Skip to main content

कब्रिस्तान की सैर कर लो!



क्रिएटिविटी पर कान्वेंट में पढ़े या मीडिया/विज्ञापन एजेंसियों में कार्य करने वालों का एकाधिकार नहीं है, यह सड़क पर मिले एक पर्चे से पता चला जो शायद किसी गाईड या ट्रेवल एजंट ने लिखा होगा । ज़्यादा लंबी चौड़ी भूमिका बनाये बिना पेश है उस पर्चे का पूरा मज़मून... 

Brothers and their sisters, you are welcome to the graveyard. इतनी ही अंग्रेज़ी आती है इसलिये आगे की बात हिंदी में। पहला सवाल यहां के परिवहन का। देखिये, देशद्रोही मीडिया की खबरों पर मत जाइये। यहां सब नॉर्मल है। जगह-जगह सुरक्षाकर्मी आपकी सुरक्षा के लिये लगाये गये हैं। बैरीकेड आपको वाहनों के ओवर स्पीडिंग चालान से बचाने के लिये है। अब देखिये न, नये मोटर व्हीकल एक्ट में चालान की रकम कितनी बढ़ गई है तो हम जो मेहमान को भगवान मानते हैं, भगवान को लूटना नहीं चाहते। हर सौ कदम पर बैरीकेड इसलिये हैं।

हाँ, कहीं-कहीं कर्फ्यू तो लगा हुआ है पर वह कोई आपके लिए थोड़े ही लगा है। वह तो देशद्रोहियों के लिए है, आप बिलकुल मत घबराइये और बस पहली फ्लाइट या गाड़ी से चले आइये
  
क्या कहा? मोबाईल और इंटरनेट बंद है? अजी, पिकनिक मनाने आए हैं तो मोबाईल जैसी नामुराद चीज़ आपको चाहिये भी क्यों? सैर कीजिये, मुर्दों से जितनी चाहे बातें कीजिये। वह तो बेचारे आपकी बातें बस सुन सकेंगे, कोई रोकटोक नहीं करेंगे कैमरा ज़रूर आप इस्तेमाल कर सकते हैं, बस इतना ध्यान रखना होगा कि बैकग्राऊंड में गन लिये कोई सुरक्षाकर्मी न दिख जाये। वरना वह लोग आपके फोटो, वीडियो डिलीट करेंगे तो आपको बुरा लगेगा। सेल्फी खींचिये, खूब सारे सेल्फी प्वायंट हैं बल्कि समूचा कब्रिस्तान ही सेल्फी प्वायंट है पर एक बात का ध्यान रखें कि गलती से भी बैकग्राऊंड में किसी दीवार, शटर पर लिखा कोई देशद्रोही नारा न आ जाये। तब हमें मन मारकर आपके खिलाफ सेडीशन एक्ट के तहत कार्रवाई करनी पड़ेगी। जबकि हम पहले भी कह चुके हैं कि मेहमान भगवान होता है। क्या कहा? ये नारे किसने लिखे हैं? जी, यहां कब्रिस्तान में मुर्दों के अलावा दूसरा कौन है जो ऐसी हरकत करेगा! क्या है न, कुछ मुर्दे बड़े ढीठ होते हैं। मर कर भी नहीं मरते। या मरने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते। तो यह करतूत कुछ ऐसे ही ढीठ मुर्दों की है। न, न। डरिये मत। ये आपको कुछ नहीं करेंगे। यू आर सेफ। सेना और पुलिस  है न। 

क्या कहा, दो महीने पहले हमने आपको अचानक यहां से चले जाने के लिये क्यों कहा था। अजी खाक डालिये। यह पुरानी बात हो गई। इस दौरान कब्रिस्तान में न जाने कितनी नयी कब्रें बन गईं। हम आपको यकीन दिलाना चाहते हैं कि यहां सब मुर्दे चैन की नींद सो रहे हैं। फिजां में अमन है, सुकून है सब नॉर्मल है। चिंता की कोई बात नहीं। इसलिये आज ही अपना प्लेन टिकट बुक करवाएं। होटल तो खैर वहीं से बुक नहीं करा पाएंगे क्योंकि यहां इंटरनेट नहीं है, पर होटल खाली हैं जी। आपको कोई असुविधा नहीं होगी। बल्कि आपके आने से कब्रिस्तान डेवलपमेंट फंड में थोड़ी सहायता भी हो जायेगी। तो आइयेगा ज़रूर। हम पलकें बिछाये आपका इंतज़ार कर रहे हैं। 

डीटेल्स के लिये हमारी वेबसाईट अराऊंडदकब्रिस्तानइनटूडॉलर्स डॉट आउट पर विज़िट करें, जो हम दो महीने से अपडेट नहीं कर पा रहे हैं पर आपको बेसिक डीटेल्स जैसे हमारा रेट कार्ड, एड्रेस वगैरह तो मिल ही जाएंगे। शुक्रिया।Thanks. Hope to see you soon...

