोड़ में से माइनस करना चाहिये, तभी पता चलेगा कि कानून के समर्थन में कितने लोग हैं। नहीं?
-नहीं जी। जैसाकि मैंने आपको बताया, ये गुमराह लोग हैं। अफवाहों पर विश्वास करने वाले।
-अफवाहें बोले तो?
-यही क्रोनोलॉजी कि पहले सीएए आयेगा, फिर एनआरसी...
-ये अफवाह ज़रूर किसी पप्पू ने फैलाई होगी या किसी अर्बन नक्सल ने...
-नहीं जी। कहा तो हमारे गृहमंत्री ने ही था पर उनका वो मतलब नहीं था। हमारे पीएम ने कह तो दिया कि एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई।
-यानी एनआरसी नहीं होगा।
-हो भी सकता है पर कब होगा, हमें पता नहीं। अभी उसके रूल्स भी नहीं बनाये गये।
-अच्छा, एनआरसी और एनपीआर के बीच कोई संबंध है?
-कोई संबंध नहीं है जी।
-पर सुना है कि एनपीआर से जुटाई जानकारी का इस्तेमाल एनआरसी के लिये किया जाएगा...
-आप सारी बातों को इतना सीरियसली क्यों लेते हैं?
-अच्छा, एनपीआर में सवाल क्या पूछे जाएंगे? जाहिर है, आम चूसकर खाते हैं या किसी और तरीके से, ऐसे सवाल तो नहीं होंगे...
-कमाल करते हैं आप? कोई आम कैसे खाता है, उसमें सरकार की, हमारी या किसीकी भी क्या दिलचस्पी हो सकती है?
-तो फिर क्या सवाल होंगे?
-सीएए का एनआरसी और एनपीआर से कोई संबंध नहीं है, बस। आपको सीएए के बारे में सवाल पूछना हो तो पूछिये।
-आप तो बुरा मान गये। यह बताइये, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के केवल मुस्लिमों को आपने अलग क्यों रखा?
-हम कितनी बार कहें कि कानून नागरिकता देने के लिये है, नागरिकता छीनने के लिये नहीं। हम पाकिस्तान के उन लोगों को नागरिकता देना चाहते हैं जिनका सत्तर साल से धार्मिक उत्पीड़न हो रहा है।
-आज भी हो रहा है?
-बिलकुल हो रहा है।
-फिर कटऑफ तारीख 31 दिसंबर 2014 क्यों है?
-बड़े बदमाश हैं आप... मेरा सीएए को लेकर जनता में जागरूकता फैलाने के अभियान के सिलसिले में एक कार्यक्रम का समय हो गया। इंटरव्यू समाप्त।
-एक आखिरी सवाल का जवाब देते जाइये। ये आपके नेताजी ने जो कहा कि सीएए पर एक इंच पीछे नहीं हटेंगे, इसका क्या मतलब है, पीछे जगह नहीं है या कोई दीवार है...



#दिमाग का दही! - 2 - महेश राजपूत

(दिमाग का दही श्रंखला के तहत यह दूसरी रचना है। पहली थी, ‘चोरी तो हुई ही नहीं न...!‘)

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