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कभी फ़कीर! कभी चौकीदार!




"जमूरे..."
"उस्ताद!"
"बताएगा?"
"बताएंगा उस्ताद!"
"जो पूछेगा बताएगा?"
"जो पूछेंगा बताएंगा उस्ताद!"
"सच-सच बताएगा?"
"सच ही बताएंगा उस्ताद! सच के सिवा कुछ नहीं बताएंगा! श्रीदेवी की कसम!"
"अबे झूठी कसम खाता है? श्रीदेवी तो मर चुकी है..."
"जब तक अपुन जैसा एक भी फैन जिन्दा है न उस्ताद, श्रीदेवी कभी मर नहीं सकती। वह हमारे दिलों में हमेशा वास्ते जिन्दा रहेंगी..."
"बस, बस! बड़ा आया श्रीदेवी का फैन। बता चौकीदार का काम क्या होता है?"
"यह भी कोई पूछने की बात है उस्ताद? चौकीदार का काम है चौकीदारी करना! घर की रखवाली करना..."
"और अगर घर में चोरी हो जाए तो..."
"तो चौकीदार को बदल देना चाहिए..."
"गुड! अब बता चोरी हो गयी। चौकीदार को बदल दिया गया। पर चोरों का घर में आना-जाना लगा रहा तो क्या करना चाहिए?"
"ऐसा कैसे हो सकता है उस्ताद? घर के लिए चौकीदार है तो चोर कैसे आना-जाना करेंगा?"
"अबे सवाल के बदले में सवाल मत कर! जवाब दे!"
"इसका तो एक ही मतलब है उस्ताद... या तो चौकीदार ड्यूटी पर सोया रहता है या फिर चोरों से मिला हुआ है..."
"वैरी गुड! अब बता चौकीदार कहता है चोर ने चोरी पिछले चौकीदार के समय की पर भाग अब निकला। इसका क्या मतलब है?"
"काहेकू भेजा घुमा रहेला है उस्ताद? अगर चोर चोरी के बाद भी घर में ही रह रहा था तो चौकीदार को पता कैसे नहीं चलेंगा?"
"फिर सवाल के बदले सवाल? जमूरे जो पूछा है उसका जवाब देता है या लगाऊं दो लप्पड़!"
"बताता है उस्ताद! चौकीदार की बात सच भी मान ली जाए तो भी चोर कू भगाने का पनिशमेंट चौकीदार को मिलना मांगता है।"
"गुड! अब बता फ़क़ीर किसे कहते हैं?"
"उस्ताद फ़कीर बहुत ऊंची चीज़ होती है! फ़कीर को किसी तरह की मोहमाया नहीं होती..."
"शाबास! कभी-कभी तू भी अक्कलमंदी की बात कर लेता है।" 
"थैंक्यू, उस्ताद! आपकी सोहबत का असर है!"
"अब बता कोई चौकीदार अगर यह कहे कि वह फ़कीर भी है तो तू क्या कहेगा?"
"ऐसा कैसे हो सकता है उस्ताद? चौकीदार भला फ़कीर कैसे हो सकता है?"
"सवाल मैंने किया है जमूरे!"
"उस्ताद नहीं हो सकता। फ़कीर का जब माया से लेना-देना ही नहीं है तो वह उसकी चौकीदारी कैसे कर सकता है? और चौकीदार जिसका काम ही अपने मालिक की माया की रखवाली करना है, वह फ़कीर कैसे हो सकता है?"
"गुड! यानी तेरा कहना है कि चौकीदार फकीर नहीं हो सकता और फ़कीर चौकीदार नहीं हो सकता..."
"यहीच तो बोला मैं उस्ताद..."
"अब बता फ़कीर अगर कहे कि वह कभी भी झोला उठाके चल देगा तो क्या उस पर विश्वास किया जा सकता है?"
"झोला खाली या भरा हुआ?"
"तू पिटेगा जमूरे?"
"सॉरी उस्ताद! पण जो झोला उठाकर चल दे वह फ़कीर कैसा? और फ़कीर झोला उठाकर काहेकू जाना चाहेंगा? चाहेंगा भी तो जाएगा किधरकू?"
"वो तो जो बोला वो फ़कीर ही जाने! तू बता ऐसे चौकीदार के साथ क्या करना चाहिए?"
"कभी फ़क़ीर, कभी चौकीदार! क्या दीमाक का दही बनाएला है! आज सुबह से कोई मिला नहीं क्या उस्ताद? काहेकू कंफ्यूज कर रहे हो?"
"जमूरे कंफ्यूज मैं नहीं कर रहा कंफ्यूज उसने कर रखा है जो कभी चौकीदार बनता है और कभी फ़कीर बन जाता है!"
"ऐसे चक्कर में डालकर घनचक्कर बनाने वाले से निबटने का एक ही आईडिया है उस्ताद..."
"क्या?"
"उसके मालिक कू बोलने का उसको जितना जल्दी हो सके फुटास का गोली देने का. तुरंत! वैसे कोई उसके साथ पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट तो नहीं कियेला है न?"
"अगर कॉन्ट्रैक्ट किया हो तो?"
"कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं करने का... वैसे उसका मालिक है कौन? तुम्हारा कोई रिश्तेदार है क्या?"
उस्ताद - (जमा भीड़ से) मेहरबान, कदरदान! मेरा जमूरा जाहिल और बेवकूफ है, इसकी बातों में मत आना! आप पढ़े-लिखे हो और समझदार भी! चाहो तो उस चौकीदार का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करते रहना और कभी चौकीदारी कभी फकीरी के मज़े लेते रहना क्यूंकि उसका ही-टेक सनीमा हमारे तमाशे से ज्यादा एंटरटेनिंग है। (जमूरे से) जमूरे बाबू लोगों का लंच टाइम ख़त्म हो रहा है, हमारा तमाशा भी ख़तम होता है, झोली फैला...!  

कोई नहीं जी! #10 -महेश राजपूत


  

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