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मेरा कैलेंडर बदल रहा है...


कोई नहीं जी!/महेश राजपूत
मेरा कैलेंडर बदल रहा है. पहले मेरे कैलेंडर पर एक सफाचट बूढ़े आदमी की तस्वीर थी. नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था. शरीर की हड्डियाँ दिखती थीं. छाती की साइज़ जो भी हो ५६ इंच तो हरगिज़ नहीं थी. वज़न ४०-४५ किलो हो तो बहुत हो गया. शरीर पर कपड़ो के नाम पर केवल एक धोती हुआ करती थी. किसी एंगल से खाते-पीते घर का नहीं लगता था. कहते हैं उसीने हमें आज़ादी जैसी 'बेकार सी चीज़' दिलाई. चरखा चलाकर अंग्रेजों को भगाया. अब यह भी कोई मानने की बात है? खैर, यह ७० साल पहले की बात है. यह भी कहते हैं वह शुरू से 'गरीब' नहीं था, कभी सूट पहनकर विदेश यात्रा करता था. फिर अचानक क्या सनक सवार हुई कि सूट फेंककर धोती अपना ली. कहता था कि देश में कितने लोग हैं जिनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं. अगर अमीर लोग कम कपड़े पहनें तो गरीबों का तन ढंकने में मदद होगी. यह भी कोई बात है? जाहिर है उसके पास विकास का 'कांसेप्ट' ही नहीं था. जो आदमी अपना विकास नहीं कर सकता वह भला देश का विकास कैसे करेगा? वह कहता था प्रशासकों को कोई भी फैसला करते समय समाज के सबसे पिछड़े/गरीब व्यक्ति के बारे में सोचना चाहिए. कितनी बेतुकी बात है. जाहिर है वह देश को एक समस्या से छुटकारा नहीं दिला पाया. वह आदमी अहिंसा जैसी फालतू बातें करता था. कहता था बुराई से नफरत करो बुरे से नहीं. कहता था 'आँख के बदले में आँख' की नीति दुनिया को अँधा बना देगी. बकवास.  
मेरे बेटे ने, जब छोटा था, एक बार पूछा था, "पापा यह किस आदमी की तस्वीर वाला कैलेंडर घर में लगा रखा है? हमारे कोई रिश्तेदार थे क्या?" मैंने कहा, "नहीं, बेटा. यह बापू हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हैं."
बच्चे ने कहा, "कोई अट्रैक्टिव तस्वीर वाला कैलेंडर क्यों नहीं लगाते?" अब मैं क्या कहता, बात गोल कर गया.
लेकिन अब मेरा कैलेंडर बदल गया है. कैलेंडर पर एक दाढ़ीवाले लेकिन मंद-मंद मुस्काते आकर्षक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति की तस्वीर है. नाम नरेन्द्र दामोदरदास मोदी है. हृष्ट-पुष्ट  शरीर है. छाती की साइज़ ५६ इंच है. वज़न ६०-६५ किलो होगा. दस लाख वाला सूट पहन रखा है. हर एंगल से साधन संपन्न व्यक्ति लगता है. इस आदमी ने देश का विकास करने का ज़िम्मा लिया है. यह दो साल पहले की बात है. यह भी कहते हैं कि वह शुरू से 'अमीर' नहीं था. कभी चाय बेचता था. फिर अचानक सनक सवार हुई और उसने देश का विकास करने की ठान ली. पहले एक सूबे का मुखिया बना और फिर देश का प्रधान सेवक बन गया. अब वह सूट पहनकर विदेश यात्रा करता है. यह हुई न बात. इस आदमी का 'कांसेप्ट' बहुत क्लियर है. सबका साथ सबका विकास. अभी-अभी इस आदमी ने एक फैसले से एक झटके में काला धन समाप्त कर दिया, भ्रष्टाचार मिटा दिया, आतंकवाद समाप्त कर दिया. यह आदमी अहिंसा जैसी फ़ालतू बातें नहीं करता. लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि यह हिंसा में विश्वास करता है क्योंकि जिसे अपनी कार के नीचे आ गए कुत्ते के पिल्ले की मौत का अफ़सोस होता हो वह भला हिंसा में कैसे यकीन कर सकता है?
लब्बोलुआब यह कि मेरा कैलेंडर बदल गया है और मेरा बेटा जो बड़ा हो गया है, नहीं पूछता कि यह किस आदमी की तस्वीर वाला कैलेंडर लगा रखा है. वह जानता है, तस्वीर में सूट पहने चरखा चलाने का अभिनय करता आदमी कौन है. उसकी यह शिकायत भी शायद दूर हो चुकी है कि घर में अट्रैक्टिव तस्वीर वाला कैलेंडर नहीं लगा. 

Comments

  1. अच्छा है राजेश का एक लेख है बाद में

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  2. bataiyega. Main voh lekh padhna chahunga.

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  3. ...........तस्वीर में सूट पहने चरखा चलाने का अभिनय करता आदमी कौन है. मज़ेदार पंक्तियाँ। साधुवाद।

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  4. ब्लॉग पर विजिट करने के लिए धन्यवाद। नज़रे इनायत बनाए रखें।

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