कोई नहीं जी!/महेश राजपूत  

Comments

Popular posts from this blog

प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा

-गुलजार हुसैन प्रेमचंद का साहित्य और सिनेमा के विषय पर सोचते हुए मुझे वर्तमान फिल्म इंडस्ट्री के साहित्यिक रुझान और इससे जुड़ी उथल-पुथल को समझने की जरूरत अधिक महसूस होती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि पूंजीवादी ताकतों का बहुत प्रभाव हिंदी सहित अन्य भाषाओं की फिल्मों पर है।...और मेरा तो यह मानना है की प्रेमचंदकालीन सिनेमा के दौर की तुलना में यह दौर अधिक भयावह है , लेकिन इसके बावजूद साहित्यिक कृतियों पर आधारित अच्छी फिल्में अब भी बन रही हैं।  साहित्यिक कृतियों पर हिंदी भाषा में या फिर इससे इतर अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छी फिल्में बन रही हैं , यह एक अलग विषय है लेकिन इतना तो तय है गंभीर साहित्यिक लेखन के लिए अब भी फिल्मी राहों में उतने ही कांटे बिछे हैं , जितने प्रेमचंद युग में थे। हां , स्थितियां बदली हैं और इतनी तो बदल ही गई हैं कि नई पीढ़ी अब स्थितियों को बखूबी समझने का प्रयास कर सके। प्रेमचंद जो उन दिनों देख पा रहे थे वही ' सच ' अब नई पीढ़ी खुली आंखों से देख पा रही है। तो मेरा मानना है कि साहित्यिक कृतियों या साहित्यकारों के योगदान की उपेक्षा हिंदी सिनेम

Premchand’s Torn Shoes

By Harishankar Parsai There is a photograph of Premchand in front of me, he has posed with his wife. Atop his head sits a cap made of some coarse cloth. He is clad in a kurta and dhoti. His temples are sunken, his cheek-bones jut out, but his lush moustache lends a full look to his face. He is wearing canvas shoes and its laces are tied haphazardly. When used carelessly, the metal lace-ends come off and it   becomes difficult to insert the laces in the lace-holes. Then, laces are tied any which way. The right shoe is okay but there is a large hole in the left shoe, out of which a toe has emerged. My sight is transfixed on this shoe. If this is his attire while posing for a photograph, how must he be dressing otherwise? I wonder. No, this is not a man who has a range of clothes, he does not possess the knack of changing clothes. The image in the photograph depicts how he really is. I look towards his face. Are you aware, my literary forbear, that your shoe is

चुनावपूर्व पुल दुर्घटनाएं कैसे कवर करें पत्रकार? डूज़ एंड डोंट्स

डिस्क्लेमर: यह लेख पाठ्यपुस्तकों में शामिल कराने के पवित्र उद्देश्य के साथ लिखा गया है। विषय चूंकि मीडिया से संबंधित है इसलिए अपेक्षा है कि इसे सरकारी, अर्ध सरकारी व निजी मीडिया संस्थानों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। कोई और समय होता तो यह लेख लिखने की आवश्यकता ही नहीं होती लेकिन समय ऐसा है कि मीडिया जगत से ‘देशद्रोहियों‘ को जेलों में ठूंसकर लाइन पर लाने का काम उतनी तेजी  से नहीं हो पा रहा है, जितनी तेजी से होना चाहिए था। खासकर सोशल मीडिया में तो इनका ही बोलबाला है सो कोई भी त्रासद दुर्घटना होने पर उसका कवरेज कैसे किया जा चाहिए, कैसे नहीं किया जाना चाहिए यानी ‘डूज़‘ क्या हैं, ‘डोंट्स‘ क्या हैं, यहां  बताया जा रहा है। आशा है कि मीडिया के छात्रों के लिए यह लेख उपयोगी साबित होगा।  डूज़  -पॉजिटिव बनें। संवेदनशील बनें।  -यह जरूर बताएं कि पुल कितने सौ वर्ष पुराना था? और पुल पर क्षमता से बहुत ज्यादा लोग थे।  -लोगों की लापरवाही या चूक, जैसे उन्होंने प्रशासन के निर्देशों/चेतावनियों का पालन नहीं किया और वह खुद ही दुर्घटना के लिए जिम्मेदार थे, को हाइलाईट करें। -दुर्घटना में कितने मरे?